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    Exclusive Interview: 'नए चेहरे और जंगलराज फिर मैदान में...', बिहार चुनाव से पहले अमित शाह का विपक्ष पर करारा हमला

    By ASHUTOSH JHAEdited By: Abhinav Tripathi
    Updated: Tue, 04 Nov 2025 11:30 PM (IST)

    अमित शाह ने बिहार चुनाव को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि राजग पिछली बार के दुष्प्रचार से सबक लेकर पूरी तैयारी से उतरा है। उन्होंने विश्वास जताया कि राजग 160 से ज्यादा सीटें जीतेगा। शाह ने जंगलराज की याद दिलाते हुए कहा कि इसके खात्मे के बाद ही विकास संभव है। उन्होंने गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का उल्लेख किया और राजद पर जंगलराज की संस्कृति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।

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    अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री। (फोटो- पीटीआई)

    आशुतोष झा, नई दिल्ली। यह सार्वजनिक है कि बिहार चुनाव सिर्फ किसी दल या गठबंधन की जीत हार तक सीमित नहीं होता है। यहीं से एक बड़े नैरेटिव की भी शुरूआत होती है। लिहाजा, राजनीतिक गलियारों में इस चुनाव का महत्व थोड़ा बढ़ जाता है।

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    संभवत: यह भी कारण रहा हो भाजपा के मुख्य रणनीतिकार और केंद्रीय गृह व सहकारिता मंत्री अमित शाह का चुनाव घोषणा से काफी पहले अपनी सक्रियता बढ़ाने का। बिहार में चुनाव प्रचार के लिए जाते शाह के हाव-भाव से ऐसा अहसास होता है कि वह फीडबैक से संतुष्ट हैं।

    सवाल पूछने पर कहते हैं कि हमारा बैकग्राउंड लोगों में भरोसा पैदा करता है। पिछली बार कुछ दुष्प्रचार हुए थे लेकिन इस बार हमारी तैयारी पूरी है। नई दिल्ली से दरभंगा के रास्ते में दैनिक जागरण के राजनीतिक संपादक आशुतोष झा से गृह मंत्री अमित शाह की बातचीत के पेश हैं प्रमुख अंश :

    आपने बिहार चुनाव की घोषणा से काफी पहले ही कमान संभाल ली थी। बिहार में सभी प्रमंडलों की बैठक कर कार्यकर्ताओं को चार्ज किया था। अभी भी लगातार पार्टी की बैठक ले रहे हैं, बड़ी संख्या में रैली कर रहे हैं। क्या राजग की स्थिति कमजोर थी, इसीलिए आपको सक्रियता बढ़ानी पड़ी?


    नहीं, ऐसा नहीं है कि मुझे मोर्चा संभालना पड़ा। मैं हर चुनाव में जाता हूं। परंतु इस बार यह बात सही है कि बिहार में हमने थोड़ी जल्दी तैयारी शुरू की थी। इसका मुख्य कारण यह था कि गत चुनाव परिणामों में दुष्प्रचार का असर दिखा था। शुरुआत में ही मैंने पांच दिन में बिहार के 10 हिस्से कवर कर लगभग 20 हजार कार्यकर्ताओं से बातचीत की थी और उसी वक्त हम इस बड़े संकल्प के साथ आगे बढ़े थे कि इस बार राजग मजबूत सरकार बनाएगा।

    20 साल में नीतीश ने कानून- व्यवस्था को ठीक किया और 11 साल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को जमीन पर उतारा है। इसके कारण अब बिहार में विकास की संभावनाएं बड़ी तेज होंगी। मुझे लगता है कि अच्छी तैयारी हम कर पाए हैं और बहुत अच्छे मार्जिन से राजग यानी भाजपा और उसके साथी दल चुनाव जीतेंगे। 

    आपने बहुत अच्छे मार्जिन से जीत की बात की। क्या कोई स्पष्ट आंकड़े हैं ?


