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प्लास्टिक कचरे से निजात दिलाएगा भोपाल मॉडल, बढ़ेगी हरियाली तो आएगी खुशहाली

बिगड़ते पर्यावरण को दुरुस्त करने के भारत के प्रयासों के लिए 3 अक्टूबर, 2018 को पीएम नरेंद्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार चैंपियंस ऑफ अर्थ अवॉर्ड से नवाजा गया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 09:50 AM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 09:50 AM (IST)
प्लास्टिक कचरे से निजात दिलाएगा भोपाल मॉडल, बढ़ेगी हरियाली तो आएगी खुशहाली
प्लास्टिक कचरे से निजात दिलाएगा भोपाल मॉडल, बढ़ेगी हरियाली तो आएगी खुशहाली

भोपाल, रामयश केवट। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में प्लास्टिक कचरे से बनकर तैयार हुईं किफायती, टिकाऊ और सुंदर सड़कें सभी का मन मोह रही हैं। वहीं सीमेंट फैक्ट्रियों को कोयले का विकल्प भी मिल गया है। प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की यह व्यवस्था देशभर में लागू होने जा रही है। 100 शहरों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है। यह मॉडल है ही इतना बेहतर कि इससे प्लास्टिक कचरे का पक्का इंतजाम हो जा रहा है और आय भी हो रही है।

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भोपाल में शहर से निकलने वाली अमानक पॉलीथिन और प्लास्टिक से अब तक 3,222 किमी शहरी व ग्रामीण सड़कों का निर्माण हो चुका है। शहर से रोजाना 10 से 12 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा एकत्र किया जाता है। इसे सीमेंट फैक्ट्रियों को बेचा जाता है। जहां प्लास्टिक का उपयोग कोयले के विकल्प के रूप में होता है।

निर्धारित से अधिक तापमान पर प्लास्टिक का ईंधन के रूप में उपयोग करने से वायु प्रदूषण नहीं हो पाता है। इसके अलावा प्लास्टिक मेंब्रेन से सड़कें भी बनाई जा रही हैं। वर्ष 2017 और 2018 के स्वच्छ सर्वेक्षण में प्लास्टिक निष्पादन के कारण इंदौर और भोपाल को क्रमश: पहला और दूसरा स्थान मिला। वर्तमान में मध्य प्रदेश के 34 नगरीय निकायों में भोपाल का यह मॉडल अपनाया जा चुका है।

ऐसे होता है संकलन
कचरा बीनने वालों (रेग पिकर्स) की पूरी फौज इस काम को अंजाम देती है। घर-घर से कचरा उठाने की प्रणाली विकसित की गई है। नगर निगम ने 2,000 साइकिल रिक्शे भी मुहैया कराए हैं। कचरा बीनने वालों को इससे रोजगार मिला है। संकलित प्लास्टिक को निस्तारण प्लांट में भेजा जाता है। यहां वैज्ञानिक विधि से शोधन के बाद इसे सीमेंट प्लांटों में ईंधन के रूप में उपयोग के अलावा सड़क बनाने के लिए मेंब्रेन चिप्स में ढाला जाता है।

इस तरह होता निस्तारण
प्लास्टिक कचरे को 1400 डिग्री तापमान पर जलाए जाने पर विषैली गैस की मात्रा शून्य रहती है। पांच किलो कोयला से जितना तापमान मिलता है, उतना एक किलो प्लास्टिक से मिल रहा है। पहला प्लांट सार्थक संस्था ने शुरू किया। शुरुआत में 1765 कचरा बीनने वालों से रोजाना पांच से सात मीट्रिक टन प्लास्टिक एकत्र होना शुरू हुआ। इसी बीच राज्य सरकार ने सीमेंट फैक्ट्रियों को ईंधन के रूप में दो प्रतिशत प्लास्टिक के उपयोग की अनिवार्यता कर दी। कोयले से सस्ता होने के कारण प्लास्टिक की डिमांड बढ़ गई। नीति आयोग और यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने सहयोग के लिए सहमति दे दी। वर्तमान में प्रदेश की 12 सीमेंट फैक्ट्रियों में यहां से प्लास्टिक भेजा जा रहा है।

