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    जानें, भीम आर्मी का पूरा सच, चंद्रशेखर आजाद को क्‍यों प्रिय है 'रावण'

    By Ramesh MishraEdited By:
    Updated: Fri, 14 Sep 2018 03:57 PM (IST)

    भीम आर्मी की औपचारिक रूप से स्थापना वर्ष 2015 में हुई थी। इस संगठन का मकसद सहारनपुर में दलितों के हितों की रक्षा और दलित समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना था।

    जानें, भीम आर्मी का पूरा सच, चंद्रशेखर आजाद को क्‍यों प्रिय है 'रावण'

    नई दिल्ली [ जेएनएन ]। सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में हुई हिंसा के बाद 'भीम आर्मी' और चंद्रशेखर आजाद का नाम सुर्खियों में है। आखिर क्‍या है भीम आर्मी। इसकी शुरुआत क्यों और कैसे हुई। समाज में वह किस तरह का बदलाव लाना चाहते हैं।

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    एएचपी कॉलेज भीम आर्मी का प्रेरक केंद्र बना

    सहारनपुर का एएचपी कॉलेज भीम आर्मी का प्रेरक केंद्र बना। इस कॉलेज में राजपूतों और दलितों में वर्चस्‍व की लड़ाई काफी पुरानी है। भीम आर्मी की औपचारिक रूप से स्थापना वर्ष 2015 में हुई थी। इस संगठन का मकसद सहारनपुर में दलितों के हितों की रक्षा और दलित समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना था।

    सहारनपुर के भादों गांव में संगठन ने पहला स्कूल भी खोला। हालांकि, इससे पहले भी संगठन के लोग दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में जंग के लिए तैयार रहते थे। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि ‘भीम आर्मी’ का आइडिया छुटमलपुर निवासी एक दलित चिंतक सतीश कुमार के मन में आया था। सतीश कुमार पिछले कई वर्षों से ऐसे संगठन बनाने की जुगत में थे, जो दलितों का उत्पीड़न करने वालों को करारा जवाब दे सके। लेकिन कहा जाता है कि उन्हें कोई दलित युवा पात्र नहीं मिला, जो इसकी कमान संभाल सके। ऐसे में उन्‍हें जब चंद्रशेखर मिले, तो उन्होंने चंद्रशेखर को ‘भीम आर्मी’ का अध्यक्ष बना दिया।

    कौन है चंद्रशेखर आजाद 

    भीम आर्मी के संस्‍थापक चंद्रशेखर आज़ाद 'रावण' पेशे से वकील है। चंद्रशेखर ने देहरादून से कानून की पढ़ाई की। दलित अधिकारों को लेकर चंद्रशेखर सोशल कैंपेन चलाते हैं। चंद्रशेखर ने अपने नाम के आगे रावण शब्‍द बाद में जोड़ा। दरअसल, चंद्रशेखर रामचरित मानस में रावण के करैक्‍टर से बेहद प्रभावित हैं। यही कारण है कि उन्‍होंने अपने नाम के आगे रावण शब्‍द जोड़ लिया।

    चंद्रशेखर खुद को 'रावण' कहलाना पसंद करते हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि रावण अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान के कारण सीता को उठा लाता है, लेकिन उनको भी सम्मान के साथ रखता है। भले ही समाज में रावण का चित्रण नकारात्मक किया जाता रहा हो, लेकिन जो व्यक्ति अपनी बहन के सम्मान के लिए लड़ सकता है और अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता है, वह ग़लत कैसे हो सकता है।