    मैं मानता हूं हम 160 से ज्यादा सीटें जीतकर बिहार में सरकार बनाएंगे। हमारा सीटों पर जीत का मार्जिन भी बढ़ेगा। बहुत स्पष्टता होगी जीत में।

    क्या यह भी आंकड़ा है कि सबसे बड़ी पार्टी कौन होगी?

    वह अभी दूसरे चरण में चुनाव की गति बढ़ने के बाद मालूम पड़ेगा। मगर राजग भारी तादाद में सीटें जीतेगा, यह तय है।

    आपने कहा कि विकास हुआ है 20 साल में व इसमें और तेजी लाएंगे, लेकिन जंगलराज और मंगलराज का नारा चलना शुरू हो गया है। फिर से वही जंगलराज की याद दिलाने की कोशिश हो रही है जो 20 साल पहले एक सरकार ने किया था। तो ऐसा नहीं लगता कि विकास के मंत्र से जीत का भरोसा थोड़ा कम हो गया है?


    इन दोनों को आप अलग करके मत देखिए। बिहार की जो तबाही हुई है, उस तबाही का मूल कारण ही जंगलराज है। आजादी के बाद देश की राजनीतिक-आर्थिक सभी गतिविधियों में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान था। सिविल सर्विस के सबसे ज्यादा बच्चे सफल होकर बिहार से आते थे। शिक्षा के मामले में बिहार टाप के तीन-चार राज्यों में रहा करता था। उस बिहार को लालू-राबड़ी शासन ने 15 साल के अंदर बिल्कुल गर्त में डालकर बीमारू राज्य बनाने का काम किया।

    जब तक कानून और व्यवस्था ठीक नहीं होती, कोई राज्य विकास नहीं कर सकता है। विकास की अवधारणा, विकास को जमीन पर उतारना और अच्छी कानून-व्यवस्था एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब तक हम जंगलराज की जनता को याद नहीं दिलाते हैं, हमारे विकास की गारंटी का कोई मतलब नहीं है। जंगलराज को हमने समाप्त किया और इसे अब नहीं आने देंगे। उसके आधार पर ही विकास की गारंटी पर विश्वास बन सकता है और विकास हुआ भी है। लगभग 8. 52 करोड़ गरीबों को हम पांच किलो अनाज मुफ्त में हर महीना दे रहे हैं।

    किसान सम्मान निधि के 87 लाख लाभार्थियों को 29 हजार करोड़ रुपये अब तक हम दे चुके हैं। 44 लाख घर बना दिए। 1.17 करोड़ गैस के सिलेंडर पहुंचाए। 3.53 करोड़ आयुष्मान भारत के कार्ड बांटे, जिसके तहत पांच लाख तक का इलाज पूरा मुफ्त है। 1.45 करोड़ घरों में हमने शौचालय बनाकर दिए और 1.60 करोड़ घरों में पीने का पानी पहुंचाया है। कुल मिलाकर 24 लाख सुकन्या समृद्धि अकाउंट दिए। अब बिहार के हर तीन में से दो लोगों को सारी सुविधाएं मिल गईं। इसका मतलब है कि बिहार के गरीबों का जीवन स्तर उठाने के लिए इन 11 सालों में प्रधानमंत्री की जो योजनाएं थीं, वह जमीन पर भी उतरी हैं और उससे बिहार के लोगों का विश्वास भी बढ़ा है।


    हाल में आपने किसी रैली में कहा था कि लालू का बेटा अगर सीएम बनता है तो अपहरण, रंगदारी और वसूली, ये चीजें शुरू होंगी और इनके तीन नए मंत्री बनेंगे। एक पिता के कर्मों को पुत्र से जोड़ना, यह सही है, यह पर्सनल अटैक नहीं लगता है?


