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    Ayodhya Verdict : जानिए सुनवाई के कितने मिनटों के बाद खोल दिया गया था रामजन्मभूमि मंदिर का ताला

    By Vinay TiwariEdited By:
    Updated: Sat, 09 Nov 2019 10:10 AM (IST)

    Ayodhya Verdict 1 फरवरी 1986 को रामजन्मभूमि में लगे ताले को खोलने का आदेश दिया गया था उसके बाद से इस मामले में विवाद बढ़ता गया।

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    Ayodhya Verdict : जानिए सुनवाई के कितने मिनटों के बाद खोल दिया गया था रामजन्मभूमि मंदिर का ताला

    नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Ayodhya Verdict : अब राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के मामले में फैसला आने को है। ऐसे में ये जानना ज्यादा जरूरी है कि सबसे पहले इसका गेट कब खोला गया था। राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के मामले में विवादित स्थल का दरवाजा खोलने का आदेश साल 1986 में दिया गया था। 1 फरवरी 1986 को यहां लगे ताले को खोलने का आदेश दिया गया था, उससे पहले 37 सालों से यहां पर ताला लगा हुआ था। न पूजा की जा रही थी और ना ही कोई अन्य गतिविधि हो रही थी।

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    1986 में ही मुकदमे की सुनवाई पूरी हुई और जज ने कहा कि वह मुकदमे का फैसला उसी दिन शाम 4.15 बजे करेंगे। शाम 4.15 बजे उन्होंने ताला खोलने का आदेश दे दिया। इस आदेश में न्यायाधीश ने यह अनुमति भी दे दी थी कि दर्शन व पूजा के लिए लोग रामजन्मभूमि जा सकते है। अयोध्या में इस जगह को लेकर हिंदू-मुस्लिम समुदाय अपने-अपने दावे तो अरसे से कर रहे थे लेकिन इस चिंगारी को हवा फैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश के एक आदेश के बाद ही लगी थी।

    25 जनवरी 1986 को दाखिल हुई थी याचिका 

    25 जनवरी 1986 को अयोध्या के वकील उमेश चंद्र पांडेय ने फैजाबाद के मुंसिफ (सदर) हरिशंकर द्विवेदी की अदालत में विवादास्पद ढांचे को रामजन्मभूमि मंदिर बताते हुए उसके दरवाजे पर लगे ताले को खोलने के लिए याचिका दाखिल की। यह कहते हुए कि रामजन्मभूमि पर पूजा-अर्चना करना उनका बुनियादी अधिकार है। मुंसिफ ने इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया क्योंकि इस संदर्भ में मुख्य वाद हाईकोर्ट में विचाराधीन था।

    लिहाजा उन्होंने एप्लीकेशन को निस्तारित करने में असमर्थता जताई। उन्होंने कहा कि मुख्यवाद के रिकार्ड के बिना वह आदेश पारित नहीं कर सकते। उमेश चंद्र पांडेय ने इसके खिलाफ 31 जनवरी 1986 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश फैजाबाद की अदालत में अपील दायर की। उनकी दलील थी कि मंदिर में ताला लगाने का आदेश पूर्व में जिला प्रशासन ने दिया था, किसी अदालत ने नहीं। 

    जिलाधिकारी और एसएसपी हुए थे कोर्ट में तलब 

    एक फरवरी 1986 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडेय ने उनकी अपील स्वीकार की। इस मामले में जज ने फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय और एसएसपी कर्मवीर सिंह को कोर्ट में तलब किया था। दोनों ने अदालत को बताया कि ताला खोलने से कानून व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका नहीं है। जज ने इस मामले में बाबरी मस्जिद के मुख्य मुद्दई मोहम्मद हाशिम व एक अन्य पक्षकार के तर्कों को भी सुना।

    राज्य सरकार ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में वकील उमेश चंद्र पांडेय की याचिका का विरोध किया। यह कहते हुए कि रामजन्मभूमि के गेट पर लगे ताले को खोलने से कानून व्यवस्था भंग होने की आशंका है। न्यायाधीश ने सरकार की यह दलील ठुकराते हुए कहा कि रामजन्मभूमि पर ताला लगाने का कोई भी आदेश किसी भी अदालत में पूर्व में नहीं दिया है।

    40 मिनट में सिटी मजिस्ट्रेट ने खोल दिया था ताला 

    न्यायाधीश के आदेश देने के बमुश्किल 40 मिनट बाद ही सिटी मजिस्ट्रेट फैजाबाद रामजन्मभूमि मंदिर पहुंचे और उन्होंने गेट पर लगे ताले खोल दिए। न्यायाधीश ने इस बात की भी अनुमति दी कि जनता दर्शन व पूजा के लिए रामजन्मभूमि जाए। अपने आदेश में उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार अपील दायर करने वाले तथा हिंदुओं पर रामजन्म भूमि में पूजा या दर्शन में कोई बाधा और प्रतिबंध न लगाए। इसके बाद से ही इस प्रकरण पर सभी पक्षकार अधिक सक्रिय हुए।