'आनंद कारज विवाह बिना किसी भेदभाव के पंजीकृत किए जाएं', सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों सरकारों को दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि वे चार महीने के भीतर आनंद कारज यानी सिख विवाह के पंजीकरण के लिए नियम अधिसूचित करें। वहीं शीर्ष कोर्ट ने कहा कि धार्मिक पहचान का सम्मान और नागरिक समानता सुनिश्चित करने वाले धर्मनिरपेक्ष ढांचे में कानून को एक तटस्थ और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करना चाहिए।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि वे चार महीने के भीतर 'आनंद कारज' यानी सिख विवाह के पंजीकरण के लिए नियम अधिसूचित करें।
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि धार्मिक पहचान का सम्मान और नागरिक समानता सुनिश्चित करने वाले धर्मनिरपेक्ष ढांचे में कानून को एक तटस्थ और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करना चाहिए और आनंद कारज के माध्यम से होने वाले विवाहों को अन्य विवाहों के समान ही दर्ज और प्रमाणित किया जाए।
जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा- 'किसी संवैधानिक वादे की सत्यनिष्ठा न केवल उसके द्वारा घोषित अधिकारों से मापी जाती है, बल्कि उन संस्थाओं से भी मापी जाती है जो उन अधिकारों को उपयोगी बनाती हैं। एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में राज्य को किसी नागरिक की आस्था को विशेषाधिकार या बाधा में नहीं बदलना चाहिए।'
पीठ ने चार सितंबर के अपने आदेश में कहा कि जब कानून आनंद कारज को विवाह के वैध प्रकार के रूप में मान्यता देता है, फिर भी इसे पंजीकृत करने के लिए कोई तंत्र प्रदान नहीं करता, तो वादा केवल आधा ही निभाया गया माना जाएगा।
यह आदेश एक याचिका पर पारित किया गया, जिसमें आनंद विवाह अधिनियम, 1909 (2012 में संशोधित) की धारा 6 के तहत नियम बनाने का अनुरोध किया गया था।
पीठ ने कहा कि 1909 का अधिनियम सिख रीति-रिवाज आनंद कारज द्वारा संपन्न विवाहों की वैधता को मान्यता देने के लिए बनाया गया था। पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया है कि वे चार महीने के भीतर नियम अधिसूचित करें और सुनिश्चित करें कि आनंद कारज द्वारा संपन्न विवाह बिना किसी भेदभाव के पंजीकरण के लिए स्वीकार किए जाएं।
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