    नहीं, यह पर्सनल अटैक नहीं है। देखिए, लालू बीमार हैं लेकिन अभी राजद ने जितने भी टिकट बांटे हैं, लालू के घर पर प्रत्याशी को बुलाया गया। लालू के आशीर्वाद के साथ फोटो खिंचवाकर दिखाया गया। लालू और उनके बेटे एक ही घर में रहते हैं। राबड़ी भी उसी घर में रहती हैं। जंगलराज व्यक्ति के साथ जुड़ा हुआ नहीं है। पार्टी के कल्चर के साथ जुड़ा है। 'लट्ठ रैली' का कांसेप्ट आज भी राजद में है। तो मैं नहीं मानता कि कोई बदलाव हुआ।


    जंगलराज नए चेहरे के साथ, नए भेष के साथ फिर से आने के लिए मैदान में उतरा है। इसे बिहार की जनता को रोकना ही पड़ेगा। हालांकि भाजपा की ओर से आपने बहुत स्पष्ट किया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन फिर भी यह सवाल बार-बार उठता है कि वास्तव में सीएम कौन होगा?


    देखिए मैंने बहुत स्पष्टता से साफ कहा है कि हम नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं और इसमें कोई कंफ्यूजन जैसी बात ही नहीं है। शायद इस बात को विपक्ष के द्वारा उठाया जा रहा है।

     भाजपा और तेजस्वी यादव दोनों ने इस चुनाव में बिहार को नंबर-1 बनाने का वादा किया है। जनता किसके नंबर-1 बिहार पर भरोसा करेगी?


    बहुत आसान है। 'घोषणा पत्र' और 'संकल्प पत्र' के शब्दों में ही इरादे की पहचान है। हमारा संकल्प है, उनकी घोषणाएं हैं और दोनों गठबंधनों का ट्रैक रिकार्ड भी है। हमने तो जो कहा है, वह किया है। जब मोदी 1. 25 लाख करोड़ रुपये बिहार के विकास के लिए देने की बात बोलते थे तो मखौल उड़ाया था कांग्रेस ने। आज मोदी के शासन में 13.15 लाख करोड़ रुपये हमने बिहार को दे दिए हैं और व्यक्तिगत योजनाओं के लाभ अलग हैं। हमारे संकल्प हैं हर जिले में मेगा स्किल पार्क बनेगा। स्वरोजगार को बढ़ाएंगे। सरकारी नौकरी, प्राइवेट नौकरी और स्वरोजगार मिलकर कुल एक करोड़ युवाओं को हम रोजगार देंगे। हर जिले में नया औद्योगिक पार्क बनाएंगे। 100 एमएसएमई पार्क बनाएंगे। 50 हजार कुटीर उद्योग लगाएंगे।

    डिफेंस कारिडोर और सेमीकंडक्टर क्लीन मैन्युफैक्चरिंग की भी बिहार में अब शुरुआत होने वाली है। हमने 1.41 करोड़ जीविका दीदी में प्रत्येक को 10 हजार रुपये सीड मनी दी। अब वह सीड मनी का उपयोग करके 25-25 जीविका दीदी इकट्ठा होकर समूह बनाएंगी और हम दो लाख रुपये और देंगे हर जीविका दीदी को। मछुआरों की राशि भी हम बढ़ाकर नौ हजार तक करेंगे। पटना, दरभंगा, पूर्णिया और भागलपुर, इन चारों एयरपोर्ट को हम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने जा रहे हैं। जो दुनियाभर में बिहारी रहते हैं, उनको बिहार आने-जाने के लिए अब दिल्ली या मुंबई नहीं उतरना पड़ेगा।

    बिहार के चार शहरों में मेट्रो चलने वाली हैं, सात नए एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं। हर जिले में मेडिकल कालेज भी बनेंगे। और एक बहुत महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पीएम ने मोदी -3.0 के पहले ही बजट में रखा है और वह है 'बाढ़ मुक्त बिहार'। कोसी, गंडक और गंगा, चाहे बिहार में अकाल हो, लेकिन ये बाढ़ लेकर आती हैं। अकाल से भी बिहार पीडि़त होता है और बाढ़ से भी। हम सिंचाई का पूरा नेटवर्क बनाने की प्लानिंग कर चुके हैं और इसके लिए 24 हजार करोड़ रुपये की पूंजी भारत सरकार देगी। जब ये संकल्प लेकर हम बिहार की जनता के सामने जाते हैं तो बिहार की जनता का भरोसा बढ़ता है, क्योंकि जमीन पर बदलाव दिखाई पड़ता है। हमारे वादों के पीछे हमारा बैकग्राउंड भी है।


