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    2027 तक पिघल जाएगी आर्कटिक की सारी बर्फ, बचाने को करनी होगी कठोर कार्रवाई; वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट

    आर्कटिक महासागर में जमा बर्फ बड़ी तेजी से पिघल रही है। एक नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2027 तक आर्कटिक की सारी बर्फ पिघल सकती है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो 20 सालों के अंदर हम बहुत पर्यावरणीय क्षति होते हुए देखेंगे।

    By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Fri, 06 Dec 2024 06:59 AM (IST)
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    2027 तक आर्कटिक की सारी बर्फ पिघल सकती है (सांकेतिक तस्वीर)

    ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। सफेद बर्फ के लिए मशहूर आर्कटिक महासागर में अगर बर्फ ही नहीं होगी तो सोचो वहां का नजारा कैसा लगेगा। एक अध्ययन में अंदेशा जताया है कि आने वाले पांच से छह सालों में आर्कटिक महासागर से बर्फ खत्म होने लगेगी। नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक महासागर से 2027 तक सारी बर्फ पिघल सकती है।

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    करनी होगी कठोर कार्रवाई

    शोधकर्ताओं ने कहा है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कठोर कार्रवाई नहीं की गई तो 20 सालों के अंदर हम बहुत बड़ी पर्यावरणीय क्षति होते हुए देखेंगे। जलवायु विज्ञानियों द्वारा किए गए अध्ययन में इस घटना की संभावित समयसीमा की भविष्यवाणी करने के लिए उन्नत सिमुलेशन का उपयोग किया गया है, जो क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के तेजी से बढ़ते प्रभावों को उजागर करता है।

    अध्ययन से निष्कर्ष

    शोध में 11 जलवायु मॉडल और 366 सिमुलेशन का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण किया गया। इन मॉडलों से पता चला कि कम उत्सर्जन के परिदृश्यों के तहत भी, संभवतः 2030 के दशक के भीतर आर्कटिक को बर्फ-मुक्त दिन का सामना करना पड़ेगा। सबसे चरम सिमुलेशन में, यह तीन से छह साल की शुरुआत में हो सकता है। गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के जलवायु विज्ञान शोधकर्ता और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. सेलीन ह्यूज़े ने एक बयान में उन घटनाओं को समझने के महत्व पर जोर दिया जो इस तरह के अभूतपूर्व पिघलने को ट्रिगर कर सकते हैं।

    समुद्री बर्फ के पिघलने से होगा नुकसान

    आर्कटिक में समुद्री बर्फ वैश्विक तापमान संतुलन बनाए रखने, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को विनियमित करने और गर्मी और पोषक तत्वों का परिवहन करने वाली समुद्री धाराओं को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस बर्फ के पिघलने से गहरे पानी का संपर्क होता है, जो अधिक गर्मी को अवशोषित करता है, जिससे फीडबैक लूप में ग्रह की वार्मिंग तेज हो जाती है जिसे अल्बेडो प्रभाव के रूप में जाना जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, आर्कटिक पहले से ही वैश्विक औसत से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है, शोधकर्ता इसे सीधे मानव-प्रेरित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से जोड़ते हैं।

    जलवायु संकट को लेकर भारत चिंतित

    भारत ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) में एक ऐतिहासिक सुनवाई के दौरान जलवायु संकट पैदा करने के लिए विकसित देशों की आलोचना की और कहा कि उन्होंने वैश्विक कार्बन बजट का दोहन किया और जलवायु-वित्त के वादों का सम्मान करने में विफल रहे। इतना ही नहीं विकसित देश अब मांग कर रहे हैं कि विकासशील देश अपने संसाधनों के उपयोग को सीमित करें। उल्लेखनीय है आइसीजे इस बात की जांच कर रही है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों के पास क्या कानूनी दायित्व हैं और यदि वे असफल होते हैं तो इसके क्या परिणाम होंगे।