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अब गर्भ में विज्ञान और गणित सीख रहे 'अभिमन्यु'

कभी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह तोड़ने की कला सीखी थी, आज मां के पेट में बच्चों की शिक्षा शुरू हो गई है। वे विज्ञान और गणित सीख रहे हैं। विशेषज्ञ गर्भवती महिलाओं के माध्यम से गर्भस्थ शिशु को पढ़ा रहे हैं और अलग-अलग जानकारियां दे रहे हैं

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Sun, 12 Apr 2015 04:06 PM (IST)Updated: Mon, 13 Apr 2015 09:05 AM (IST)
अब गर्भ में विज्ञान और गणित सीख रहे 'अभिमन्यु'

इंदौर, [आरती मंडलोई ] । कभी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने गर्भ में चक्रव्यूह तोड़ने की कला सीखी थी, आज मां के पेट में बच्चों की शिक्षा शुरू हो गई है। वे विज्ञान और गणित सीख रहे हैं। विशेषज्ञ गर्भवती महिलाओं के माध्यम से गर्भस्थ शिशु को पढ़ा रहे हैं और अलग-अलग जानकारियां दे रहे हैं ताकि पैदा होते ही वह दूसरों से बेहतर हों। गर्भवती महिलाएं भी इसे लेकर उत्साहित हैं और सेंटर्स का सहारा ले रही हैं।

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यह होती है प्रक्रिया

पढ़ने के लिए ब्रेन-आई कॉर्डिनेशन की जरूरत होती है। ब्रेन सेल्स और आंखें गर्भ के तीसरे महीने तक विकसित हो चुकी होती हैं। यही कारण है कि गर्भकाल के तीसरे महीने से बच्चे के 'विजुअल आई पाथ वे' को स्टीम्यूलेट किया जा सकता है।

इस प्रक्रिया के तहत मां पेट पर हाथ रखकर बच्चे को शब्द लिखे हुए फ्लैश कार्ड और अलग-अलग नंबर्स के डॉट कार्ड दिखाते हुए जोर से बात करते हुए उस कार्ड के बारे में बताती है। वास्तविक रूप में इसके जरिए बच्चे को कुछ सिखाया नहीं जाता बल्कि उसे वर्ड्स और नंबर्स का एक्सपोजर दिया जाता है ताकि उसके सेंस स्टीम्यूलेट हो।

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बड़े अक्षर और आकर्षक रंग

छोटे बच्चे हर चीज को विजुवलाइज करते हैं। यही कारण है कि वे भले ही पढ़ना 4 साल की उम्र के बाद से सीखें, परंतु बड़े अक्षर, विज्ञापन या रिपीटेटिव साइन्स को आसानी से पहचान लेते हैं। इस थ्योरी को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था के दौरान बच्चों को अक्षर के बजाए सीधे शब्द बताए जाते हैं, जिन्हें वे विजुवलाइज करके किसी चीज से रिलेट कर लें।

सफेद कागज पर तीन इंच से बड़े लाल रंग में लिखे अक्षर या नंबर्स के डॉट्स बच्चों को आसानी से आकर्षित कर लेते हैं। वैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार गर्भ के तीसरे महीने से 4 साल की उम्र तक बच्चों को इस तरह 10 से ज्यादा भाषाएं सिखाई जा सकती हैं।

रीयल वर्ल्ड से करें कनेक्ट

पैरेंटिंग एक्सपर्ट और लाइफ कोच अभिषेक पसारी गर्भवती महिलाओं को 6 हफ्तों के प्रशिक्षण के दौरान गर्भ में बच्चों को बिहेवियर, डिफरेंट लैग्वेंज और गणित सिखाने का तरीका बताते हैं। प्रशिक्षण के दौरान सीखे गए तरीकों को तीन महीने की गर्भावस्था से लेकर आठ साल के बच्चों तक पर अप्लाए किया जाना होता है।

पसारी कहते हैं कि बच्चे को जब भी कुछ सिखाएं या बताएं तो उसे रीयल वर्ल्ड से कनेक्ट करें। अक्षरों के अपने अर्थ नहीं होते जबकि शब्दों के होते हैं। यही कारण हैं कि गर्भावस्था के दौरान पहले अक्षर सिखाने के बजाए हम सीधे शब्दों के फ्लैश कार्ड के जरिए लैग्वेंज ट्रेनिंग शुरू करते हैं।