    लेकिन जीविका दीदियों को जो राशि आप दे रहे हैं उसे तो तेजस्वी यादव चुनावी रिश्वत बता रहे हैं 


    देखिए, जंगलराज वाले जिस प्रकार का बीमारू बिहार बनाकर गए थे, उससे ग्रामीण महिलाएं अपनी पूंजी कमाने के लिए फिर खड़ीं नहीं हो पाईं। उनको हमने पूंजी दी है। उनके ग्रुप कोआपरेटिव आधार पर बनेंगे और वह सब इकट्ठा होकर कई उद्योग करेंगी। अगर इसको कोई रिश्वत देखता है तो मुझे लगता है कि नजरिये का दोष है।


    बिहार से एसआइआर की शुरुआत हुई। चुनाव आयोग ने भी और आपने भी पहले कहा कि घुसपैठियों को मतदाता सूची से बाहर करना लक्ष्य है। जो अंतिम सूची आई है , जिसके आधार पर मतदान होने वाला है, उसमे क्या कोई घुसपैठिया नहीं बचा है ?


    ढेर सारे लोगों का नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो गया और यह एक शुरुआत है। चुनाव आयोग ने एक अच्छी शुरुआत की है। मैं इसका स्वागत करता हूं क्योंकि किसी भी देश की डेमोक्रेटिक पालिटिकल प्रोसेस में देश के बाहर के नागरिक नहीं होने चाहिए। इससे देश सुरक्षित नहीं रह सकता। हमारे देश के राजनीतिक फैसले लेने का अधिकार उन्हीं को है जो इस देश के नागरिक हैं। जो इस देश के नागरिक नहीं हैं, उनको हमारे देश की सरकार चुनने का अधिकार नहीं होना चाहिए। चुनाव आयोग ने इस दिशा में बहुत अच्छे कदम उठाए हैं।

    क्या बंगाल बहुत बड़ी चिंता नहीं है ?


    ममता दीदी तो कह रही हैं कि एसआइआर होने ही नहीं देंगे। यह हमें नहीं करना है, चुनाव आयोग को करना है। चुनाव आयोग को हमारे संविधान ने कुछ विशेष शक्तियां भी दी हैं। भाजपा ने बार-बार कहा कि जातिवाद खत्म होना चाहिए, विकास होना चाहिए।


    लेकिन जब टिकट बांटने की बात आती है, मंत्री बनाने की बात होती है, चीफ मिनिस्टर बनाने की बात होती है तो आपके गठबंधन में भी जाति देखी जाती है?


    इसको इस तरह से ना देखिए। हर जाति का प्रतिनिधित्व होना और जातिवाद होना, दोनों अलग चीजें हैं। हर जाति का प्रतिनिधित्व होना डेमोक्रेसी का लक्षण है। प्रतिनिधित्व सर्वसमावेशी होना चाहिए। समाज के हर हिस्से को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। समाज के हर हिस्से से सदनों में उनकी आवाज पहुंचनी चाहिए। जातिवाद का मतलब है शासन में बैठकर एक ही जाति के कल्याण के लिए काम करना और वोट बैंक खड़ा करके उसको कंसोलिडेट करना। हमारी जितनी भी योजनाए आईं चाहे वह घर दिया, गैस दी, शौचालय दिया, पानी दिया, मुफ्त अनाज दिया या फिर स्वास्थ्य कार्ड, इन सबमें कोई जाति- धर्म नहीं देखा गया।


    लेकिन क्या आपको ऐसा लगता है कि वोटर अभी भी जाति के नाम पर वोट डालते हैं?

