स्वास्थ्य व शिक्षा में पिछले एक दशक में लंबी छलांग, डाक्टरों और नर्सों की कमी दूर करने में काफी हद तक मिली सफलता
आजादी के समय देश में डाक्टरों की कुल संख्या महज 61840 थी जो आज 13 लाख से अधिक है। इसमें चार लाख से अधिक की बढ़ोतरी पिछले एक दशक में हुई है। इस बढ़ोतरी के साथ आज देश प्रति 864 व्यक्ति पर एक डाक्टर है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : पिछले 75 सालों में भारत ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में विकास की लंबी दूरी तय की है। आजादी के समय लोगों की औसत आयु 37 साल से दोगुनी होकर आज 70 साल से अधिक हो चुकी है और नवजात बच्चे की मौत में पांच गुना तक कमी आई है और शिशु मृत्युदर प्रति एक लाख जन्म पर 146 से घटकर 30 पर आ गई है। खासतौर पर पिछले एक दशक में डाक्टरों से लेकर कालेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या में डेढ़ गुना बढ़ोतरी के साथ भारत ने लंबी छलांग भी लगाई है।
आजादी के समय देश में डाक्टरों की कुल संख्या महज 61840 थी, जो आज 13 लाख से अधिक है। इसमें चार लाख से अधिक की बढ़ोतरी पिछले एक दशक में हुई है। इस बढ़ोतरी के साथ आज देश प्रति 864 व्यक्ति पर एक डाक्टर है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से भी बेहतर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रति एक हजार व्यक्ति पर एक डाक्टर का मानक तय कर रखा है। पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में मेडिकल कालेज खोले गए हैं, जिनमें 75 जिला अस्पतालों को मेडिकल कालेज के रूप में परिवर्तित करना भी शामिल है। इसके साथ ही मौजूदा मेडिकल कालेजों में सीटों की संख्या भी बढ़ाई है। इसके कारण अंडरग्रेजुएट मेडिकल सीटों की संख्या 2014 में 55 हजार से बढ़कर 2021 में 86 हजार हो गई और पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की संख्या भी 35 हजार से बढ़कर 58 हजार तक पहुंच गई है।
एक लाख के पार होगी अंडरग्रैजुएट सीटों की संख्या
2022 में अंडरग्रैजुएट सीटों की संख्या एक लाख के पार पहुंचने की उम्मीद है। जाहिर है आने वाले कुछ सालों में डाक्टरों की उपलब्धता और भी तेजी से बढ़ेगी। डाक्टरों की साथ-साथ नर्सों की संख्या भी पिछले 75 सालों में तेजी से बढ़ी है। आजादी के समय देश में महज 16,550 नर्स थीं, जो बढ़कर 33.41 लाख हो गई हैं। इस तरह से देश में प्रति एक हजार व्यक्ति पर दो नर्स मौजूद हैं। इतनी बड़ी संख्या में डाक्टरों और नर्सों की मौजूदगी के बावजूद इनकी संख्या बढ़ाए जाने की जरूरत के बारे में पूछे जाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बड़े शहरों में इनकी मौजूदगी काफी ज्यादा है और ग्रामीण इलाकों में नगण्य, इस असमानता को दूर करने के लिए जिला अस्पतालों को मेडिकल कालेज में परिवर्तित करने का फैसला किया गया।
शिक्षा के क्षेत्र में पिछले एक दशक में भारत की लंबी छलांग
इसके साथ ही अन्य तकनीकी विषय के साथ-साथ मेडिकल की पढ़ाई भी भारतीय भाषाओं में शुरू करने का फैसला किया गया है, ताकि स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित डाक्टरों की कमी को पूरी की जा सके। वहीं विदेश में भारतीय डाक्टरों और नर्सों की भारी मांग को देखते हुए इनकी सीटें बढ़ाई गईं हैं। स्वास्थ्य के अलावा शिक्षा के क्षेत्र में पिछले एक दशक में भारत ने लंबी छलांग गई है। आजादी के समय देश में 27 यूनिवर्सिटी और 578 कालेज थे, जो आज क्रमश 1043 और 42343 हैं। इनमें भी 422 यूनिवर्सिटी और लगभग 10 हजार कालेज पिछले एक दशक खोले में गए हैं।
इसी तरह से साक्षात्कार की दर भी 18 फीसद से बढ़कर 75 फीसद को पार कर गई है। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि स्कूली शिक्षा में लड़कों और लड़कियों के बीच के अंतर को खत्म करने में हासिल की गई है। 1950 में प्राइमरी स्कूल में प्रति 10 लड़कों में चार लड़कियां और अपर प्राइमरी यानी मिडिल स्कूल में प्रति 10 लड़कों में दो लड़कियां ही पढ़ती थी। लेकिन आज की तारीखी में दोनों ही स्तरों पर स्कूलों में लड़कियों की संख्या लड़कों से कहीं ज्यादा है।
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