'कमी कानून में नहीं, एजेंसी के दुरुपयोग में', ED जांच मामले में भूपेश बघेल को SC से राहत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मनी लांड्रिंग अधिनियम के एक प्रविधान के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। अदालत ने बघेल को हाईकोर्ट जाने की सलाह दी और कहा कि कानून में कोई दिक्कत नहीं है बल्कि समस्या इसके गलत इस्तेमाल से है। कोर्ट ने मनी लांड्रिंग कानून (पीएमएलए) की धारा 44 की संवैधानिक वैधता की जांच करने से भी इनकार कर दिया।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मनी लांड्रिंग अधिनियम के एक प्रविधान के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई से इनकार कर दिया। यह प्रविधान ईडी को धन शोधन मामलों में पूरक चार्जशीट दाखिल करने का अधिकार देता है।
बघेल को हाईकोर्ट जाने की सलाह देते हुए कोर्ट ने कहा कानून में दिक्कत नहीं है, बल्कि समस्या उसके गलत इस्तेमाल से है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जायमाल्या बागची की पीठ ने मनी लांड्रिंग कानून (पीएमएलए) की धारा 44 की संवैधानिक वैधता की जांच करने से इनकार करते हुए कहा कि सत्य की खोज में साक्ष्यों को उजागर करने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।
कोर्ट ने कहा कि यदि बघेल को ऐसा लगता है कि ईडी अधिकारी 2022 के उच्चतम न्यायालय के निर्णय का पालन नहीं कर रहे हैं, तो वे उच्च न्यायालय में अपनी बात रख सकते हैं।
क्या थी बघेल की याचिका?
भूपेश बघेल की याचिका मनी लांड्रिंग कानून की धारा 44 में दिए गए एक स्पष्टीकरण के खिलाफ थी। इस स्पष्टीकरण के मुताबिक, अगर ईडी किसी केस में एक शिकायत दर्ज कर चुकी है, तो आगे की जांच में मिले नए सबूतों के आधार पर वह एक और शिकायत भी दर्ज कर सकती है। इसमें यह जरूरी नहीं है कि नए आरोपित का नाम पहले वाली शिकायत में हो।
बघेल का कहना था कि इस प्रविधान के जरिए ईडी एक ही मामले में टुकड़ों-टुकड़ों में अलग-अलग शिकायतें दर्ज करती रहती है। इससे केस लंबा खिंचता है, सुनवाई में देरी होती है और आरोपी का निष्पक्ष सुनवाई का हक प्रभावित होता है। अदालत ने ये कहा न्यायमूर्ति जायमाल्या बागची ने साफ कहा कि ये प्रविधान एक 'सक्षम बनाने वाला' प्रावधान है। समस्या कानून में नहीं, बल्कि एजेंसी द्वारा उसके दुरुपयोग में है।
उन्होंने कहा कि जांच हमेशा अपराध के आधार पर होती है, न कि केवल किसी एक आरोपी के खिलाफ। अगर आगे की जांच से सच सामने आता है, तो उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने भी यही कहा कि आगे की जांच आरोपी के हित में भी हो सकती है, क्योंकि इसमें यह भी साबित हो सकता है कि वह अपराध में शामिल नहीं है।
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