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Delhi-NCR में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने से प्रदूषण पर लगेगी लगाम, वैकल्पिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर

दिल्ली-एनसीआर में निर्माण गतिविधियों के प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए वैकल्पिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। निर्माण की गतिविधियां 23 प्रतिशत वायु और 40 प्रतिशत पेयजल प्रदूषण की वजह हैं। प्री कास्ट तकनीक के इस्तेमाल का दायरा तेजी से बढ़ाने की आवश्यकता है। विकास के कामों के लिए निर्माण गतिविधियां जरूरी हैं लेकिन इसके लिए पर्यावरण हितैषी तकनीक अपनाने के प्रयास ढीले हैं।

By Achyut KumarEdited By: Achyut KumarPublished: Tue, 07 Nov 2023 07:42 PM (IST)Updated: Tue, 07 Nov 2023 07:42 PM (IST)
Delhi Pollution: निर्माण गतिविधियों के प्रदूषण पर अंकुश के लिए वैकल्पिक तकनीक जरूरी

मनीष तिवारी, नई दिल्ली। एनसीआर में वायु प्रदूषण से त्रस्त लोगों को निर्माण गतिविधियों में रोक जैसे फौरी उपाय शायद ही राहत दिला सकें, क्योंकि इसके स्थायी समाधान के लिए वैकल्पिक तकनीक अपनाने के प्रयास सरकारी स्तर पर भी धीमे हैं और निजी स्तर पर भी।

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प्रदूषण की वजह आई सामने

हाल के एक शोध के मुताबिक, निर्माण का क्षेत्र 23 प्रतिशत वायु प्रदूषण, 50 प्रति जलवायु परिवर्तन और 40 प्रतिशत पेयजल प्रदूषण की वजह है। इतना ही नहीं, 50 प्रतिशत कचरे का भी यही कारण है। विकास के कामों के लिए निर्माण गतिविधियां जरूरी हैं, लेकिन इसके लिए पर्यावरण हितैषी तकनीक अपनाने के प्रयास ढीले हैं।

प्री कास्ट तकनीक के इस्तेमाल पर जोर

सरकारी स्तर पर आवास योजनाओं और सड़क निर्माण के कामों में प्री कास्ट तकनीक यानी पहले से तैयार सामग्री के इस्तेमाल का सिलसिला बढ़ रहा है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह अभी भी पांच प्रतिशत के स्तर पर नहीं पहुंच सका है। हालांकि पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से पर्वतीय इलाकों में इनका प्रयोग जरूर तेजी से बढ़ रहा है। शहरी कार्य मंत्रालय वैकल्पिक सामग्री और तकनीक के साथ लाइट हाउस प्रोजेक्टों के सहारे आवास निर्माण के लिए काम कर रहा है, लेकिन इनका दायरा सीमित है।

लागत में 10 प्रतिशत की वृद्धि

उदाहरण के लिए इंदौर में एक साइट पर बन रहे लगभग 30 हजार से अधिक पीएम आवासों में से लाइट हाउस प्रोजेक्ट के तहत बन रहे या बने आवास पांच हजार के करीब हैं। यहां ठेकेदार को सामग्री की उपलब्धता की कमी का भी सामना करना पड़ा, खासकर डिलीवरी में लगने वाले समय के कारण। इसके चलते लागत में दस प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि यह माना जाता है कि सामान्य आवास के मुकाबले प्री कास्ट तकनीक से बनने वाले आवास लगभग आधे समय और आधी कीमत में तैयार हो जाते हैं। लोग भवन निर्माण के लिए बालू, सीमेंट जैसे परंपरागत साधनों से इतर नहीं सोच पाते हैं, जो आपूर्ति में वाहनों के प्रदूषण को भी बढ़ाने का काम करते हैं।

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प्री कास्ट तकनीक के विशेषज्ञ और ईपैक प्रीफैब के निदेशक निखिल बोथरा का कहना है कि इस चुनौती से निपटने के लिए बजरी, कंक्रीट, टिंबर जैसी गैर पर्यावरण हितैषी सामग्री के बजाय वैकल्पिक निर्माण तकनीक के रूप में प्री फैब्रिकेशन को अपनाया जाना जरूरी है। इससे निर्माण के दौरान पीएम 2.5 के उत्सर्जन को रोकने में मदद मिलेगी।

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निखिल बोथरा ने बताया कि पारंपरिक निर्माण की तुलना में प्री इंजीनियर्ड संरचनाएं नियंत्रित पर्यावरण में तैयार होती हैं और उन्हें साइट पर असेंबल किया जा सकता है। इससे निर्माण के दौरान निकलने वाली धूल पर स्वाभाविक रूप से अंकुश लगता है। हाल में कई एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और दूसरी इमारतों के निर्माण में इनका इस्तेमाल हुआ है।

'जियोसिथेंटिक मैटीरियल की ओर रुख करें'

उत्तराखंड और बिहार समेत कई राज्यों में इन्फ्रा विकास की परियोजनाओं में काम करने वाली कंपनी मेकाफेरी के भारत में प्रबंध निदेशक विक्रमजीत राय के अनुसार, यह समय की मांग है कि हम जियोसिथेंटिक मैटीरियल की ओर रुख करें, जो हमें पर्यावरण अनुकूल विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। राय का यह भी सुझाव है कि कच्चे माल के लिए स्थानीय स्त्रोतों पर ध्यान देने की जरूरत है। इससे लागत और समय दोनों बचेगा।


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