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रेल हादसा: ये आप तय करें कि डॉ. काकोदकर की सिफारिशों पर कितना हुआ अमल

रोजाना लगभग दो करोड़ यात्रियों को ढोने वाली भारतीय रेल की काकोदकर समिति की रिपोर्ट में सुरक्षा के लिहाज से बेहद डरावनी तस्वीर पेश की गई थी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 10 Oct 2018 02:37 PM (IST)Updated: Thu, 11 Oct 2018 09:08 AM (IST)
रेल हादसा: ये आप तय करें कि डॉ. काकोदकर की सिफारिशों पर कितना हुआ अमल
रेल हादसा: ये आप तय करें कि डॉ. काकोदकर की सिफारिशों पर कितना हुआ अमल

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। रेल दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए हाल ही में संसद की एक समिति ने कहा था कि ज्यादातर दुर्घटनाएं ट्रेनों के टकराने, पटरी से उतरने, आग लगने, मानव रहित क्रासिंग, रेल कर्मचारियों की चूक आदि के कारण हुई है। समिति ने रेल हादसों से बचने के लिए कई सुझाव दिए थे। समिति ने इस बात पर भी जोर दिया था कि रेल दुर्घटनाओं के समय गठित विभिन्न जांच समितियों के सुझावों को अमल में लाया जाए।

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वर्ष 2011 में कालका मेल हादसे के बाद रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए मशहूर वैज्ञानिक डा. अनिल काकोदकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट को तत्‍तकालीन रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को सौंपा था। इस महत्‍वपूर्ण समिति ने रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कई अहम सुझाव दिए थे।

काकोदकर समिति की रिपोर्ट में रोजाना लगभग दो करोड़ यात्रियों को ढोने वाली भारतीय रेल की सुरक्षा के लिहाज से बेहद डरावनी तस्वीर पेश की गई थी। डेढ़ सौ से भी ज्यादा पेज की इस रिपोर्ट में रेल मंत्रालय समेत भारत सरकार को भी चेतावनी दी गई थी कि अगर जल्दी कुछ नहीं किया गया तो रेल यात्रा और खतरनाक हो जाएगी। आइए, जानते हैं कि वो कौनसे अहम सुझाव थे जो काकोदकर समिति की तरफ से दिए गए थे। इसके अलावा रेल मंत्रालय ने इन सुझावों पर कितना अमल किया है। 

काकोदकर समिति के अहम सुझाव

  • रेलवे की सुरक्षा, आधारभूत मजबूती और आधुनिकीकरण के लिए ये बहुत जरूरी है कि रेलवे की फंड कंट्रोलिंग एक स्वायत्त निकाय के पास होनी चाहिए, इस पर राजनीतिक नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
  • रेलवे के आधारभूत ढांचे पर बड़ा बोझ है। इसके चलते ट्रैफिक के नियंत्रण के लिए पैसा और समय दोनों नहीं मिल पाता है।
  • पांच साल के भीतर देश में सभी क्रॉसिंग को खत्म करके पुलों का निर्माण किया जाए। समिति के मुताबिक इस पर करीब 50 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा, लेकिन सुरक्षा के लिए ये कदम उठाना तत्काल जरूरी है।
  • राजधानी और शताब्दी ट्रेनों को छोड़कर बाकी ट्रेनों में ऐसे डिब्बे इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जो पचास किमी प्रति घंटा की रफ्तार के लिए बने हैं। इनको बदले जाने की जरूरत है।
  • समिति ने रेल पटरियों के लिए इस्‍तेमाल में लाई जा रही स्टील की गुणवत्‍ता पर भी सवाल उठाए थे। समिति का कहना था कि इसमें सुधार की जरूरत है।
  • रिपोर्ट में कहा गया था कि ट्रैकों की देखभाल करने वाले गैंगमैन, गेट बंद करने वाले गेटमैन और ड्राइवरों सहित एक लाख 24 हजार पद खाली हैं। इसे तत्‍काल भरा जाना चाहिए।
  • रेलवे सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण का गठन की सिफ‍ारिश की गई थी। समिति ने कहा था कि रेलवे सुरक्षा की जिम्मेदारी सुरक्षा आयुक्त पर होती है, लेकिन उसकी शक्तियां बहुत ही सीमित हैं। इसीलिए एक अलग प्राधिकरण का गठन किया जाए। सुरक्षा आयुक्त को इसके दायरे में लाया जाए।
  • रेलवे ट्रैफिक के नियंत्रण के लिए एक अलग निकाय की जरूरत पर जोर दिया गया, ताकि रेलवे सुरक्षा के बारे में विस्तृत रूप से सोचा जा सके।
  • रेलवे सुरक्षा के बारे में शोध और विकास का एक विभाग होना चाहिए और इसके लिए अलग से कोष बनाया जाना चाहिए।

यह भी जानें
इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्‍लेख है कि रेल दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की तुलना में ट्रैक पर अथवा रेलवे लाइन पार करते समय होने वाली दुर्घटना में ज्यादा मौतें होती हैं, जबकि रेलवे के पास केवल उन्हीं यात्रियों की मौत का आंकड़ा होता है जो रेल दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और ये संख्या बहुत कम होती है। अनिल काकोदकर का कहना था कि रेलवे लाइनों पर मरम्मत के दौरान रेलवे कर्मचारियों की भी बड़ी मात्रा में मौते होती हैं। लेकिन, इसका उल्‍लेख भी नहीं होता है।


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