ढाई रुपये दिहाड़ी पर काम करने वाला आज है करोड़ों की कंपनी का मालिक
कोलकाता के बिरेन कुमार बसाक ने बीस साल पहले छह गज की एक साड़ी बुनी और उसपर रामायण के सात खंड उकेरे थे।
कोलकाता (जेएनएन)। साड़ी ले लो... साड़ी ले लो... की आवाज चार दशक पहले बिरने कुमार बसाक लगाया करते थे। दरअसल, बिसाक अपने कंधे पर साड़ियों को लाद गली-गली घूम साड़ी बेचा करते थे, कभी एक बुनकर के यहां 2.50 रुपये दिहाड़ी पर साड़ी बुनने का काम किया करते थे। लेकिन उनकी मेहनत ने अपना रंग दिखाया और वे ‘बसाक एंड कंपनी’ के मालिक हैं। कंपनी का वार्षिक टर्नओवर 50 करोड़ रुपये है।
साड़ी पर रामायण के सात खंड
नादिया जिले के बिरेन कुमार बसाक ने बीस बरस पहले छह गज की एक साड़ी बुनी थी, जिस पर उन्होंने रामायण के सात खंड उकेरे थे। धागों में रामायण उकेरने की तैयारी में उन्हें एक वर्ष का समय लगा जबकि दो वर्ष उसे बुनने में लगे। उन्होंने 1996 में इसे तैयार किया था।
ब्रिटेन यूनिवर्सिटी से मिला सम्मान
ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी ने उनके इस कार्य के लिए उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। नादिया के फुलिया इलाके के हथकरघा बुनकर बसाक को ब्रिटेन की वर्ल्ड रिकार्ड यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की डिग्री से सम्मानित किया है। इस स्वायत्त संस्थान की स्थापना विश्व की रिकार्ड पुस्तिकाओं के समूह द्वारा की गई है। उन्होंने बताया कि कोई कथा कहने वाली यह अपनी तरह की पहली साड़ी थी।
मिले हैं कई सम्मान
बसाक की छह गज की यह जादुई कलाकृति उन्हें इससे पहले भी राष्ट्रीय पुरस्कार, नेशनल मेरिट सर्टिफिकेट अवार्ड, संत कबीर अवार्ड दिला चुकी है। इसके अलावा लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड, इंडियन बुक ऑफ रिकार्ड्स और वर्ल्ड यूनिक रिकार्ड्स में भी उनका नाम दर्ज है। मुंबई की एक कंपनी ने वर्ष 2004 में बसाक को इस साड़ी के बदले में आठ लाख रुपये देने की पेशकश की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
घर गिरवी रख शुरू किया था बिजनेस
कोलकाता के नादिया जिले के फुलिया में उन्हें एक बुनकर के यहां 2.50 रुपये दिहाड़ी पर साड़ी बुनने का काम मिला। इस कंपनी में उन्होंने करीब 8 साल काम किए। इसके बाद उन्होंने खुद का बिजनेस शुरू करने की ठानी और इसके लिए अपना घर गिरवी रखकर 10 हजार रुपये का लोन उठाया। अपने बड़े भाई के साथ मिलकर वो बुनकर के यहां से साड़ी खरीद बेचने के लिए कोलकाता जाते थे।
1987 में पहली साड़ी की दुकान
उन्होंने 1987 में साड़ी की अपनी पहली दुकान खोली। उस वक्त उनके पास सिर्फ 8 लोग काम करते थे। धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ता गया। आज वो हर महीने हाथ से बनी 16 हजार से ज्यादा साड़ियां देश भर में बेच रहे हैं। यहीं नहीं, अब उनके यहां कर्मचारियों की संख्या बढ़कर 24 हो गई और वो करीब 5 हजार बुनकरों के साथ काम कर रहे हैं। अपने भाई से अलग होकर बसाक ने अपने गांव में यही बिजनेस शुरू किया। फिर उन्होंने बिरेन बसाक एंड कंपनी की नींव रखी। बुनकरों से साड़ियां खरीद होलसेल रेट में साड़ी डीलर को बेचना शुरू किया। धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ता गया और अब उनकी कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए हो गया है।