'भगवान कृष्ण ही पहले मध्यस्थ थे, आप भी...', बांके बिहारी मंदिर मामले पर SC की टिप्पणी; कई तीखे सवाल भी पूछे
सुप्रीम कोर्ट ने वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन मामले में सुनवाई करते हुए एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में समिति गठित करने का निर्देश दिया है। यह मामला उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश 2025 को चुनौती देने से संबंधित है जिसके तहत मंदिर की व्यवस्था एक ट्रस्ट को सौंपी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार मंदिर पर नियंत्रण चाहती है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन से जुड़ी याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच कर रही है। आज की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का निर्देश दिया।
इसके बाद कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 5 अगस्त की तिथि निर्धारित की है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित कॉरिडोर को लेकर यूपी सरकार के द्वारा लाए गए अध्यादेश 2025 को चुनौती दी गई है।
जानिए क्या है पूरा मामला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार के उस अध्यादेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर से जुड़ी व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा एक ट्रस्ट को सौंप दिया गया है। याचिकाओं में कहा गया कि मंदिर एक धार्मिक स्थान है। याचिका में कहा गया है कि इस अध्यादेश के जरिए राज्य सरकार मंदिर पर अपरोक्ष रूप से अपना नियंत्रण चाह रही है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भगवान कृष्ण पहले मध्यस्थ थे। ऐसे में इस मामले में मध्यस्थता करने का प्रयास करें। इतना ही नहीं अदालत ने राज्य सरकार और मंदिर ट्रस्ट के बीच मुद्दे को सुलझाने के लिए एक समिति का प्रस्ताव रखा।
कोर्ट ने खड़े किए सवाल
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश की संवैधानिक वैधता का परीक्षण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए। इसके अलावा ये आदेश पारित करने की जल्दबाजी पर भी कोर्ट ने सवाल खड़े किए। सुनवाई के समय न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मौखिक रूप से 15 मई के फैसले को वापस लेने का प्रस्ताव रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछे कई सवाल
याचिका पर सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने याचिकाकर्ताओं की पैरवी करते हुए निजी मंदिर होने की दलील दी। इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मंदिर की आय मंदिर के विकास योजनाओं के लिए होती है। बता दें कि श्याम दीवान ने कहा कि हम सरकार पर एकतरफा आदेश को चुनौती दे रहे हैं। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि न्यायालय ने मुद्दे तय कर दिए हैं। इसमें सरकार द्वारा ट्रस्ट का अधिग्रहण भी शामिल है।
कोई मंदिर निजी कैसे हो सकता है
बता दें कि याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि सरकार हमारे धन पर कब्जा कर रही है मेरा मंदिर एक निजी मंदिर है। इसपर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि आप किसी धार्मिक स्थल को निजी कैसे कह सकते हैं। जहां पर लाखों श्रद्धालु आ रहे हैं उसको आप निजी कैसे कह सकते हैं। प्रबंधन निजी हो सकता है, लेकिन कोई देवता निजी कैसे हो सकता है।
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