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Bhagat Singh Jayanti 2022 : शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार, जो जगाते हैं देशप्रेम का जज्बा

Bhagat Singh Birth Anniversary 2022 शहीद भगत सिंह का आज 115वां जन्‍मदिन है। भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों और भाषणों ने गुलाम भारत के युवाओं को आजादी के लिए उकसा दिया और स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में शामिल किया।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Wed, 28 Sep 2022 09:28 AM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2022 12:19 PM (IST)
Bhagat Singh Jayanti 2022 : शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार, जो जगाते हैं देशप्रेम का जज्बा
शहीद भगत सिंह का आज जन्मदिन है (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। देश आज भगत सिंह का 115वां जन्‍मदिन मना रहा है। देश को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। अंग्रेज अधिकारियों से टक्कर लेने वाले भगत सिंह को सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। जेल में अंग्रेजी हुकूमत की प्रताड़ना झेलने के बाद भी भगत सिंह ने आजादी का मांग को जारी रखा।

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कोर्ट में केस के दौरान उन्हें मौका मिला कि वह देशभर में आजादी की आवाज को पहुंचा सकें। उन्हें अंग्रेजों ने फांसी की सजा सुनाई थी और तय तारीख से एक दिन पहले यानी 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी थी।

कहा जाता है कि जब भगत सिंह को फांसी दी जा रही थी, तो भी उनके चेहरे पर मुस्कान और गर्व था। आज उसी शहीद भगत सिंह की जयंती है। 28 सितंबर को जन्मे भगत सिंह के निधन वाले दिन को शहादत दिवस के तौर पर मनाया जाता है। भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों और भाषणों ने गुलाम भारत के युवाओं को आजादी के लिए उकसा दिया और स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में शामिल किया। भगत सिंह की जयंती के मौके पर जानिए उनके ऐसे ही क्रांतिकारी विचारों के बारे में, जो आप में बढ़ा देंगे देशभक्ति की भावना।

1- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।

2-राख का हर एक कण

मेरी गर्मी से गतिमान है

मैं एक ऐसा पागल हूं

जो जेल में भी आजाद है।

3-जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है,

दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।

4- कानून की पवित्रता तभी

तक बनी रह सकती है

जब तक वो लोगों की

इच्छा की अभिव्यक्ति करे।

किसान सिख परिवार में जन्म

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लयालपुर के बांगा (अब पाकिस्तान में) गांव के एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। पिता किशन सिंह अंग्रेज और उनकी शिक्षा को पहले से ही पसंद नहीं करते थे इसलिए बांगा में गांव के स्कूल में शुरूआती पढ़ाई के बाद भगत सिंह को लाहौर के दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया।

परिवार में ही थे क्रांतिकारी

भगत सिंह का परिवार उनके पैदा होने के पहले ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल था। खुद भगतसिंह के पिता और चाचा अजीत सिंह ने 1907 अंग्रेजों के कैनल कोलोनाइजेसन बिल खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया था और बाद में 1914-1915 में गदर आंदोलन में भी भाग लिया था। इस तरह से बालक भगत को बचपन से ही घर में क्रांतिकारियों वाला माहौल मिला था।

भगत सिंह से डरी अंग्रेजी हुकूमत

अंग्रेजी हुकूमत भरत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को लेकर हो रहे विरोध से डर गई थी। वह भारतीयों के आक्रोश का सामना नहीं कर पा रही थी। ऐसे में माहौल बिगड़ने के डर से अंग्रेजों ने भगत सिंह की फांसी का समय और दिन ही बदल दिया। गुपचुप तरीके से तय समय से एक दिन पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। 23 मार्च 1931 को शाम साढ़े सात बजे तीनों वीर सपूतों को फांसी की सजा हुई। इस दौरान कोई भी मजिस्ट्रेट निगरानी करने को तैयार नहीं था। शहादत से पहले तक भगत सिंह अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते रहे।


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