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स्वतंत्रता सेनानी या भगोड़ा थे आजाद हिंद फौज के जवान

प्रद्योत कुमार मित्रा ने 26 अगस्त, 2014 में आरटीआइ अर्जी दाखिल कर आजाद हिंद फौज के जवानों के बारे में जानकारी मांगी थी।

By Manish NegiEdited By: Published: Thu, 16 Feb 2017 06:31 PM (IST)Updated: Thu, 16 Feb 2017 06:55 PM (IST)
स्वतंत्रता सेनानी या भगोड़ा थे आजाद हिंद फौज के जवान
स्वतंत्रता सेनानी या भगोड़ा थे आजाद हिंद फौज के जवान

नई दिल्ली, प्रेट्र। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहनुमाई वाले आजाद हिंद फौज के जवानों के दर्जे पर एक बार फिर से सवाल खड़ा हुआ है। सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) के तहत दाखिल अर्जी में फौज के सदस्यों की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी गई है। इसमें पूछा गया है कि फौज के जवान स्वतंत्रता सेनानी थे या ब्रिटिश सेना के भगोड़े। इस पर सीआइसी ने गृह मंत्रालय से जवाब मांगा है।

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प्रद्योत कुमार मित्रा ने 26 अगस्त, 2014 में आरटीआइ अर्जी दाखिल कर आजाद हिंद फौज के जवानों के बारे में जानकारी मांगी थी। उनकी अर्जी को पहले रक्षा मंत्रालय के पास भेजा गया। मंत्रालय ने इसे सेवानिवृत्त सैन्य कल्याण विभाग के पास स्थानांतरित कर दिया। अर्जी घूम-फिरकर गृह मंत्रालय के पास पहुंची जहां से इसे राष्ट्रीय अभिलेखागार (आर्काइव) को सौंपा गया। वहां से भी जवाब नहीं मिलने पर मित्रा ने केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष गुहार लगाई। सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने गृह मंत्रालय को एक महीने के अंदर जानकारी देने का निर्देश दिया है। मंत्रालय को 13 मार्च तक जवाब देना होगा।

आचार्युलु ने कहा कि आजाद हिंद फौज से जुड़े सामाजिक लांछन को मिटाने की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय की है। इसके सदस्यों को स्वतंत्रता सेनानी मानने पर जारी संशय को खत्म करने की जरूरत है। साथ ही यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि क्या गृह मंत्रालय उन्हें स्वतंत्रता सेनानी मानते हुए पेंशन और अन्य सुविधाएं देने के लिए तैयार है या नहीं। आजाद हिंद फौज के सदस्यों को स्वतंत्रता सेनानी नहीं मानने के वजहों को बताने की जिम्मेदारी भी गृह मंत्रालय की है।

रासबिहारी बोस ने सिंगापुर, मलेशिया और अन्य देशों में भारतीय युद्धबंदियों की मदद से इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया था। वर्ष 1943 में सुभाष चंद्र बोस को इसकी कमान सौंप दी गई थी। नेताजी ने इसे आजाद ¨हद की सेना बताते हुए अस्थायी सरकार की स्थापना की थी। आजाद हिंद फौज के कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाहनवाज खान के खिलाफ लाल किला में मुकदमा चलाया गया था। जवाहरलाल नेहरू, सर तेज बहादुर सप्रू, कैलाशनाथ काटजू, भूलाभाई देसाई सरीखे मशहूर वकीलों ने इस केस की पैरवी की थी।

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