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    Anti-Conversion Ordinance: कर्नाटक के राज्यपाल ने धर्मांतरण रोधी अध्यादेश को दी मंजूरी, जानिए दोषी को कितनी साल की है सजा

    By Piyush KumarEdited By:
    Updated: Wed, 18 May 2022 12:59 AM (IST)

    कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंगलवार को उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी जो कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार विधेयक2021 को प्रभावी बनाता है। इसे धर्मांतरण-रोधी विधेयक के तौर पर भी जाना जाता है। दोषी को तीन साल की सजा हो सकती है।

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    कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत की फाइल फोटो (सोर्स: एएनआइ)

     बेंगलुरु, प्रेट्र। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंगलवार को उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी, जो कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार विधेयक,2021 को प्रभावी बनाता है। इसे धर्मांतरण-रोधी विधेयक के तौर पर भी जाना जाता है। विधेयक को राज्य विधानसभा ने पिछले साल दिसंबर में पारित किया था लेकिन यह विधानपरिषद में लंबित है जहां सत्तारूढ़ भाजपा के पास बहुमत नहीं है। यह गजट अधिसूचना में कहा गया है। कर्नाटक विधानसभा और विधान परिषद का चूंकि सत्र नहीं चल रहा है और माननीय राज्यपाल इस बात से सहमत हैं कि ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं जो अध्यादेश जारी करने के लिए उन्हें फौरन कार्रवाई करने की आवश्यकता बताती हैं।

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    दोषी को हो सकती है तीन साल की सजा

    अध्यादेश में कहा गया है कि कोई भी मतांतरित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या अन्य व्यक्ति जिनका उनसे खून का रिश्ता है, वैवाहिक संबंध है या किसी भी तौर पर संबद्ध हों, वे इस तरह के धर्मांतरण पर शिकायत दायर कर सकते हैं। दोषी को तीन साल की कैद की सजा हो सकती है जो बढ़ा कर पांच साल तक की जा सकती है और उसे 25 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा।

    जबरदस्ती से किए जाने वाले धार्मिक धर्मांतरण पर लगे लगाम

    इस बीच, कर्नाटक के गृह मंत्री अराज्ञया जनेंद्र ने कहा कि वह किसी धर्म के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन जोर-जबरदस्ती से किए जाने वाले धार्मिक धर्मांतरण के लिए संविधान में कोई जगह नहीं है। वह इस कानून को सख्ती से लागू करेंगे। उन्होंने ईसाई समुदाय को भयमुक्त करने के इरादे से कहा कि इस प्रस्तावित कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है कि इससे किसी के धार्मिक अधिकारों में कोई कटौती हो।

    इससे पहले मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई स्पष्ट कर चुके हैं कि सभी धार्मिक समुदाय के लोगों को धर्मांतरण विरोधी कानूनी से संबंध  में घबराने की जरूरत नहीं है। संविधान के मुताबिक, देश में मौजूद सभी धर्म के लोगों को अपने धर्म का पालन करने या उसके मुताबिक प्राथना करने की इजाजत है।