देश भर में लागू होगा
पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इसे देशभर में लागू करने पर सहमति जताई है। अब तक 100 शहरों ने इसे अपनाने पर रजामंदी जताई है।

डामर से साथ प्लास्टिक
एक किलो डामर की कीमत 46 रुपये है, जबकि प्लास्टिक 5 रुपये किलो मिलता है। डामर से बनी सड़क दो से तीन साल चल पाती है, जबकि डामर के साथ प्लास्टिक के उपयोग से 9 से 10 साल तक सड़क की उम्र बढ़ जाती है। प्लास्टिक मिलाने से रोड की लागत में भी कमी आती है और सड़कों की उम्र भी बढ़ जाती है। काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में डामर की सड़क नहीं चलती, लिहाजा वहां सीसी रोड बनाई जाती है। इसमें रोड के सबबेस में प्लास्टिक मेंबे्रन के उपयोग से सीसी रोड की उम्र कई सालों तक बढ़ जाती है। प्लास्टिक वाली पुरानी सड़क से निकलने वाले मलबे को भी रीसाइकल किया जा सके, युक्ति तलाशी जा रही है।

यहां हुआ उपयोग
नगर निगम के नगरयंत्री ओपी भारद्वाज बताते हैं कि बड़े तालाब पर केबल स्टे ब्रिज और हबीबगंज आरओबी की सतह को प्लास्टिक मेंब्रेन का उपयोग कर वाटर पू्रफ बनाया गया है। कुल 3,222 किमी सड़कें इससे बन चळ्की हैं। सीसी रोड में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का उपयोग किया गया है।



बढ़ेगी हरियाली तो आएगी खुशहाली
बिगड़ते पर्यावरण को दुरुस्त करने के भारत के प्रयासों के लिए 3 अक्टूबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार चैंपियंस ऑफ अर्थ अवॉर्ड से नवाजा गया। देश स्वच्छता की ओर अग्रसर है। लोग जागरूक हो रहे हैं। संसाधनों के उचित इस्तेमाल और ईंधन-ऊर्जा के स्वच्छ रूपों से पर्यावरण बचाने की अपनी जिम्मेदारी को हम तैयार हैं।

स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि
पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में सौर और पवन ऊर्जा समेत अक्षय ऊर्जा के विभिन्न स्नोतों से बिजली उत्पादन की कुल क्षमता में रिकार्ड 11,788 मेगावाट की वृद्धि हुई है। यह अब तक किसी एक वर्ष में जोड़ी गई सर्वाधिक क्षमता है।

बड़े लक्ष्य

  • भारत ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 30 से 35 फीसद कटौती का रखा लक्ष्य
  • 2030 तक देश में वन क्षेत्र को 50 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य
  • 2030 तक ई-वाहनों पर निर्भरता का लक्ष्य

स्वच्छ भारत मिशन

  • पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए दो अक्टूबर 2014 को पीएम मोदी ने इस योजना की शुरुआत की।
  • इसके तहत ग्रामीण इलाकों में 2019 तक देश को खुले में शौच से पूर्णरूप से मुक्त किया जाना है।
  • इसके तहत देश में आठ करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाए गए। 25 राज्य खुले में शौच से मुक्त हुए।

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन

  • 2015 में भारत ने विश्व में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल है। अब तक इसमें 121 देश जुड़ चुके हैं।
  • 11 मार्च, 2018 को नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया।
  • इसमें भारत ने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के अंतर्गत 175 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा क्षमता जुटाने के लिए संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा। इस नवीकरणीय ऊर्जा में 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य है।
  • घरों की छत पर सोलर प्रोजेक्ट को बढावा देने के लिए सृष्टि योजना के तहत सिर्फ दस किलोवॉट तक के सोलर प्रोजेक्ट को वित्तीय मदद मिलेगी। 2022 तक 40 हजार मेगावॉट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है।  

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