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    सरकार के लिए चुनौती बने ऑटोमैटेड टेस्टिंग स्टेशन, पारदर्शिता के लिए शुरू की गई व्यवस्था में बेईमानों ने लगा दी भ्रष्टाचार की सेंध

    By JITENDRA SHARMAEdited By: Deepak Gupta
    Updated: Sun, 09 Nov 2025 10:00 PM (IST)

    ऑटोमेटेड टेस्टिंग स्टेशन (ATS) सरकार के लिए एक चुनौती बन गए हैं। पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से शुरू की गई इस प्रणाली में भ्रष्ट तत्वों ने भ्रष्टाचार का मार्ग खोज लिया है। एटीएस की स्थापना का उद्देश्य वाहनों की फिटनेस जांच में पारदर्शिता लाना था, लेकिन कुछ बेईमान अधिकारियों और कर्मचारियों ने इसमें भ्रष्टाचार फैला दिया है। सरकार को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 

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    ऑटोमैटेड टेस्टिंग स्टेशन।

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। हर वर्ष करीब पौने दो लाख लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में चली जाती है। कारण यह भी सामने आता है कि वाहन अनफिट था।

    अब नई एसओपी जारी कर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने अनफिट वाहनों पर लगाम कसने की तैयारी जरूर की है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिन आटोमैटेड टेस्टिंग स्टेशन के भरोसे आगे की प्रक्रिया चलनी है, वह स्टेशन तो पहले ही राज्य सरकारों की लापरवाही से उन बेईमान लोंगों के भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आ चुके हैं, जो वर्षों से फर्जी फिटनेस प्रमाण-पत्र बेचने का धंधा कर रहे हैं।

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    एटीएस की योजना में शातिरों ने लगाई सेंध

    केंद्र सरकार भी जान गई है कि उसकी एटीएस की योजना में शातिरों की सेंध लग चुकी है और नए सिरे से नियम-तरीके बनाने की तैयारी है। देश में वर्षों से फर्जी फिटनेस प्रमाण पत्र जारी करने का धंधा चल रहा है। इसमें परिवहन विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों से लेकर फिटनेस जांच कर प्रमाण-पत्र जारी करने वाली निजी एजेंसियां भी शामिल हैं। यह होता रहा कि वाहन कबाड़ जैसी स्थिति में हो, फिर भी उसका फिटनेस प्रमाण-पत्र बन जाता था।

    बड़ी संख्या में अनफिट वाहन सड़कों पर दौड़ रहे

    इधर, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय लगातार इस बात से चिंतित है कि सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा घटने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है। यूं तो दुर्घटनाओं के तमाम कारण हैं, लेकिन उनमें प्रमुख कारण यह भी है कि बड़ी संख्या में अनफिट वाहन सड़कों पर दौड़ रहे हैं।

    चूंकि, व्यावसायिक वाहनों की भूमिका सड़क दुर्घटनाओं के कारकों में अधिक है, इसलिए केंद्र सरकार ने आटोमैटेड टेस्टिंग स्टेशन की योजना बनाई, ताकि मानवरहित प्रक्रिया से पूरी पारदर्शिता के साथ तकनीकी जांच के बाद सही फिटनेस प्रमाण-पत्र जारी हो। इस तकनीकी में प्रक्रिया में वाहन का एटीएस में होना अनिवार्य है।

    व्यावसायिक वाहनों की फिटनेस दो साल में एक बार

    परिवहन मंत्रालय ने वर्ष 2024 में नियम भी बना दिया कि व्यावसायिक वाहनों की फिटनेस आठ वर्ष तक दो वर्ष में एक बार और उसके बाद प्रतिवर्ष एटीएस में फिटनेस जांच करानी होगी। मगर, इस योजना का हश्र देखिए। अभी जून 2025 में उत्तर प्रदेश के एक मामला सामने आया। एक ट्रक के कारण सड़क दुर्घटना हो गई। पुलिस ने उसे ले जाकर कानपुर देहात थाने में खड़ा करा दिया। थोड़ी देर बाद उसी ट्रक का फिटनेस प्रमाण पत्र उत्तराखंड के आटोमैटेड टेस्टिंग स्टेशन से जारी हो गया। ऐसे दो-तीन मामले उत्तर प्रदेश में सामने आए।

    राजस्थान सहित अन्य राज्यों से भी ऐसे मामले सामने आए। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव वी. उमाशंकर का कहना है कि सरकार की मंशा है कि व्यवस्था पारदर्शी हो। वाहनों की फिटनेस सही हो, ताकि उनके कारण दुर्घटना न हो। इसके लिए ही आटोमैटेड टेस्टिंग स्टेशन की योजना बनाई गई, नियम तय किए गए।

    उन्होंने माना कि कुछ स्थानों पर इसके बावजूद गलत ढंग से काम हो रहा है। अब विशेषज्ञों से सलाह लेकर सरकार फिर से नियम-तरीके बनाने का प्रयास कर रही है। विचार है कि इस व्यवस्था में प्रमाण-पत्र को सत्यापित करने का दायित्व सौंपते हुए राज्यों को जिम्मेदारी के दायरे में लाया जाए।

    50 हजार करोड़ के काले धंधे का है आकलन

    भारत सरकार की सड़क सुरक्षा सलाहकार समिति के सदस्य डा. कमल सोई का अनुमान है कि देश में लगभग ढाई करोड़ व्यावसायिक वाहन हैं और उनकी फिटनेस जांचने, प्रमाण-पत्र बेचने के नाम पर लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का काला धंधा चल रहा है। डा. सोई के मुताबिक, केंद्र सरकार के नियम के मुताबिक, अभी देश में सिर्फ दो-तीन एटीएस ही बन पाए हैं।

    अन्य केंद्रों को इंस्पेक्शन एंड सर्टिफिकेशन सेंटर ही कहा जा सकता है। यह गलत तरीके से फिटनेस प्रमाण पत्र बेच रहे हैं। वह मानते हैं कि नए नियम बनाने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि केंद्र सरकार बेहतर नियम बना सकती है, लेकिन इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। यदि राज्य सरकारें अंकुश लगाएं तो ही वाहनों की फिटनेस का फर्जीवाड़ा रुक सकता है।