कोई कितना भी शिक्षित क्यों न हो, वह रचनात्मकता के बिना कोई नूतन आविष्कार नहीं कर सकता
पक्षियों के पंख अपने आप में परिपूर्ण होते हैं लेकिन हवा के बिना कोई भी पक्षी उड़ान नहीं भर सकता है। यही स्थिति भारत में नवाचारी प्रयोगधर्मियों के साथ रही है। उनमें असीम क्षमताएं तो हैं लेकिन उनकी कल्पनाओं को आकार देने के लिए उचित प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा था।

डा. सुशील कुमार सिंह। नवाचार किसी भी देश की सशक्तता का वह परिप्रेक्ष्य है जहां से यह समझना आसान होता है कि जीवन के विभिन्न पहलू और राष्ट्र के विकास के तमाम आयामों में नूतनता का अनुप्रयोग जारी है। भारत में नवाचार को लेकर जो कोशिशें अभी तक हुई हैं वे भले ही आशातीत नतीजे न दे पाई हों, बावजूद इसके उम्मीद को एक नई उड़ान मिलती दिखाई देती है। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा जारी 2022 के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में उछाल के साथ भारत 40वें स्थान पर आ गया है।
दरअसल देश में स्टार्टअप के लिए बेहतर माहौल के चलते ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में सुधार का सिलसिला जारी है। सुधार और सुशासन के बीच एक नवाचार से युक्त गठजोड़ भी है। बशर्ते सुधार में संवेदनशीलता, लोक कल्याण, लोक सशक्तीकरण तथा खुले दृष्टिकोण के साथ पारदर्शिता और समावेशी व्यवस्था के अनुकूल स्थिति बरकरार रहे। जीवन के हर पहलू में विज्ञान की अहम भूमिका होती है।
देश में मल्टीनेशनल रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या साल 2010 में 721 थी, जो अब 1200 के आस-पास पहुंच गई है। शोध, तकनीक और नवाचार शिक्षा के ऐसे गुणात्मक पक्ष हैं जहां से विशिष्ट दक्षता को बढ़ावा मिलता है। साथ ही देश का उत्थान भी संभव होता है। जब सत्ता सुशासनमय होती है तो कई सकारात्मक कदम स्वतः निरूपित होते हैं। हालांकि सुशासन को भी शोध एवं नवाचार की भरपूर आवश्यकता रहती है। कहा जाए तो सुशासन और नवाचार एक-दूसरे के पूरक हैं।
ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स का फोकस भी नवाचार संचालित विकास के भविष्य पर केंद्रित है। इनमें जो संभावनाएं दिखती हैं उसमें सुपर कंप्यूटरिंग, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और आटोमेशन प्रमुख हैं। इसके अलावा जैव प्रौद्योगिकी, नैनो तकनीक आदि के क्षेत्र में गहन नवाचार समाज के उन तमाम पहलुओं को सुदृढ़ करेगा जिसमें स्वास्थ्य, भोजन, पर्यावरण आदि शामिल हैं। सुशासन भी समावेशी ढांचे के भीतर ऐसी तमाम अवधारणाओं को समाहित करते हुए सु-जीवन की ओर अग्रसर होता है। बेशक ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत अब कुछ ऊपर आ गया है। बावजूद इसके भारत में शोध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही चिंतनीय हैं।
शोध से ही ज्ञान के नए क्षितिज विकसित होते हैं और इन्हीं से संलग्न नवाचार देश और उसके नागरिकों को बड़ा आसमान देता है। गौरतलब है कि नवाचार का मूल उद्देश्य नए विचारों और तकनीकों को सामाजिक एवं आर्थिक चुनौतियों तथा बदलावों में शामिल करना है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स की रिपोर्ट से सरकारें अपनी नीतियों को सुधारने का जरिया बनाती हैं और ऐसा बदलाव एक और नवाचार को अवसर देता है, जो सुशासन की दृष्टि से सटीक और समुचित पहल करार दी जा सकती है। बीते वर्षों में भारत वैश्विक अनुसंधान एवं नवाचार के रूप में तेजी से उभरा है।
भारत में प्रति दस लाख की आबादी पर शोधकर्ताओं की संख्या साल 2000 में जहां 110 थी वहीं 2017 तक यह आंकड़ा 255 हो गया। भारत वैज्ञानिक प्रकाशन वाले देशों की सूची में तीसरे स्थान पर है, जबकि पेटेंट फाइलिंग गतिविधि के मामले में नौवें स्थान पर है। भारत में कई अनुसंधान केंद्र हैं और प्रत्येक के अपने कार्यक्षेत्र हैं। चावल, गन्ना, चीनी से लेकर पेट्रोलियम, सड़क और भवन निर्माण के साथ पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष केंद्र देखे जा सकते हैं। ऐसे केंद्रों पर देश का नवाचार भी टिका हुआ है। नई शिक्षा नीति का आगामी वर्षों में जब प्रभाव दिखेगा तो नवाचार में नूतनता का और अधिक प्रवेश होगा। फिलहाल नवाचार का पूरा लाभ जन मानस को मिले, ताकि सुशासन को तरक्की और जन जीवन में सुगमता का संचार हो।
[निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पालिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन]

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