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    जानें क्‍यों चर्चा में है देश की सबसे पुरानी Paramilitary forces 'Assam Rifles'

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Tue, 01 Oct 2019 03:27 PM (IST)

    Assam Rifles एक छोटी शुरुआत से असम राइफल्स देश के सबसे बेहतर संगठनों में से एक में विकसित हुआ है। आइए जानते हैं इसके गठन और अब तक इसमें हुए बदलावों के बारे में...

    जानें क्‍यों चर्चा में है देश की सबसे पुरानी Paramilitary forces 'Assam Rifles'

    नई दिल्ली, जेएनएन। असम राइफल्स का पूरा नियंत्रण गृह मंत्रालय को सौंपने के प्रस्ताव का सेना ने विरोध किया है। सेना का कहना है कि इस बदलाव से चीन से लगती सीमा की निगरानी के काम को गंभीर संकट पैदा होगा। यह मामला प्रकाश में आने के बाद देश का सबसे पुराना अर्धसैनिक बल चर्चा में आ गया है। इसने अपनी स्थापना के समय से अब तक अपनी भूमिका, संरचना और कार्य के मामले में कई बदलाव देखे हैं। एक छोटी शुरुआत से असम राइफल्स देश के सबसे बेहतर संगठनों में से एक में विकसित हुआ है। आइए जानते हैं इसके गठन और अब तक इसमें हुए बदलावों के बारे में...

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    कब हुआ था गठन?

    देश के सबसे पुराने अर्धसैनिक बल का गठन अंग्रेजों ने 1835 में किया था। तब इसका नाम कछार लेवी थी। इसके गठन के वक्त इसमें 750 जवान थे और इसका काम सिर्फ असम के बागानों और उनकी संपत्तियों की आदिवासियों के हमले से रक्षा करना था। समय-समय पर इसके नाम में बदलाव होते रहे। 1883 में असम फ्रंटियर पुलिस, 1891 में असम सैन्य पुलिस, 1913 में पूर्वी बंगाल और असम सैन्य पुलिस नाम हुआ और आखिरकार 1917 में असम राइफल्स बना।

    किन युद्धों में निभाई भूमिका?

    असम राइफल्स और इसकी पूर्ववर्ती यूनिटों ने दोनों विश्व युद्ध सहित कई बड़ी लड़ाइयों में अहम भूमिका निभाई। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कई बटालियनों के जवानों को गोरखा रेजिमेंट के अंतर्गत युद्ध करने के लिए यूरोप भेजा गया। वहां उनका प्रदर्शन बेहतरीन रहा और यहीं से इस बल का नाम असम राइफल्स हो गया। अपने घरेलू मोर्चे पर बल की असली परीक्षा कुकि विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई में हुई। उस समय असम राइफल्स की पांचवीं बटालियन की स्थापना लोखरा में की गई। इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध में जब जापानियों ने दक्षिण पूर्व एशिया को रौंद डाला तो ब्रिटिश इंडिया का पूर्वी छोर असुरक्षित हो गया। सबसे पहले असम राइफल्स को बर्मा (अब म्यांमार) में नागरिकों को सुरक्षित निकालने का काम सौंपा गया। जवानों ने सराहनीय कार्य किया। जब युद्ध असम पहुंचा तब भी इसके जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया।

    1947 में उपनिवेशी बल से राष्ट्रीय बल के रूप में इसका परिवर्तन हुआ। आजादी के बाद त्रिपुरा और नगालैंड में पैदा हुई चुनौतियों से निपटने में असम राइफल्स ने मुख्य भूमिका निभाई। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान चीनी सैनिकों ने नॉर्थ-ईस्ट के कई इलाकों में कब्जा करना शुरू कर दिया था। तब चीनी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए असम राइफल्स के जवानों को सीमा पर तैनात किया गया था। इसके अलावा दिसंबर 1988 से लेकर फरवरी 1990 के बीच श्रीलंका में ऑपरेशन पवन के दौरान असम राइफल्स की तीन बटालियनों को तैनात किया गया था। वर्तमान में इसकी बटालियनों की संख्या 48 है और इसमें 55 हजार जवान हैं।

    1835 में हुआ था गठन

    • 750 जवान थे गठन के समय
    • 55 हजार है अब जवानों की संख्या
    • 48 बटालियन हैं वर्तमान में
    • 1,640 किमी लंबी म्यांमार से लगती
    • सीमा की सुरक्षा करता है यह बल
    • मुख्यालय : शिलांग

    मिल चुके हैं ये सम्मान

    • अशोक चक्र 4
    • वीर चक्र 5
    • कीर्ति चक्र 31
    • शौर्य चक्र 120
    • परम विशिष्ट सेवा मेडल 5
    • अति विशिष्ट सेवा मेडल 12
    • विशिष्ट सेवा मेडल 74
    • युद्ध सेवा मेडल 1
    • सेना मेडल 188

    किसके अधीन आता है और क्या है प्रस्ताव?

    असम राइफल्स पर प्रशासनिक नियंत्रण गृह मंत्रालय के पास है, जबकि उसका परिचालन नियंत्रण सेना के अधीन है। गृह मंत्रालय के प्रस्ताव में असम राइफल्स को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) के साथ विलय करने और इसके तहत सभी परिचालन नियंत्रण गृह मंत्रालय के अधिकार में लाने की बात कही गई है। सेना ने इस प्रस्ताव पर गंभीर चिंता जताते हुए इसका विरोध किया है।