'सरकारी नौकरियों में मनमानी मौलिक अधिकार का उल्लंघन', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि सरकारी नौकरियों में मनमानी समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जस्टिस पंकज मिथल और संदीप मेहता की पीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक के साथ निष्पक्ष तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए क्योंकि यह उसका मौलिक अधिकार है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सरकारी नौकरियों में मनमानी समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया हमेशा निष्पक्ष, पारदर्शी और संविधान के दायरे में होनी चाहिए।
जस्टिस पंकज मिथल और संदीप मेहता की पीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में मनमानी समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है क्योंकि इसका प्रतिकूल असर प्रत्यक्ष रूप से मौलिक अधिकार के मूल पर पड़ता है।
हालांकि कोई भी व्यक्ति नियुक्ति के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य को मनमाने तरीके से काम करने की अनुमति दी जा सकती है।
जानिए क्या है मामला?
गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए पलामू जिला प्रशासन के 29 जुलाई, 2010 के विज्ञापन को रद कर दिया था। बहरहाल, पीठ ने अनुचित नियुक्ति प्रक्रिया के लाभार्थी को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया।
इसने कहा कि पिछले दरवाजे से की गई नियुक्ति प्रक्रिया का लाभार्थी यह दावा नहीं कर सकता कि वह पीड़ित है और इसलिए उसके साथ उचित व्यवहार किया जाए। पीठ ने कहा कि सार्वजनिक रोजगार प्रक्रिया हमेशा निष्पक्ष, पारदर्शी और संविधान के दायरे के भीतर होनी चाहिए।
निष्पक्षता प्रत्येक नागरिक का अधिकार: SC
कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक के साथ निष्पक्ष तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए क्योंकि यह उसका मौलिक अधिकार है। यह संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का एक परिशिष्ट है। अगर इसका उल्लंघन होता है तो यह न्यायिक जांच के साथ-साथ आलोचना के लिए भी उत्तरदायी है।
वर्ष 2010 में पलामू जिला प्रशासन ने विज्ञापन में निर्धारित शर्तों के अनुसार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के रोजगार के लिए एक अधिसूचना जारी की थी। पीठ ने कहा कि इस विज्ञापन में चयन के लिए उपलब्ध पदों की संख्या का उल्लेख नहीं किया गया था और इसलिए यह पारदर्शिता की कमी के कारण अमान्य और गैरकानूनी था।
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