चूहे, मधुमक्खियों से लेकर डॉल्फिन तक... ये भी करते हैं देश के सरहद की सुरक्षा, जानिए कैसे दी जाती है ट्रेनिंग
डिजिटल युग में सेनाएं सुरक्षा और जासूसी के लिए जानवरों की मदद ले रही हैं। कंबोडिया जैसे देशों में चूहे विस्फोटकों का पता लगाने में प्रशिक्षित हैं वहीं ...और पढ़ें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सरहदों की हिफाजत, दुश्मनों की जासूसी और खतरों की भनक लगाने के लिए अब सेनाएं सिर्फ इंसानों और तकनीकों पर ही नहीं, जानवरों की ताकत पर भी भरोसा करने लगी हैं। कहीं चूहे विस्फोटकों का पता लगाने के लिए ट्रेन हो रहे हैं, तो कहीं हाथियों से निगरानी कराई जा रही है। भारत में मधुमक्खियों की मदद से भी एक खास मिशन पर काम हो रहा है। आधुनिक युद्ध अब सिर्फ हथियारों का नहीं, बल्कि नए-नए तरीकों की स्ट्रेटजी से लड़ा जा रहा है।
चूहे करते हैं जासूसी
कंबोडिया, यूक्रेन, इजरायल और कई यूरोपीय देशों में चूहों को 'जासूस' बनाया जा रहा है। ये चूहे पल भर में खतरों को भांप कर जानकारी दे देते हैं। इनकी कद-काठी बिल्कुल सामान्य चूहों की तरह ही है, जिससे की ये दुश्मनों की नजर में नहीं आते हैं। इन चूहों को 'HeroRAT' कहा जाता है।

मधुमक्खियों करतीं हैं भारत के इस सरहद की हिफाजत
भारत-बांग्लादेश सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने सबसे नए हथियार के तौर पर मधुमक्खियों को तैनात किया है।
पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में, बीएसएफ की 32वीं बटालियन ने कंटीले तारों की बाड़ के साथ मधुमक्खी पालन के बक्से लटकाना शुरू कर दिया है। ये मधुमक्खियां सिर्फ शहद के लिए नहीं हैं। इनके अंदर मौजूद मधुमक्खियों के झुंड तस्करों और घुसपैठियों के लिए काल बनकर आते हैं। अगर कोई बाड़ तोड़ने की कोशिश करता है तो ये मधुमक्खियां उनपर टूट पड़ती हैं।
ये जानवर और पक्षी कैसे करते हैं जासूसी?
अमेरिका खुफिया एजेंसी ने अपने कई ऑपरेशन के लिए पक्षियों और जानवरों के इस्तेमाल किया है। जानवरों और पक्षियों की मदद से छिपकर सुनना, खुफिया जानकारी जुटाना, सुरक्षा, गुप्त संचार और फोटो निगरानी की जाती रही है। अमेरिका के अलावा भी कई देशों ने पक्षियों और जानवरों को अपने खुफिया ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किया है।
CIA ने एक ऐसा कैमरा बनाया जो इतना छोटा और हल्का था कि कबूतर भी उसे उठा सकता था। इस कैमरे को पक्षी की छाती पर एक छोटे से हार्नेस से बांधा गया था और पक्षी को किसी विदेशी देश के खुफिया इलाके में छोड़ा गया। जब कबूतर वापस आता था तो दुश्मन इलाके की सारी तस्वीरें कैमरे में कैद होती थी।
- जासूस बिल्लियां- साल 1964 में अमेरिका ने कुछ जासूसी बिल्लियां पालीं और उसे ट्रेनिंग दी। ये बिल्लियां किसी बातचीत को सुनने के लिए जानी जाती थीं, इनके गले में ट्रांसमीटर और रिकॉर्डर लगा होता था।
- अंडरकवर डॉग- दुनिया भर के कई देशों में डॉग को सेना में शामिल किया जाता है, लेकिन कई ऐसे डॉग होते हैं जिन्हें अंडरकवर ऑपरेशन के लिए भेजा जाता है। कुत्तों में गंध की अद्भुत क्षमता होती है जो उन्हें विस्फोटक गंधों को पहचानने में सक्षम बनाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी नाक मनुष्य की गंध की क्षमता से 10,000 गुना बेहतर है।
- इंसेक्टोथॉप्टर मक्खी- 1970 के दशक में CIA ने "इंसेक्टोथॉप्टर" नाम का एक अविष्कार किया। ये बिल्कुल मक्खी की तरह दिखता था। इससे खुफिया जानकारी जुटाने में काफी मदद मिलती थी। ये मक्खी बंद कमरे की भीतर चल रहे गुप्त वार्ताओं की सटीक जानकारी दे देता था, जिससे दुश्मन की गतिविधियों और प्लानिंग की पता लगा लिया जाता है।

समंदर में डॉल्फिन करती है खुफिया निगरानी
अमेरिकी नौसेना ने समंदर की तलहटी में किसी संभावित साजिश के खतरों से बचने के लिए डॉल्फिन को ट्रेनिंग देती है। ये डॉल्फिन समंदर में किसी खतरे को भांपने में महारत हासिल कर चुके होते हैं। इसके अलावा समंदर की नीचे खदानों और नौसेना की संपत्तियों को ढूंढने में भी डॉल्फिन मदद करती है।

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