2024 की चुनावी टीम बनाने में खरगे के सामने संतुलन बनाने की बड़ी चुनौती, कई मोर्चे पर कांग्रेस हुई थी विफल
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के सामने भारत जोड़ो यात्रा से पार्टी की सियासी प्रासंगिकता को मिली संजीवनी के साथ अगले लोकसभा चुनाव में नतीजे देने वाली प्रभावशाली टीम का गठन करना सबसे बड़ी संगठनात्मक चुनौती है। (फोटो एपी)

नई दिल्ली, संजय मिश्र। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी के 85वें प्लेनरी सत्र की तैयारियों के लिए शनिवार को गठित अलग-अलग समितियों में पार्टी के अंदरूनी समीकरणों में संतुलन साधने की कोशिश की हो मगर 2024 की अपनी चुनावी टीम के गठन में संतुलन बनाने की उनकी चुनौती कहीं ज्यादा बड़ी है। कई अहम और बड़े राज्यों के प्रभारी महासचिवों की पिछले कुछ सालों में सामने आयी विफलताओं ने इन सूबों में कांग्रेस की राजनीतिक सेहत पर प्रतिकूल असर डाला है।
रायपुर अधिवेशन के तत्काल बाद खरगे के सामने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस की सियासी प्रासंगिकता को मिली संजीवनी के साथ अगले लोकसभा चुनाव में नतीजे देने वाली प्रभावशाली टीम का गठन करना सबसे बड़ी संगठनात्मक चुनौती है।
राजनीतिक चुनौतियों के साथ-साथ लंबे अर्से से अंदरूनी खींचतान से जूझती रही कांग्रेस फिलहाल इस बात से जरूर राहत महसूस कर रही है कि मल्लिकार्जुन खरगे के अध्यक्ष चुने जाने के बाद पार्टी में असंतोष का दौर थम गया है। मगर यह भी हकीकत है कि पार्टी के तमाम नेताओं और अलग-अलग खेमों की नजर कांग्रेस कार्यसमिति से लेकर एआईसीसी में टीम खड़गे के गठन पर लगी है। चुनाव के जरिए हो या फिर मनोनयन की परंपरा दोनों परिस्थितियों में नई कार्यसमिति में संतुलन बनाने की राह आसान नहीं है।
खरगे के समक्ष संतुलन बनाने की चुनौती
संगठन के अहम ढांचों से लेकर अपनी चुनावी टीम का गठन करने में खरगे के सामने तीन अंदरूनी समीकरणों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती है। कांग्रेस के मुश्किल दौर में निर्वाचित अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की सम्मानजनक राजनीतिक वापसी के लिए खरगे को 2024 के लिए एक ऐसी प्रभावशाली टीम चाहिए जो सत्ता और संगठन की भाजपा की प्रचंड दोहरी ताकत और रणनीति की धार को थाम सके।
आधा दर्जन राज्यों में होने वाला है चुनाव
इस साल अभी आधा दर्जन बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। जाहिर तौर पर खरगे को अपनी पसंद के ऐसे क्षमतावान नेताओं को नई टीम में जगह देनी होगी। मगर ऐसा करने के दौरान सोनिया गांधी के पुराने भरोसेमंद नेताओं के साथ-साथ राहुल गांधी की पसंद के चेहरों को दरकिनार करने का जोखिम भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं उठाएंगे।
खरगे के कामकाज में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करने का राहुल ने चुनाव के तत्काल बाद ऐलान कर दिया था और वे अमल करते भी नजर आए हैं। मगर कांग्रेस में गांधी परिवार की अहमियत को देखते हुए खरगे भी पार्टी के इस चुंबक का संतुलन बनाए रखने में कोई कसर छोड़ेंगे इसकी गुंजाइश नहीं है।
इसमें उनके सामने बड़ी चुनौती एक समय असंतुष्ट खेमे में गिने जाने वाले नेताओं के अलावा उन तमाम नेताओं को भी जगह देने की होगी, जो किसी खेमेबंदी से दूर पार्टी के प्रति निष्ठावान रहते हुए संघर्ष करते रहे हैं। इनकी अनदेखी पार्टी को भारी पड़ेगी खासकर यह देखते हुए कि कई राज्यों में एआईसीसी की शीर्ष टीम का हिस्सा रहे कई महासचिव और प्रभारी सूबे के संगठन और नेताओं के बीच समन्वय साधने में लगातार विफल साबित हुए हैं।
अंतर्कलह से जूझ रही थी कांग्रेस
पंजाब से लेकर राजस्थान, महाराष्ट्र से लेकर तेलंगाना और हरियाणा से लेकर उत्तराखंड जैसे राज्यों में एआईसीसी की शीर्ष टीम की विफलताओं के दौर का नमूना देशभर के तमाम कांग्रेसियों के सामने है।
राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच पहले अविनाश पांडे नाकाम रहे तो अजय माकन को जिम्मा दिया गया, लेकिन माकन भी इस कहानी को नहीं बदल पाए तो अब पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा को चुनावी साल में राजस्थान कांग्रेस की लड़ाई को सुलझाने का दायित्व दिया गया है। पंजाब में पिछले साल चुनाव से ठीक पहले हरीश रावत की जगह हरीश चौधरी को प्रभारी बनाया गया और सूबे में पार्टी की चुनावी लुटिया डूब गई।
तेलंगाना कांग्रेस के झगड़े को सुलझाने में प्रभारी मणिक्कम टैगोर कमजोर साबित हुए तो हाल में माणिकराव ठाकरे को जिम्मा सौंपा गया है। हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुडा के कद के सामने विवेक बंसल की एक न चली तो अब शक्ति सिंह गोहिल को कमान दी गई है।
कांग्रेस को अप्रत्याशित हार का करना पड़ा सामना
उत्तराखंड के चुनाव में प्रभारी देवेंद्र यादव और हरीश रावत के बीच इतनी ठनी कि जीत की प्रबल दावेदार रही कांग्रेस को अप्रत्याशित हार लगी और इसे एक बड़ा कारण माना गया। 2024 के चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और खरगे के पास अब राज्यों में इस तरह का प्रयोग करने की जोखिम लेने की गुंजाइश नहीं है और ऐसे में उनके लिए संतुलन साधने की राह आसान नहीं है।
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