सीट शेयरिंग और उम्मीदवारों के चयन में कहां फंस रहा पेच, बिहार कांग्रेस में क्यों मचा घमासान?
बिहार कांग्रेस में सीट बंटवारे और उम्मीदवार चयन को लेकर घमासान मचा है। कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है क्योंकि उन्हें लगता है कि पार्टी को उम्मीद से कम सीटें मिली हैं और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई। कृष्णा अल्लावरू पर अनदेखी का आरोप है, जिससे कार्यकर्ताओं में आक्रोश है।
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बिहार में महागठबंधन के बीच सीट बंटवारे की अंतिम क्षण तक चली खींचतान के दरम्यान उम्मीदवारों की घोषणा में देरी समेत इनके चयन की कसौटियों को लेकर सूबे के नेताओं-कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी और असंतोष है। पहचे चरण के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने में जहां अब महज कुछ घंटे रह गए हैं और पार्टी सीट और टिकट फाइनल करने की जद्दोजहद में उलझी है वहीं दूसरी ओर बिहार कांग्रेस के कार्यकर्ता उम्मीदवारों के चयन प्रक्रिया में गंभीर खामियों का दावा कर सवाल उठा रहे हैं।
सीट बंटवारे में राजद की सियासी दांव-पेंच को नहीं भांप पाने और उम्मीदवारों चयन के पैमाने की अपारदर्शिता दोनों के लिए बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को पार्टी नेता और कार्यकर्ता कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। इसको लेकर पार्टी में बढ़ रही अंदरूनी नाराजगी का आलम यह है कि प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेता आशंका जताने लगे हैं कि पार्टी उम्मीदवारों के एलान के बाद कार्यकर्ताओं का गुस्सा उबाल बनकर फूटेगा। कांग्रेस रणनीतिकारों को भी इसकी भनक लग गई है शायद इसीलिए कई टिकट तय होने के बावजूद आधिकारिक घोषणा में उचित वक्त का इंतजार किया जा रहा है।
कांग्रेस में सीट बंटवारे पर घमासान
बिहार कांग्रेस के तमाम नेताओं का मानना है कि सीट बंटवारे में जितनी सीटें पार्टी के खाते में आयी है वह उम्मीद से काफी कम है। खासकर पिछले कुछ महीनों में सूबे में राहुल गांधी की सक्रियता तथा वोटर अधिकार यात्रा ने बिहार में कांग्रेस नेताओं-कार्यकर्ताओं को जिस तरह गतिशील किया उसमें पार्टी को अधिक सीट मिलने की अपेक्षा थी। प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी अल्लावरू भी प्रारंभ से कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे थे। राज्य की लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवारी के लिए तीन से चार संभावित प्रभावी दावेदारों को सामने लाने की उनकी कसरत इसका पुख्ता प्रमाण था। मगर महागठबंधन के सीट बंटवारे की रस्साकशी में मनमाफिक सीट हासिल करने की कांग्रेस की मुराद पूरी नहीं हुई है।
ऐसे में पिछले छह-आठ महीने से तन, मन और लाखों रूपए का धन खर्चकर टिकट की उम्मीद लगाए सैकड़ों लोगों के सपने चकनाचूर हो गए हैं और उनका आक्रोश गुबार बन रहा है। बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा ने इस बारे में कहा कि कार्यकर्ताओं में आक्रोश है कि उनके हिसाब से गठबंधन में पार्टी को सीट नहीं मिली है और उम्मीदवारी का पैमाना किसी को मालूम ही नहीं। कुछ अवांछित लोग सिस्टम पर हावी हैं और गठबंधन में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सम्मान की अनदेखी की गई है। झा ने सवाल उठाते हुए कहा कि आलाकमान को यह देखना होगा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को इस मुश्किल में डालने के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है।
उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर सवाल
मुंगेर, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा आदि कई जिलों के टिकट दावदारों ने अपनी अनदेखी किए जाने को लेकर सवाल उठाते हुए अनौचारिक बातचीत में दावा किया कि प्रत्याशी चयन की कसौटी क्या है किसी को मालूम ही नहीं।जबकि प्रभारी बनने के बाद अल्लावरू ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि टिकट लेना है तो हर घर पर कांग्रेस का झंडा लगाने, माई-बहिन योजना का गांव-गांव प्रचार करने से लेकर वोटर अधिकार यात्रा के बारे में घर-घर जाकर बताने जैसे अनेक टास्क दिए। इसमें टिकट दावेदारों ने अपने संसाधन से लाखों-लाख खर्च भी किए मगर अब उन्हें मंझधार में छोड़ दिया गया है और अल्लावरू तो फोन भी नहीं उठाते।
दावेदारी की होड़ में पिछड़े सारण प्रमंडल के एक कांग्रेसी ने अपना आक्रोश जाहिर करते हुए कहा कि उम्मीदवारी का लालच देकर काम कराया मगर बड़े लोगों ने मिलकर टिकट फिक्स कर लिया। इसका स्वाभाविक रूप से कांग्रेस को नुकसान होगा और जिन लोगों ने लाखों लगाए है अब वे जाहिर तौर पर उम्मीदवार को हराने में लगेगा। उनका कहना था कि अल्लावरू ने अपने हिसाब से चुतराई दिखाई हो मगर वास्तव में चुनाव के दरम्यान ऐसा कर कांग्रेस के लिए सियासी बारूद बिछा दिया है। मुंगेर के एक दावेदार ने कहा कि समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जिस तरह शोषण और अनदेखी हुई है उसे देखते हुए टिकटों की घोषणा के बाद आक्रोश फूटना तय है।
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