Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लोकमंथन में भारतीय नृत्य, नाटक और संगीत आदि कलाओं को समग्रता में देखा जा सकता है

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Tue, 04 Oct 2022 08:29 AM (IST)

    लोकमंथन में भारतीय नृत्य नाटक और संगीत आदि कलाओं को समग्रता में देखा जा सकता है। यहां कला संस्कृति सभ्यता और परंपराओं से संबंधित अनेक विषयों पर चर्चा भी की जाती है। यही जुड़ाव लोकमंथन की थाती है। असल भारत की विरासत भी यही है।

    Hero Image
    बीते दिनों गुवाहाटी में आयोजित लोकमंथन कार्यक्रम में शामिल कलाकार। फाइल

    उमेश उपाध्याय। हाल ही में गुवाहाटी में लोकमंथन के तीसरे संस्करण का आयोजन किया गया। यह जीवंतमान लोकाचार का एक राष्ट्रीय उत्सव था। श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के विशेष रूप से बनाए गए भव्य पंडाल में ढाई हजार से अधिक अभ्यागत उत्सुकता से उपराष्ट्रपति के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उपराष्ट्रपति बनने के बाद जगदीप धनकड़ की दिल्ली से बाहर यह पहली यात्रा थी। असम के राज्यपाल जगदीश मुखी, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और लोकमंथन के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार भी यहां उपस्थित थे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    उपराष्ट्रपति भी सामान्य कुर्सी पर ही बैठे, जिसे हरियाणा उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर किशोर कुठियाला ने देश की सत्ता के ‘लोकीकरण’ के रूप में रेखांकित किया। भारतीय संस्कृित का प्रवाह : मूल बात तो यह है कि हजारों वर्षों से अक्षुण्ण गति से अविरल बह रही भारतीय संस्कृति की धारा कभी भी सत्ता केंद्रित नहीं रही। उसकी ताकत है साधारण सा दिखने वाला असाधारण भारतीय जनमानस। जिन समाजों में संस्कृति सत्ता का मुंह देखती है उसका प्रवाह सत्ता के खत्म होने के साथ रुक जाता है। जब संस्कृति समाप्त हो जाती है तो वह समाज भी जिंदा नहीं रहता।

    यही कारण है कि भारतीय या हिंदू संस्कृति इस पृथ्वी पर जीवित और आज भी चल रही एकमात्र सभ्यता है। इस लोकमंथन के समापन समारोह के मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने ठीक ही कहा कि भारतीयता के आदर्श ऋषि-मुनि रहे हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिक संपदा नष्ट हो जाएंगी, परंतु रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ नष्ट नहीं होंगे। भारत की संस्कृति ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्द्धन के लिए जानी जाती है।

    ज्ञान की प्राप्ति करना और उसे दूसरे के साथ साझा करना ही तप है। इसलिए लोकमंथन में लोक संस्कृति के वाहकों का प्रदर्शन तपस्या से कम नहीं था। इस संदर्भ में अच्छी बात यह है कि लोकमंथन में आप भारत के खानपान, वेशभूषा, नाटक, संगीत और नृत्य आदि कलाओं को समग्रता में देख सकते हैं। यहां पर कला, संस्कृति, सभ्यता, लोकाचार और परंपराओं से संबंधित अनेक समसामयिक विषयों पर गंभीर चर्चा और विचार-विमर्श भी किया जाता है। हमारी सनातन संस्कृति के लिहाज से यह बहुत ही अच्छा प्रयास है।

    समाज को बांटने वाली शक्तियां

    हमारे दैनंदिन जीवन में दिखने वाले वैविध्य को कुछ लोग भारत को बांटने के उद्देश्य से अलगाव के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते आए हैं। यह वास्तव में एक गहरा षड्यंत्र है। कन्याकुमारी से जम्मू काश्मीर तक और गुजरात से अरुणाचल तक फैले इस एकरूप समाज के वैविध्य को देश का जनमानस स्वीकारता ही नहीं करता, बल्कि उसका अभिनंदन करता है। वह बगिया में खिले रंगबिरंगे फूलों की तरह इनका उत्सव मनाता है। इसे इस कार्यक्रम के दौरान महसूस भी किया जाता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने वक्तव्य में सही कहा कि सभ्यता और संस्कृति लोक के कारण ही जीवित रही हैं।

    लोकपरंपरा में विविधता कभी आड़े नहीं आती, बल्कि यह हमारी अंतर्निहित एकता को और मजबूत बनाती है। वैसे तो देश के अनेक विद्वानों, कलाकारों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति लोकमंथन में रही, परंतु नगालैंड के उच्च शिक्षा एवं जनजाति मामलों के मंत्री तेमजेन इम्ना ने जो कहा वह भीतर तक छू गया। उत्तरपूर्व की सांस्कृतिक दशा पर उन्होंने कहा कि नगालैंड में 17 जनजातियां हैं, लेकिन उनकी भाषा की कोई लिपि नहीं है। इस बात को लेकर उन्होंने चिंता जताई कि पश्चिमीकरण ने नगा समाज को तोड़ कर रख दिया है और वे अपने अस्तित्व को पूरी तरह से नहीं खोज पाए हैं। अपने मूल अस्तित्व को खोजे बिना कुछ कर पाना मुश्किल है। वैसे लोकमंथन समझने नहीं, बल्कि अनुभव का विषय है। इस दौरान सबका कोई न कोई अनूठा अनुभव रहा। इनमें से एक का जिक्र यहां करना समीचीन होगा।

    अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कर्नाटक से प्रख्यात माता मंजम्मा जोगाथी और उनकी टोली गुवाहाटी पहुंची थी। पद्मश्री मंजम्मा एक किन्नर हैं। उनके साथ एक स्थानीय कार ड्राइवर का होना स्वाभाविक ही था। कार्यक्रम के अंतिम दिन उनका चालक अपने परिवार को उनसे मिलाने के लिए लाया। जब उसकी पत्नी ने उनके चरण स्पर्श कर साड़ी भेंट दी तो मंजम्मा की आंखों में आंसू आ गए। उन्हें कल्पना नहीं थी कि उत्तरपूर्व भारत में उनकी भाषा तक नहीं समझने वाला एक वाहन चालक उनसे इस तरह दिल से जुड़ जाएगा। यही जुड़ाव लोकमंथन की थाती है। असल भारत की विरासत भी यही है।

    वरिष्ठ पत्रकार