    मैं मानता हूं कि मोदी की 'पालिटिक्स और परफार्मेंस' परिवार की राजनीति और जाति की राजनीति, दोनों पर गहरा आघात हैं। अब धीरे-धीरे इतनी सारी योजनाएं होने के बाद एक विश्वास जनता में पैदा हुआ है कि अच्छा व्यक्ति किसी भी जाति का हो, वह सबकी चिंता करता है और वोट देने के लिए जाति देखने की जरूरत नहीं है। मगर यह एक लंबी प्रक्रिया है। इसके लिए जनजागरण की जरूरत है, यह भाषण से नहीं हो सकता। सरकार की योजनाओं से, काम से और विश्वास से ही हो सकता है। मगर हम काफी आगे बढ़े हैं। मैं तो इसको शुभ चिह्न मानता हूं।

    राजग में सीटों के बंटवारे में लोजपा दबाव बनाने में सफल रही। आपको सीटें बढ़ानी पड़ीं। भाजपा ने त्याग किया या राजग को बचाने के लिए यह जरूरी लगा?


    नहीं, नहीं.. यह गलतफहमी है। इनकी छह लोकसभा सीटें हैं और बिहार में औसतन पांच विधानसभा से एक लोकसभा सीट बनती है। इस तरह उनकी 30 सीटें बनती थीं और हमने 29 दी हैं। मांझी और उपेंद्र कुशवाहा का एक-एक लोकसभा सदस्य है और हमने उन्हें पांच-पांच विधानसभा सीटें दी हैं। मगर एक परसेप्शन मीडिया गढ़ देता है और उस परसेप्शन को बचाने के लिए मीडिया उसे खींचता रहता है।


    आपका कहना है कि सीटों को लेकर कोई दुविधा नहीं थी? नहीं। देखिए, कौन सी सीट पर कौन लड़ेंगा, इसके लिए चर्चाएं तो होती हैं और नंबर के लिए भी होती हैं। हर पार्टी प्रयास करती है कि हमारी सीटें बढ़ें, इसमें क्या बुराई है? मगर सब मानते हैं कि गठबंधन के दायरे में रहना है तो एक न्यायसंगत फार्मूला बनाना पड़ेगा और यह बना भी और सबने माना भी। अब कहीं कंफ्यूजन नहीं है हमारे गठबंधन में। और वहां, महाठगबंधन में चुनाव के पर्चे के अंतिम दिन तक एक एग्रीड सूची घोषित नहीं कर पाए। हमने सीटों के नाम के साथ एग्रीड सूची चार दिन पहले ही घोषित कर दी थी।

    बिहार में आप लगातार घूम रहे थे। कई रैलियां की। राजग का आकलन तो आपने बता दिया लेकिन विपक्ष और खासकर कांग्रेस के बारे में कुछ कहेंगे?


    मेरा ऐसा आकलन किसी पार्टी के लिए करना ठीक नहीं है। लेकिन हाल ही में कई जिलों के कार्यकर्ताओं के साथ मेरी बैठक थी। सभी लोग कहते हैं कि हम कांग्रेस की सभी सीटों पर सरलता से जीत जाएंगे। यह कार्यकर्ताओं का आकलन है, मेरा नहीं है। एक बहुत बड़ा फैसला पिछले संसद सत्र में आप लोगों ने लिया था, 130वां संविधान संशोधन वाला।

    उस समय विपक्ष ने केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। हुआ भी ऐसा ही कि कुछ ही दिनों बाद लालू को एजेंसी ने एक मामले में बुला लिया?

