'AMU न तो अल्पसंख्यक संस्थान, न ही अल्पसंख्यकों द्वारा प्रशासित', सालिसिटर जनरल ने MC छागला के भाषण का SC में दिया हवाला
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक दर्जा मामला केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसटिर जनरल तुषार मेहता ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री छागला के 2 सितंबर 19 ...और पढ़ें

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। 'एएमयू (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) संशोधन विधेयक पेश करते हुए 1965 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला ने लोकसभा में दिए भाषण में कहा था कि अलीगढ़ विश्वविद्यालय न तो मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित है और न ही उनके द्वारा प्रशासित (एडमिनिस्टर्ड) होता है। अनुच्छेद 30 के संबंध में यही कानूनी स्थिति है।' केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसटिर जनरल तुषार मेहता ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री छागला के 2 सितंबर, 1965 को लोकसभा में दिये गए भाषण का यह अंश गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया।
मालूम हो कि संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपने संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन का अधिकार देता है। गुरुवार को यूं तो एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को समर्थन करने वालों की ओर से मुख्यत: कपिल सिब्बल ने ही दलील पेश की, लेकिन सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कई बार हस्तक्षेप किया।
सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 1965 में संसद के अंदर छागला के वक्तव्य की याद दिलाई और कहा कि एएमयू सिर्फ अल्पसंख्यक का नहीं है, गैर मुस्लिम छात्र और बहुत से विदेशी छात्र भी यहां पढ़ते हैं, यह देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। बहस के दौरान सात सदस्यीय संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 1965 में हुए भारत पाक युद्ध का भी जिक्र किया और पूछा कि भारत पाकिस्तान युद्ध कब हुआ था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,
एमसी छागला के 3 सितंबर, 1965 को लोकसभा में दिये भाषण में कहा गया है कि हम इस समय अघोषित युद्ध की स्थिति में हैं।
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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इससे संशोधन के उद्देश्य पर कुछ प्रकाश पड़ता है। सालिसिटर जनरल मेहता ने पाकिस्तान की ओर से छद्म युद्ध जारी रखने की ओर इशारा करते हुए कहा कि अघोषित युद्ध तो शुरुआत से लेकर आज की तारीख तक जारी है। वैसे एमसी छागला ने यह बात किस संदर्भ में कही थी ये देखना होगा। मेहता ने कहा,
वह रिकॉर्ड देखकर कोर्ट को बताएंगे कि 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध कब शुरू हुआ था।
इससे पहले कपिल सिब्बल ने 1968 के पांच जजों के अजीज बाशा फैसले पर पुनर्विचार की भी मांग की जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
सिब्बल ने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल करने के 1981 के कानूनी संशोधन का भी जिक्र किया जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में दिये फैसले में निरस्त कर दिया था। हाई कोर्ट ने बाशा के फैसले को आधार बनाते हुए कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है और एएमयू में पीजी में मुसलमान छात्रों को 50 फीसद आरक्षण असंवैधानिक घोषित कर दिया था। उस फैसले को एएमयू और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

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