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    Bhopal Gas Tragedy: यूका की जमीन में दबा कचरा घोल रहा लोगों की जिंदगी में 'जहर'

    By Nancy BajpaiEdited By:
    Updated: Sun, 02 Dec 2018 09:50 AM (IST)

    Bhopal Gas Tragedy, भोपाल गैस त्रासदी को 34 साल। यूनियन कार्बाइड (यूका) का कारखाना रोज आसपास की 42 बस्तियों में जहर घोल रहा है।

    Bhopal Gas Tragedy: यूका की जमीन में दबा कचरा घोल रहा लोगों की जिंदगी में 'जहर'

    भोपाल, सौरभ खंडेलवाल। Bhopal Gas Tragedy, भोपाल गैस त्रासदी को 34 साल हो गए। इतने साल बाद भी यूनियन कार्बाइड (यूका) का कारखाना त्रासदी की याद दिलाते हुए रोज आसपास की 42 बस्तियों में जहर घोल रहा है। इसकी वजह है, सालों तक इस कारखाने से निकला जहरीला कचरा, जिसे कंपनी ने जमीन के नीचे दबा दिया था। यह जहर रिसकर पहले 15, फिर 30 और अब 42 बस्तियों तक पहुंच चुका है, जिससे भूजल दूषित हो गया है। इस जहरीले कचरे को जमीन के अंदर दबाने की प्रक्रिया 1969 से कारखाने की शुरुआत से ही चल रही थी। यह कचरा कारखाने के गोदाम में पड़े 340 मीट्रिक टन कचरे से ज्यादा खतरनाक है। गौरतलब है कि दो और तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को विषैली गैस रिसी थी।

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    जहरीले कचरे के कारण 42 बस्तियों का भूजल प्रदूषित 
    इस साल अप्रैल में ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीलॉजी रिसर्च (आइआइटीआर) ने रिपोर्ट दी थी कि यूका के आसपास की 42 बस्तियों का भूजल जहरीले कचरे की वजह से बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुका है। 34 साल में कई बार भूजल को लेकर रिपोर्ट आईं, लेकिन कचरे के निष्पादन के लिए कभी कोई कदम नहीं उठाया गया। अब इन बस्तियों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर काम करने वाली संस्था 'संभावना ट्रस्ट' ने एक शोध सामने रखा है कि गैस पीड़ितों में मृत्यु की दर त्रासदी के गैर प्रभावितों की तुलना में 28 फीसद ज्यादा है। शोध में कहा गया है कि गैस कांड से गैर प्रभावितों की तुलना में प्रभावित लोग 63 फीसद ज्यादा बीमार हैं और इनमें सांस की तकलीफ, घबराहट, सीने में दर्द, चक्कर, जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं आम हैं।

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    गोडाउन के कचरे की बजाय जमीन में दबे कचरे पर ध्यान देना जरूरी
    यूका के जहरीले कचरे को हटाने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहीं सामाजिक कार्यकर्ता रचना ढींगरा कहती हैं कि त्रासदी स्थल पर दो जगह कचरा है।

    • पहला: गोडाउन में रखे कचरे का अभी बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इसी गोडाउन के कचरे को हटाने को लेकर केस चल रहा है। यह भूजल को प्रदूषित नहीं कर रहा है।
    • दूसरा: 68 एकड़ क्षेत्रफल के परिसर में कंपनी द्वारा 1969 से 1984 तक जमीन के अंदर जहरीला कचरा दबाया गया, जिस पर ध्यान देना जरूरी है।

    विदेशियों से कचरा हटवाने से कर दिया था मना
    भोपाल ग्रुप फॉर इनफॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षड़ंगी बताते हैं कि जमीन में दबे इस जहरीले कचरे पर नेशनल जियोग्राफिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल एनवायरमेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट शोध कर चुके हैं। इन दोनों संस्थाओं की रिपोर्ट पर यूपीए सरकार ने टियर रिव्यू कमेटी बनाई। कमेटी ने बताया कि यह रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि संस्थाओं ने सिर्फ नौ फीसद हिस्से के नमूने लिए। इसके बाद कुछ समय पहले गैर सरकारी संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम से जमीन में दबे कचरे को हटाने की अपील की। उसने कहा कि यदि भारत सरकार अपील करती है तो हमारे पास इस कचरे को हटाने के संसाधन हैं। इस मामले में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से बात की गई तो उन्होंने विदेशियों से मदद लेने से इन्कार कर दिया।

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    गैस पीड़ितों के मामले में मानवीय पक्ष भी नजरअंदाज हुआ: स्वराज पुरी
    भोपाल गैस कांड को लेकर कई सवालों के अब तक जवाब नहीं मिले हैं। हादसे में हजारों लोग मारे गए, हजारों पीड़ित अब भी हमारे सामने मौजूद हैं। उन्हें आर्थिक, सामाजिक और जिस गुणवत्ता के इलाज की जरूरत थी, वह नहीं मिल पाया। गैस त्रासदी में मानवीय पक्ष भी नजरअंदाज हो गया। यह बेबाक विचार त्रासदी के दौरान भोपाल के पुलिस अधीक्षक रहे स्वराज पुरी ने दैनिक जागरण के सहयोगी प्रकाशन नईदुनिया से बातचीत में व्यक्त किए। उस दौरान भोपाल के कलेक्टर रहे मोती सिंह ने प्रतिक्रिया देने से इन्कार कर दिया।

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