Bihar MLC Election 2020 : जदयू के छाते में तो भीड़ आ गई, लेकिन राजद में धक्का-मुक्की
मानसून बाद चुनाव है इसलिए सभी अपने छाते दूसरों के लिए खोले खड़े हैं। फायदा और नुकसान छाते के साइज पर निर्भर है। जदयू के छाते में तो भीड़ आ गई लेकिन राजद में धक्का-मुक्की है।
बिहार [आलोक मिश्र]। बिहार में मानसून आ गया है, कुदरती भी और चुनावी भी। एक तरफ आसमान गाज गिरा रहा है और लोग जान दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ नीतीश की बिजली राजद पर गिरी है। तीन एमएलसी (विधान परिषद सदस्य) उसने कमाए तो पांच छीन ले गया जदयू।
बाहर हाथ-पैर मार कुनबा बढ़ाने के फेर में घर में बगावत फूटी सो अलग। सहयोगियों के अपने तेवर हैं। मानसून बाद चुनाव है, इसलिए सभी अपने छाते दूसरों के लिए खोले खड़े हैं। फायदा और नुकसान छाते के साइज पर निर्भर है। जदयू के छाते में तो भीड़ आ गई, लेकिन राजद में धक्का-मुक्की है।
इधर राजद (राष्ट्रीय जनता दल) को यह हफ्ता भारी पड़ा। मंगल ने खासा प्रभावित किया। एमएलए की संख्या के बूते पर तीन एमएलसी खाते में आने थे, बाहर से दबंग नेता रामा सिंह को लाने की तैयारी थी कि मंगल का सबेरा खराब हो गया। जदयू नेता ललन सिंह राजद के पांच एमएलसी लेकर चल दिए नीतीश के पास। झटके से बड़े सदन में संख्या घटकर तीन हो गई। छह जुलाई को विधान परिषद का चुनाव है। इस चुनाव में जदयू कोटे की तीन सीटें राजद को मिलनी हैं। लेकिन बढ़ने से पहले पांच कदम पीछे हो गया राजद।
इससे राबड़ी देवी की नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी खतरे में पड़ गई है। अभी इस वज्रपात से जूझ ही रहे थे कि राजद की नाक समङो जाने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह ने टिकट बेचे जाने का आरोप लगाते हुए पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। रघुवंश प्रसाद सिंह पार्टी में इतने सम्मानित हैं कि लालू ने संगठन में राबड़ी से ऊंचा ओहदा उन्हें दिया था। रघुवंश के इस्तीफे ने जदयू-भाजपा को एक और हथियार दे दिया हमला करने को। इससे तेजस्वी बैकफुट पर आ गए हैं और रघुवंश को गार्जयिन बताते हुए उनके स्वस्थ होने पर मना लेने की बात कह रहे हैं। फिलहाल रघुवंश बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं।
इस बार विधान परिषद में एक सीट कांग्रेस को भी मिली है। अब कांग्रेस तो कांग्रेस है, तीन-तीन सीट पाने वाले जदयू व राजद ने समय से अपने पत्ते खोल दिए। उसके बाद तमाम काम निपटाते हुए भाजपा ने भी अपनी मुहर उन पर ही लगा दी, जिनकी अटकलें चल रही थीं, लेकिन कांग्रेस आखिरी तक दावेदारों की सांसे फुलाए रही। देर रात जब नाम घोषित हुआ तो तमाम दावेदारों की धड़कनें बैठ गईं और पोटली से निकला तारीक अनवर का नाम। लेकिन उनकी खुशी भी सुबह तक ही टिक पाई, क्योंकि तब कांग्रेस जान गई कि वे बस नेता ही बिहार के हैं, मतदाता नहीं। गनीमत रही कि इतनी जानकारी देश की सबसे पुरानी पार्टी को कुछ घंटे पहले तक पता चल गई, नहीं तो कहीं की न रहती।
बहरहाल फिर दिल्ली बैठी आधे घंटे के लिए और समीर कुमार सिंह के कागज दाखिल करवाए। अंतिम समय तक किसी भी मसले को उलझाए रखने की कांग्रेसी परंपरा पर पार्टी से ही सुर उठे कि यही तो कांग्रेस है। दिल्ली में इतने दरवाजे हैं कि पता नहीं कब किधर की आवाज किधर काट कर निकल जाए। ऐसे में सहमति बनाना आसान नहीं है। इसी कांग्रेसी परंपरा का खामियाजा भुगत रहे हैं जीतनराम मांझी भी। राजद पर लगाम लगाने के लिए कांग्रेस के आसरे की आस उनकी भी खत्म हो गई है। समन्वय समिति न बनने पर वह राजद से रिश्ते पर पुनíवचार का अल्टीमेटम दिए बैठे हैं, सो शुक्रवार को खुद की टीम के साथ बैठे तो टीम ने
मांझी को ही इस पर निर्णय लेने के लिए अधिकृत कर दिया। अब देखना दिलचस्प होगा कि उनकी अगली चाल क्या होगी? राजनीतिक झमाझम के साथ ही आसमानी बरसात भी जोरों पर है। बरसात के साथ बिजली भी है। गुरुवार को तो आफत इस कदर आई कि 95 लोग काल के गाल में चले गए। इस बरसात में अब तक 200 से अधिक लोगों की बिजली गिरने से ही मौत हो गई है। यह संख्या कोरोना से कहीं अधिक है।
बचने के लिए तमाम हिदायतें अखबारों में हैं, विज्ञापन में हैं, एप भी है जो आधे-पौने घंटे के भीतर बीस किलोमीटर की जानकारी दे रहा है, लेकिन मौतें हो रही हैं। ये मौतें उनकी हैं जो बारिश को नियामत समझ हल लेकर खेत की ओर दौड़ चलते हैं। उस समय हाथ में मोबाइल कहां, बिजली की कड़कड़ाहट कहां? ये मौतें बस एक खबर भर हैं, जो बिजली के साथ ही एक पल चमक कर लुप्त हो जाती हैं। कहीं कोई शोर नहीं उठता, केवल मुआवजा हाथ रह जाता है। वक्त फिर चल पड़ता है अपनी रफ्तार। (स्थानीय संपादक, बिहार)