शिक्षा का हिस्सा बनें प्राचीन ग्रंथ, भारतीय संस्कृति से जुड़कर शिक्षित हो देश की युवा पीढ़ी
भारतीय होने के नाते ये हमारी संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं। देश-दुनिया में आज जितनी भी समस्याएं हैं उनके समाधान हमारे प्राचीन ग्रंथों में मौजूद हैं। आवश्यकता है कि हम उन सीखों को वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित करें।

प्रो. हिमांशु राय। तंजावुर मंदिर के ऊपरी हिस्से पर अस्सी टन के पत्थर को पहुंचाने के लिए भौतिकी का कौन सा सिद्धांत लगाया गया होगा? एलोरा के कैलाश मंदिर को बनाने के लिए शिल्पकला की कौन सी तकनीक लगी होगी? नागार्जुन ने अद्भुत रसायन से कैसे मेडिकल उपचार किए होंगे? रामायण में वर्णित समुद्र पर पुल किस तरह बनाया गया होगा? छत्रपति शिवाजी ने सिंधुदुर्ग का किला कैसे बनाया होगा? प्राचीन भारत ऐसे असंख्य रहस्यों से परिपूर्ण है जिनसे हम आज भी अनभिज्ञ हैं।
बात चाहे रामायण की हो या महाभारत की, विदुर नीति की हो या कौटिल्य के अर्थशास्त्र की, सुश्रुत संहिता-आयुर्वेद की हो या थिरुकुरल की, उपनिषदों को हो या वेदों की हमारे सभी ग्रंथों-शास्त्रों में अनंत ज्ञान है। ये आज भी प्रासंगिक हैं। दुख की बात है कि शिक्षा के व्यावसायीकरण से नैतिकता की सीखें आज लुप्त होने लगी हैं। प्राचीन काल में मानव जीवन के चार पुरुषार्थों में धर्म का सबसे अधिक महत्व था। मानव जीवन की हर चीज को पथ, परंपराओं और अनुष्ठानों से जोड़ दिया गया था। किंतु आधुनिक युग में व्यक्ति को ग्रंथों में वर्णित बातें कम और विज्ञान, तथ्य एवं तर्क की बोली अधिक समझ में आती है।
जब तक हमें मालूम न हो कि पीपल सबसे अधिक आक्सीजन देता है और तुलसी औषधि है-तब तक हम उन्हें वंदनीय नहीं मानेंगे। पहले हमारे देश में प्राणीमात्र की पूजा होती थी-चाहे पेड़ हों या पशु, क्योंकि ये जैवविविधता का महत्वपूर्ण अंग हैं। गीता में अर्जुन की व्याकुलता के माध्यम से घबराहट के बारे में बताया गया है। वर्तमान मनोविज्ञान की भाषा में इसे बाडी लैंग्वेज और माइंडसेट कहा जाता है। क्रिमिनल ला के अंतर्गत हम जब भी किसी व्यक्ति से सत्य उगलवाने का प्रयास करते हैं तो उसके शरीर में होने वाले कंपनों को पालीग्राफ की मदद से अंकित करते हैं। इसी प्रकार ‘यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे’ तब भी प्रचिलित था और आज विज्ञान में शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि ही ‘हिग्स बोसाेन’ की खोज है। बायोटेक्नोलाजी में डीएनए के भीतर भी ब्रह्मांड और जीवन के दर्शन होते हैं।
खगोल विज्ञानियों के अनुसार सूर्य से बड़ा ‘सूर्य’ भी इस ब्रह्मांड में है। हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व ही ‘सूर्यकोटि समप्रभ’ का वर्णन कर दिया था। हाल में तीन हजार अरब प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित एक तारों का समूह दिखाई दिया है, जो गहरी निद्रा में सोए हुए व्यक्ति की आकृति प्रतिबिंबित करता है और यह ‘अनंत शयनम्’ को संबोधित करता है। गैलीलियो और काेपरनिकस की खोज से पूर्व ही हमारे ग्रंथों में ‘भू-गोल’ विज्ञान प्रचिलित था। जब वराह अवतार ने पृथ्वी को उठाया तो वह गोल रूप में ही थी।
जब तुलसीदास जी ने इतने वर्षों पहले ‘कंदुक इव ब्रह्मांड उठावौं’ कहा तो उन्हें मालूम था कि यह ब्रह्मांड कंदुक के आकार का है। ग्रंथों में कहा गया है कि जब सूर्य धनु राशी में आएगा तो अर्थ तंत्र तेजी से बढ़ेगा। सूर्य निश्चित रूप से प्रति वर्ष दीपावली के आसपास ही धनु राशी में आता है। गौरतलब है कि संपूर्ण देश में व्यवसाय बढ़ता है और धन प्रवाहित होता है। नई शिक्षा नीति में प्राचीन गौरवशाली ज्ञान को विद्यार्थियों को सिखाए जाने और उसका व्यावहारिक प्रयोग समझाने की अनुशंसा की गई है। अब ग्रंथों में सम्मिलित प्राचीन ज्ञान आधुनिक शैली में पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित किया जाएगा, ताकि लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहें और अपने देश की परंपरा और संस्कृति के अनुसार जीवन का संचालन कर सकें।
प्राचीन ग्रंथों को शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित करने से देश के युवा न सिर्फ भारतीय संस्कृति को समझेंगे, अपितु वास्तविक उदाहरणों के जरिये अपने व्यावहारिक जीवन में भी उन्हें लागू करने में सफल होंगे। एक ओर जहां महाभारत के पाठ हमें प्रबंधन और राजनीति के मूल सिद्धांतों से परिचित कराते हैं, वहीं रामायण हमें जीवन में नैतिकता और अध्यात्म के मूल्यों के महत्व से परिचित कराती है। आयुर्वेद हमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रेरित करता है और उपनिषद हमें अनुशासन सिखाते हैं। व्यावहारिक ज्ञान से परिपूर्ण इन ग्रंथों से हमारी शिक्षा प्रणाली सुदृढ़ होगी। भारतीय ग्रंथों में मिलने वाली शिक्षा का धर्म और पंथनिरपेक्षता से कोई लेना-देना नहीं है।
भारतीय होने के नाते ये हमारी संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं। देश-दुनिया में आज जितनी भी समस्याएं हैं उनके समाधान हमारे प्राचीन ग्रंथों में मौजूद हैं। आवश्यकता है कि हम उन सीखों को वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित करें। ऐसा करने से हम सभी पहले से अधिक अपने राष्ट्र से जुड़ेंगे और एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करेंगे, जो राष्ट्र के प्रति समर्पित होगी और विश्व कल्याण में योगदान देने के लिए तत्पर होगी।
[निदेशक, आइआइएम इंदौर]
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