    मुझे एक बात बताइए, किसी भी राज्य का मंत्री, केंद्र का मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जेल से सरकार चलाए, वह ठीक है क्या? यह तो नैतिक पतन है। हमारे संविधान निर्माताओं ने ऐसे निर्लज्ज लोगों की कल्पना नहीं की थी कि जो जेल में जाने के बाद भी इस्तीफा नहीं देंगे। आजादी से अब तक कई लोग जेल गए, मगर सब इस्तीफा देकर गए थे। कई ससम्मान छूट गए और फिर राजनीति शुरू की। विरोधी दल कह रहे हैं कि दुरुपयोग होगा। आप एफआइआर के खिलाफ कोर्ट में जा सकते हैं, गिरफ्तारी पर कोर्ट से स्टे ले सकते हैं। गिरफ्तारी हो भी गई तो आप जमानत के लिए भी जा सकते हो। लेकिन हर स्तर पर कोर्ट आपके खिलाफ आरोप को प्रथम दृष्टया ठीक मानता है तो आपको इस्तीफा देना चाहिए। इस्तीफा नहीं दोगे तो आप अपने पद से निरस्त माने जाएंगे। उसके बाद अगर जमानत मिलती है तो दूसरे ही दिन आप शपथ ले सकते हो।

    क्या किसी व्यक्ति के बगैर किसी पार्टी की सरकार नहीं चल सकती?

    मानो एक पार्टी का बहुमत है। इनके मुख्यमंत्री या मंत्री पर कोई आरोप आया और वह जेल में गए तो सरकार तो उनकी ही रहेगी, उनके ही दल का दूसरा नेता मुख्यमंत्री बनेगा। मेरी तो समझ में नहीं आता इसमें आपत्ति क्या है? और जहां तक लालू पर केस का सवाल है, यह केस तीन साल पहले रजिस्टर्ड हुआ था। लालू स्टे लेकर बैठे थे कि हम पर चार्ज फ्रेम न किया जाए। सुप्रीम कोर्ट से स्टे उठ गया तो अब जाकर चार्ज फ्रेम हुआ है। अरेस्ट नहीं किया, चार्ज फ्रेम हुआ और ट्रायल चलेगा। अगर लालू स्टे न लेते तो तीन साल पहले चार्ज फ्रेम हो जाता। इसका चुनाव से कोई रिश्ता नहीं है और अगर है तो लालू जी के कारण।

    लेकिन इस पर सरकार थोड़ा धीमे ही चल रही है। इसमें सरकारी कमेटी भी नहीं बनी?


    ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी सर्वदलीय कमेटी बनती है। अभी तक कमेटी इसलिए नहीं बनी है कि विपक्ष ने कमेटी के लिए नाम नहीं दिए। कल ही मैंने स्पीकर महोदय को फोन किया था कि स्पीकर साहब, कमेटी क्यों नहीं हुई? उन्होंने बताया कि दलों को तीन बार रिमाइंडर भेजा है। उनका कोई जवाब ही नहीं आया। मगर अब स्पीकर साहब ने शायद निर्णय किया है कि कुछ दिनों में ये नहीं आएंगे तो जो दल सहमत होंगे, उसमें से हम कमेटी बनाएंगे।

    एक सवाल सर गुजरात से है। अभी कुछ ही दिन पहले गुजरात की पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया। वहां अभी इलेक्शन में दो साल का समय है। क्या खास बात थी जो ऐसा हुआ?

    नहीं, ऐसा नहीं है। यह परसेप्शन गलत बनी कि पूरी कैबिनेट का इस्तीफा ले लिया गया। वहां कैबिनेट में 10 जगह खाली थीं। मुख्यमंत्री अपने साथियों को चुनने के लिए दबाव के बगैर काम करें, इसलिए कैबिनेट के सभी साथियों ने इस्तीफा दिया। इस्तीफे स्वीकार छह ही विधायकों के हुए और 10 जगह खाली थीं तो पुरानी कैबिनेट के बहुत सारे साथी को उन्होंने बरकरार रखा। इनमें से कुछ को पार्टी संगठन में जिम्मेदारी देगी। इसमें कोई इस प्रकार की बात नहीं है कि बहुत बड़ा बदलाव करने की जरूरत पड़ गई थी। अब गुजरात की सरकार बहुत अच्छी चल रही है और हम 2027 में फिर से एक बार सरकार बनाएंगे।

    किस तरह के दबाव की बात आप कर रहे हैं?

