भारत को घेरने के लिए बांग्लादेश और पाकिस्तान की बड़ी साजिश, परमाणु खतरे की आशंका
बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सैन्य समझौते को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया तेज हो गई है, जो भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है। यह समझौता पाकिस्तान ...और पढ़ें

बांग्लादेश-पाकिस्तान का सैन्य समझौता (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच एक औपचारिक सैन्य समझौते को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया तेज हो गई है। खुफिया एजेंसियों के अनुसार यह प्रस्तावित समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच पहले से मौजूद परस्पर सैन्य सहयोग माडल पर आधारित हो सकता है।
यदि यह समझौता लागू होता है, तो इसके दूरगामी रणनीतिक और सुरक्षा निहितार्थ भारत के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं। ये समझौता नाटो देशों की तर्ज पर होगा, जिसमें एक देश पर हमला समूह के सभी देशों पर आक्रमण माना जाता है।
भारत को घेरने की चाल
सीधे तौर पर ये समझौता भारत को घेरने की चाल माना जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में मोहम्मद यूनुस की नियुक्ति के बाद ढाका और इस्लामाबाद के रिश्तों में तेजी से नजदीकी बढ़ी है। इस दौरान बांग्लादेश ने भारत से दूरी बनाते हुए पाकिस्तान के साथ सैन्य और रणनीतिक सहयोग को प्राथमिकता दी है।
दोनों देशों के बीच एक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (परस्पर रक्षा समझौता) पर काम चल रहा है, जिसे फरवरी में प्रस्तावित चुनावों से पहले अंतिम रूप देने की कोशिश की जा रही है।
पाक-बांग्ला समझौते में क्या है सऊदी एंगल ?
खुफिया अधिकारियों का कहना है कि यदि यह समझौता सऊदी अरब-पाकिस्तान सैन्य करार की तर्ज पर होता है, तो इसमें कई अहम प्रविधान शामिल हो सकते हैं। पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए सैन्य समझौते की प्रमुख विशेषताओं में संयुक्त सैन्य अभ्यास, खुफिया जानकारी साझा करना, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, सैन्य सलाहकारों की तैनाती तथा रणनीतिक समन्वय शामिल हैं।
इसके अलावा, संकट की स्थिति में पारस्परिक सैन्य सहायता और हथियार प्रणालियों के रखरखाव व प्रशिक्षण में सहयोग भी इस समझौते का हिस्सा रहा है।
परमाणु क्षमता तक पहुंच भी संभव
सबसे संवेदनशील पहलू वह है, जिसमें पाकिस्तान ने सऊदी अरब को अपनी रणनीतिक और परमाणु क्षमता तक पहुंच के संकेत दिए थे, हालांकि, रियाद ने इस पर कभी स्पष्ट सार्वजनिक रुख नहीं अपनाया।
भारत के लिए नई चुनौती
भारतीय एजेंसियों को आशंका है कि पाकिस्तान इसी तरह के “अपवाद'' बांग्लादेश को भी प्रस्तावित कर सकता है। यदि ऐसा होता है, तो यह पूर्वी भारत की सुरक्षा के लिए एक नई चुनौती बन सकता है। आठ महीने में कई दौर की बैठकें पिछले आठ महीनों में दोनों देशों की सेना, नौसेना और वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। वर्तमान में प्रशिक्षण, पेशेवर आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण से जुड़े कुछ एमओयू पहले से मौजूद हैं, जिन्हें अब एक व्यापक और संस्थागत सैन्य समझौते का रूप दिया जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में आगामी चुनाव इस समझौते की दिशा तय करेंगे। यदि भारत समर्थक मानी जाने वाली बांग्लादेश नेशनल पार्टी सत्ता में आती है, तो समझौते की गति धीमी पड़ सकती है। इसी कारण भारत की सुरक्षा एजेंसियां पूरे घटनाक्रम पर करीबी नजर बनाए हुए हैं।
बांग्लादेश में बद से बदतर होते हालात
बांग्लादेश में भारत विरोधी आंच होगी और तेज बांग्लादेश में बद से बदतर होते हालात से उत्साहित पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने देश में भारत विरोधी अभियान की आंच को और तेज करने की पूरी तैयारी कर ली है। हिंदू युवक दीपू दास की हत्या के बाद जिस तरह से भारत की प्रतिक्रिया हुई है, आइएसआइ उसे और भड़काना चाहती है ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान बांग्लादेश पर टिक जाए।
इससे ये नैरेटिव चलाने में बल मिलेगा कि भारत बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना को बचाने में लगा हुआ है और साथ ही उनकी पार्टी, अवामी लीग, को समर्थन दे रहा है। इससे भारत की नकारात्मक छवि बढ़ाने में मदद मिलेगी।
बता दें कि सत्ता से बेदखल होने के बाद शेख हसीना भारत में ही शरण लेकर रह रही हैं। भारत की तरफ से एक अन्य पूर्व पीएम खालिदा जिया की बीएनपी को भी समर्थन दिया जा रहा है, जो देश की दूसरी बड़ी पार्टी है। दोनों में से किसी एक के सत्ता में आने से पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फिर सकता है। इसलिए आइएसआइ और जमात, दोनों ही चुनावों को लंबा खींचने की फिराक में हैं। (समाचार एजेंसी आइएएनएस के इनपुट के साथ)

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