मां अपने पेट पर हाथ रखकर बेबी से बात करते हुए यदि पंचतंत्र की कहानियां पढ़ेगी और पढ़ते समय उस लाइन पर अंगुली फेरती जाएगी तो बच्चा भी तेजी से पढ़ना सीखेगा। बड़े होने पर उसे पढ़ना पसंद होगा। आप जो करते हैं आपका बच्चा भी वही करता है। यह प्रक्रिया गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है। इसी तरह गणित सिखाते वक्त हम नंबरों के बजाए सीधे डॉट्स और असली वस्तुओं के जरिए सीधे काउंटिंग सिखाते हैं।

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9 महीने का बच्चा भी पहचाता है शब्द

सेटेलाइट एजुकेशन सेक्टर में काम रही अनामिका गिरधानी कहती है कि गर्भावस्था के दौरान मैंने लैग्वेंज और मैथ्स स्किल्स डेवलप करने के लिए बच्चे को कार्ड्स दिखाना शुरू किए। यह प्रैक्टिस डिलेवरी के बाद भी जारी है।

मेरा दो साल और 10 महीने का बेबी फ्लैश कार्ड के बाहर लिखे हुए वर्ड और नंबर्स भी पहचान लेता है। इसी तरह अदिति शाह का 9 महीने का बेबी भी वर्ड्स से फैमिलीयर हो चुका है। वह अलग-अलग शब्दों में अंतर कर सकता है। उम्र के मुताबिक उसका अटेंशन और फोकस बाकी बच्चों से ज्यादा है।

मेडिकल से लेकर कॉमर्स तक की जानकारी

डायमंड ज्वेलरी डिजाइनर शिखा मसंद कहती हैं कि मेरा बैकग्राउंड कॉमर्स का काम है, जबकि मेरे पति डॉक्टर हैं। मेरी पहली गर्भावस्था के दौरान वे हर रोज अपने मरीजों और काम के बारे में बच्चे को बताते थे।

अब मेरी बेटी वान्या 4 साल की हो चुकी है और उसे हम दोनों की फील्ड का अच्छा नॉलेज हैं। केजी फर्स्ट में पढ़ते हुए वह अपनी क्लास की इकलौती स्टूडेंट है जो पूरी तरह अंग्रेजी में बात करती है, साथ ही उसे हिंदी और संस्कृत भी आती है। दूसरी प्रैग्नेंसी के दौरान भी यह अभ्यास कर रही हूं।

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भारतीय परंपरा विदेशी रिसर्च

भारत में गर्भ संस्कार की अवधारणा प्राचीन काल से चली आ रही है। रामायण काल में अर्जुन ने सुभद्रा को गर्भावस्था के दौरान चक्रव्यूह में प्रवेश करने की प्रक्रिया बताई थी, जिसे अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीख लिया था। भारतीय परंपरा में गर्भावस्था के दौरान इसलिए मां को अच्छी किताबें पढ़ने और अच्छा सोचने के लिए कहा जाता है। नए संदर्भ में फिलेडेल्फिया ग्लैन डॉमेन ने इस पर रिसर्च किया।

तीसरे माह से शुरू हो जाती है लर्निंग प्रोसेस

गर्भ के 6 हफ्ते से बच्चे का दिल धड़कना शुरू कर देता है और तीसरे महीने से लर्निंग प्रोसेस शुरू हो जाती है। मां उससे बात कर सकती है और बेबी मां को रिस्पांस भी करना शुरू कर देता है। यानी गर्भ के तीसरे महीने से आप बच्चे को बहुत कुछ सिखा सकते हैं। - डॉ. अनुपम गुप्ता (पीडियाट्रिशियन)

अर्ली एज में रीडिंग हैबिट्स के फायदें

- शब्दकोष और रीडिंग कॉम्प्रीहेंशन तेजी से डेवलप होता है।

- कम उम्र से ही रीडिंग-राइटिंग कनेक्शन बनने लगता है। रीडिंग की स्पीड बढ़ जाती है।

- कॉन्फीडेंस लेवल और सेल्फ स्टीम लेवल हायर हो जाता है

- पैरेंट्स और चाइल्ड के बीच में एक स्ट्रांग बॉन्ड क्रिएट करता है।

- बच्चों में मैथ्स फोबिया नहीं होता साथ ही लॉजिकल स्किल्स भी डेवलप होती है।

[साभार: नई दुनिया]


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