    किसी भी व्यक्ति से, साथी से इस्तीफा मांगना, यह थोड़ा तकलीफदेह है। इसलिए सभी मंत्रिमंडल के साथियों ने कहा कि हम सभी इस्तीफा दे देते हैं। इससे मुख्यमंत्री को किसी का इस्तीफा मांगना नहीं पड़ेगा और वह नई टीम भी चयनित कर पाएंगे।


    पहलगाम हमले के बाद आपने एक आपरेशन महादेव चलाया। आतंकियों को खदेड़ कर पकड़ने के लिए एक अभियान चलाया। किसी तरह की परेशानी आई थी?


    देखिए, यह बहुत कठिन चीज थी। अमूमन ऐसा होता है कि हमले करने वाले भाग जाते हैं। पहली बार हमला कराने वाले को आपरेशन सिंदूर से दंडित किया और हमला करने वालों को अपरेशन महादेव से हमने दंडित किया। आपरेशन महादेव, जम्मू कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना का संयुक्त आपरेशन था। मैंने पहली ही मीटिंग में तय किया था कि आतंकी सीमा लांघकर पाकिस्तान की ओर जाने ना पाएं। फिर इनको ट्रैक करते गए, ट्रैक करते गए और अंत में लोकेशन मिलने के बाद तीनों आतंकी जिन्होंने गोली चलाई थीं पहलगाम में, उनको सजा देने का काम हुआ। जो तीन ओवरग्राउंड वर्कर्स थे, वह भी पकड़े गए। एक प्रकार से कंप्लीट केस रिजाल्व हुआ है। जो तीन ओवरग्राउंड वर्कर पकड़े गए थे, उनको हम कायदे कानून की अदालत में सजा कराएंगे और हमारे पास इतने पुख्ता सुबूत इकट्ठा हुए हैं कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी हम यह सिद्ध कर सकते हैं कि यह साजिश पाकिस्तान की थी।

    यह आपरेशन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है। कश्मीर के मुख्यमंत्री बार-बार राज्य का दर्जा देने की बात कर रहे हैं?

    यह बहुत बड़ा कांप्लेक्स मुद्दा है। इसमें प्रेस के माध्यम से बातचीत नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री ने और मैंने दोनों ने फ्लोर पर कहा है कि हम कश्मीर को पुन: राज्य का स्टेटस लौटाएंगे। इस पर भरोसा रखना चाहिए। मैं मुख्यमंत्री के संपर्क में भी हूं और कश्मीर की जनता से भी हमारे एलजी बात कर रहे हैं। लद्दाख में अभी-अभी वार्ता शुरू हुई है। मैं आशा करता हूं कि अच्छे परिणाम आएंगे।

    माओवादी बड़ी संख्या में आत्मसपर्ण कर रहे हैं। वे फिर से माओवाद के रास्ते पर न जाएं, इसके लिए आप क्या कर रहे हैं?

    सरकार ने नक्सलवाद के खिलाफ ठोस नीति बनाई है, जो हथियार डालकर सरेंडर करेगा, उसे छह महीने तक सरकार की निगरानी में रखा जाएगा। सरकार उसकी रिहैबिलिटेशन, कौशल विकास और पुनर्वास की पूरी व्यवस्था देखेगी। लेकिन ध्यान रहे कि अगर कोई फिर से बंदूक उठाएगा तो सुरक्षा बल कहीं गए नहीं हैं। वे माओवादियों को माकूल जवाब देना भी जानते हैं।


    आपने आपराधिक न्याय के तीन नए कानून लाकर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बड़े परिवर्तन किए। ये कानून एक जुलाई 2024 से देशभर में लागू हो गए हैं। अभी इनकी क्या स्थिति है?


