अस्पतालों में एंटीबायोटिक दवाएं हो रहीं बेअसर, महामारी का खतरा
देश के अस्पतालों में एंटीबायोटिक दवाएं निष्प्रभावी होती जा रही हैं, जिससे महामारी का खतरा बढ़ गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। अध्ययनों से पता चला है कि सामान्य संक्रमणों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाएं अब प्रभावी नहीं रहीं, क्योंकि बैक्टीरिया में दवा प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है। विशेषज्ञों ने सरकार से तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया है और एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध को लेकर गंभीर चेतावनी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की नई रिपोर्ट ने देश के अस्पतालों में बढ़ते एंटीबायोटिक प्रतिरोध को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के मामलों में 91 प्रतिशत तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिससे कई दवाएं अब प्रभावी नहीं रह गई हैं।
आइसीएमआर की यह आठवीं वार्षिक रिपोर्ट जनवरी से दिसंबर 2024 के बीच देशभर के अस्पतालों से प्राप्त 99,027 कल्चर-पॉजिटिव नमूनों के विश्लेषण पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वाधिक संक्रमणों के लिए 'ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया (जीएनबी)' जिम्मेदार होते हैं। ये बैक्टीरिया तेजी से दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर रहे हैं, जिससे उपचार और चुनौतीपूर्ण हो गया है। ये बैक्टीरिया रक्त, पेशाब, सीएसएफ और श्वसन तंत्र के संक्रमण का प्रमुख कारण है।
आइसीयू में विशेष रूप से चिंताजनक स्थिति सामने आई है, जहां 'एसिनेटोबैक्टर बाउमानी' में 91 प्रतिशत तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध दर्ज किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस बैक्टीरिया को गंभीर प्राथमिक पैथोजन की सूची में रखता है।
टाइफायड उपचार में भी बढ़ी चुनौती
टायफायड का प्रमुख कारक 'साल्मोनेला टाइफी' फ्लूओरोक्विनोलोन वर्ग की दवाओं के प्रति 95 प्रतिशत तक प्रतिरोधी पाया गया। हालांकि, यह सेफ्टि्रयाक्सोन, सेफिक्साइम, ट्राइमेथोप्रिम-सल्फामेथाक्साजोल और एजिथ्रोमाइसिन के प्रति अच्छी संवेदनशीलता दिखाता है। रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि फ्लुओरोक्विनोलोन अब टाइफायड के उपचार में कारगर विकल्प नहीं रह गए हैं।
बैक्टीरिया में क्यों बढ़ रहा है प्रतिरोध?
आइसीएमआर के मुताबिक बैक्टीरिया में प्रतिरोधी जीन एनडीएम, ओएक्सए-48 और टीईएम के फैलाव की वजह से बैक्टीरिया प्रतिरोधी हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये जीन नई, अत्यधिक प्रतिरोधी 'सुपरबग' प्रजातियों को जन्म दे सकते हैं।तुरंत कदम उठाने की जरूरत आइसीएमआर ने इस संकट से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत बताई है और संक्रमण नियंत्रण के उपायों और सुपरबग से लड़ने की निगरानी बढ़ाने के साथ-साथ एंटीबायोटिक के तार्किक इस्तेमाल पर जोर दिया है।
रिपोर्ट में एकीकृत एंटीबायोटिक नीति लागू करने और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के बढ़ते खतरों से निपटने के लिए नियमित ऑडिट कराने की सिफारिश की है। आइसीएमआर ने चेतावनी दी है कि समय रहते कदम न उठाए गए तो यह समस्या राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट में बदल सकती है।
रिपोर्ट में कुछ उपाय भी सुझाए गए हैं, जिनमें एंटीबायोटिक के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा, अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण उपायों को मजबूत करना, सुपरबग्स की निगरानी और सैंपलिंग बढ़ाना, एकीकृत राष्ट्रीय एंटीबायोटिक नीति लागू करना, अस्पतालों में नियमित आडिट प्रणाली को सुदृढ़ करना प्रमुख हैं। आइसीएमआर ने कहा कि समन्वित और त्वरित कार्रवाई के बिना भारत में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की चुनौती तेजी से भयावह रूप ले सकती है।
(समाचार एजेंसी एएनआइ के इनपुट के साथ)

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