Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    समझौता एक्सप्रेस से मक्का मस्जिद धमाके तक.... ऐसे गढ़ी गई हिंदू आतंकवाद की कहानी; अदालत में खुल गई पोल

    Updated: Thu, 31 Jul 2025 08:49 PM (IST)

    संप्रग सरकार के दौरान भगवा आतंकवाद की कहानी बनाने की साजिश रची गई थी। 2008 के मालेगांव धमाके के बाद समझौता एक्सप्रेस और मक्का मस्जिद धमाकों की जांच को हिंदू आतंक की कहानी गढ़ने के लिए खोला गया। गृहमंत्री सुशील शिंदे ने भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया लेकिन अदालत में सभी आरोपी आरोपमुक्त हो गए।

    Hero Image
    यूपीए सरकार में हिंदू आतंक की कहानी को गढ़ने की कोशिश हुई थी (फोटो: जागरण)

    नीलू रंजन, जागरण, नई दिल्ली। संप्रग सरकार के दौरान 2008 से 2011 के बीच भगवा आतंकवाद की कहानी स्थापित करने के लिए बड़ी साजिश रची गई थी। 2008 में मालेगांव में हुए धमाके में साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के बाद 2007 में हुए समझौता एक्सप्रेस, अजमेर दरगाह और हैदराबाद की मक्का मस्जिद धमाके की जांच को नए सिरे से खोलकर हिंदू आतंक की कहानी को गढ़ने की कोशिश हुई थी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इसकी अंतिम परिणति 2013 में जयपुर में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में तत्कालीन गृहमंत्री सुशील शिंदे के भाषण में सामने आया जिसमें उन्होंने भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया। वैसे अदालत में एक-एक कर सभी मामलों में इस कहानी की पोल खुलती गई और सभी आरोपमुक्त होते गए।

    आतंकियों ने हाथ पर बांधा था कलावा

    इसे महज संयोग कहा जाए या बड़ी साजिश का हिस्सा कि 23 अक्टूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के एक महीने के भीतर 26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमला करने पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने हाथ पर कलावा बंधा रखा था। यदि आतंकी अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो इस हमले को भी हिंदू आतंकवाद की कहानी से जोड़ा जा सकता था।

    वैसे कसाब के गिरफ्तार होने के बाद हमले के पीछे आरएसएस और इजरायल खुफिया एजेंसी की साजिश होने की किताब लिखी गई, जिसके विमोचन में कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह भी शामिल थे। भगवा आतंकवाद की कहानी गढ़ने के साथ ही उस दौरान लश्करे तेयबा के आतंकियों को क्लीन चिट देने की भी कोशिश की गई थी।

    मोहन भागवत को भी फंसाने की थी तैयारी

    • अहमदाबाद में खुफिया विभाग की सूचना पर एटीएस के साथ मुठभेड़ में मारे गए इशरत जहां समेत तीन आतंकी का केस इसका उदाहरण है। गृहमंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में खुफिया सूचना के आधार पर इन्हें आतंकी बताते हुए सीबीआई जांच की जरूरत से इनकार किया था। लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री पी चिंदबरम के हस्तक्षेप के बाद एक महीने में हलफनामे को बदल कर तीनों के आतंकी होने के सबूत नहीं होने का दावा कर सीबीआई की जांच समर्थन किया।
    • इसके बाद सीबीआई ने इनके आतंकी होने के सूचना देने वाले गुजरात के राज्य खुफिया ब्यूरो के प्रमुख राजेंद्र कुमार के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी, जो उस समय खुफिया ब्यूरो में विशेष निदेशक बन गए थे। लेकिन उस समय गृह सचिव रहे आरके सिंह ने सीबीआइ को चार्जशीट दाखिल करने की जरूरी अनुमति देने से इनकार कर दिया था। बात सिर्फ आतंकी हमलों में साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानंद जैसे भगवाधारी साधु सन्यासी को आरोपी बनाने तक सीमित नहीं थी।
    • अजमेर शरीफ धमाके में आरएसएस और उसके प्रमुख मोहन भागवत को भी फंसाने की तैयारी कर ली गई थी। इस धमाके के आरोपियों का मजिस्ट्रेट के सामने 164 का बयान भी दर्ज करा लिया था जिसमें उसने धमाके की योजना बनाने के लिए हुई बैठक में मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार के शामिल होने का दावा किया था।

    यह भी पढ़ें- Malegaon Blast Case: 'RDX का सबूत नहीं, CDR का भी सर्टिफिकेट नहीं'; पढ़ें NIA कोर्ट के फैसले की खास बातें