    भारत की न्याय व्यवस्था अब साक्ष्य आधारित और आधुनिक हो रही है। तीन नए कानूनों ने न्याय प्रणाली को ठोस आधार दिया है। अब तक इनके तहत 38 लाख से अधिक एफआइआर दर्ज की जा चुकी हैं। यह इस बदलाव की सफलता का प्रमाण है। देशभर में 15 लाख 59 हजार पुलिसकर्मियों और 1,100 से अधिक फारेंसिक विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया गया है, जिससे दोष सिद्धि दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आने वाले दिनों में, जब ये तीनों कानून देशभर में शत-प्रतिशत क्षमता के साथ लागू होंगे, तब न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता, गति और भरोसे का एक नया अध्याय शुरू होगा।


    आपने बार-बार कहा है कि नशे के खिलाफ आप निरंतर कार्य कर रहे हैं, पर ड्रग्स अभी भी युवाओं तक पहुंच रहे हैं। आपने कहा था कि अब बड़े ड्रग कार्टेल पकड़े जाएंगे। क्या माओवादी अभियान की तरह नशामुक्त-भारत अभियान की कोई डेडलाइन है?


    पिछले चार वर्षों से ड्रग्स के खिलाफ संगठित तरीके से अभियान चलाया जा रहा है। जिला और तहसील स्तर से लेकर केंद्र तक एक समन्वित तंत्र स्थापित किया गया है। पिछले तीन वर्षों में न सिर्फ जब्त होने वाली ड्रग की मात्रा बढ़ी है, बल्कि तस्करों की गिरफ्तारी में भी लगातार वृद्धि देखी गई है। अगला चरण कार्टेलों तक पहुंच बनाकर उनके नेटवर्क को ध्वस्त करना है ताकि तस्करी का स्थायी ढांचा टूट जाए। देशभर में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कार्टेल के खिलाफ कार्रवाई करेंगी। तस्करी के तीन मुख्य मार्ग नदियों के रास्ते, पाकिस्तान मार्ग और म्यांमार मार्ग हैं। इन सभी पर रोकथाम के लिए ठोस उपाय लागू किए जा चुके हैं। सरकारी एजेंसियों और सुरक्षा बलों ने विस्तृत योजनाएं तैयार की हैं। लक्ष्य न सिर्फ कोशिश करना बल्कि उपलब्धियों के आधार पर सफलता हासिल करना है। जल्द ही भारत माओवाद मुक्त भी होगा और नशामुक्त भी।

    आपने कहा था कि भगोड़ा कोई भी हो, उसे वापस लाएंगे। लेकिन कई देशों के कानून भगोड़ा संबंधी हमारे देश के कानून के अनुकूल नहीं हैं। ऐसे में उन्हें वापस लाना कैसे संभव होगा?


    हम भगोड़ों को वापस लाने में पीछे नहीं हटे हैं। यह सच है कि अंतरराष्ट्रीय संधियां और विदेशी कानून भगोड़ों को वापस देश लाने में कठिनाइयां पैदा करते हैं, लेकिन हमने सीबीआइ में इसके लिए डेडिकेटेड डिपार्टमेंट स्थापित कर भगोड़ों के खिलाफ ब्लू-कार्नर और रेड-कार्नर नोटिस जारी करने, इंटरपोल के माध्यम से गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण तक की पूरी प्रक्रिया को तेज कर दिया है। सरकार ने संबंधित एजेंसियों के साथ दो-दिवसीय वर्कशाप कर एक सटीक एसओपी बनाया है।


    2019 के बाद से इस प्रक्रिया में और भी तेजी लाई गई, जिसके सकारात्मक परिणाम भी आए हैं। 2019 से अब तक 157 भगोड़ों को वापस लाया जा चुका है। साल 2025 इस दिशा में महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस साल सबसे अधिक 45 भगोड़ों के प्रत्यर्पण का लक्ष्य हम छूने जा रहे हैं। जिन पर विदेश में मुकदमे चल रहे हैं, उनकी न्यायिक प्रक्रिया जारी है। कुछ पर अभी भी कार्रवाई चल रही है। यूपीए के समय हमारी एजेंसियों का डर नहीं था, आज मोदी सरकार भगोड़ों का पीछा भी करती है, उनके खिलाफ अदालतों में केस लड़ती है और उन्हें न्यायायिक प्रक्रिया के तहत देश की जेलों तक लाया जा रहा है।  

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