'नहीं होगा सीजफायर, डाल दीजिए हथियार', नक्सलियों को शाह का संदेश
गृह मंत्री अमित शाह ने माओवादियों को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि सरकार उनसे कोई संघर्ष विराम नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि यदि माओवादी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो उनका स्वागत है और उन पर कोई गोली नहीं चलाई जाएगी। अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश को माओवाद मुक्त करने का संकल्प दोहराया।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। समर्पण करने को लेकर माओवादियों के बीच ही मतभेद और वामपंथियों द्वारा संघर्ष विराम के संबंध में लिखे गए पत्र को भ्रामक बताते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने माओवादियों और उनके पैरोकारों को दो टूक संदेश दिया है। मार्च 2026 तक देश को माओवाद मुक्त करने का संकल्प दोहराते हुए चेताया है कि सीजफायर नहीं होगा। अगर उग्रवादी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं और हथियार डालना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है। सुरक्षा बल उन पर एक भी गोली नहीं चलाएंगे।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन द्वारा 'माओवाद मुक्त भारत : प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में समाप्त होता लाल आतंकवाद' विषय पर आयोजित एक दिवसीय विचार गोष्ठी का समापन गृह मंत्री अमित शाह ने किया। उन्होंने कहा कि हाल ही में भ्रम फैलाने के लिए एक पत्र लिखा गया था। इसमें कहा गया था कि अब तक जो कुछ हुआ है, वह एक गलती थी। संघर्ष विराम की घोषणा की जानी चाहिए और हम माओवादी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं।
गृह मंत्री गरजे कि कोई संघर्ष विराम नहीं होगा। अगर आप आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो संघर्ष विराम की कोई आवश्यकता नहीं है। हथियार डाल दीजिए, एक भी गोली नहीं चलेगी। शाह का यह सख्त संदेश इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुछ समय पहले भाकपा (माओवादी) द्वारा संघर्ष विराम की पेशकश की गई थी।
माओवादियों को दिया यह प्रस्ताव
माओवाद को लेकर वर्ष 2014 के बाद आए बदलावों का दावा करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि हमारी सरकार की नीति है-जो हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, उनके लिए रेड कार्पेट है। सबका स्वागत है। आप हथियार छोड़ दीजिए, हम किसी को मारना नहीं चाहते।
लेकिन यदि आप हथियार लेकर निर्दोष आदिवासियों को मारना चाहते हैं तो मेरी सरकार का धर्म है उनको बचाना और आपका सामना करना। उन्होंने कहा कि अगर माओवादी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो लाभदायक पुनर्वास नीति के साथ उनका भव्य स्वागत किया जाएगा।
उग्रवादियों के पैरोकारों को शाह ने कठघरे में खड़ा किया
शाह ने उल्लेख किया कि जब सुरक्षा बलों द्वारा छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर आपरेशन ब्लैक फारेस्ट सहित कई शीर्ष माओवादियों के सफाए के लिए अभियान तेज किए गए, तो वामपंथी राजनीतिक दलों की ओर से सीजफायर को लेकर पत्र लिखे गए। उग्रवादियों के पैरोकारों को शाह ने कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। कई देशों के उदाहरणों के साथ दावा किया कि वामपंथी विचारधारा और हिंसा का चोली-दामन का साथ है।
कांग्रेस शासन की तुलना में मोदी शासन काल में वामपंथी उग्रवाद में आई कमी को तथ्यों सहित सामने रखते हुए कांग्रेस को भी कोसा। कहा कि वर्ष 2014 से पहले सरकार का घटना आधारित जवाब होता था। एक तरह से सरकार के रेस्पांस की स्टीयरिंग माओवादियों के हाथ में होती था। यह भी आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार थी, तो केंद्र सरकार के साथ संयुक्त अभियान चलाने में राज्य सरकार के पैर कच्चे पड़ जाते थे।
माओवाद समर्थकों के विरुद्ध भी लड़ाई लड़नी होगी
गृह मंत्री ने कहा कि जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला, तब देश की आंतरिक सुरक्षा की ²ष्टि से तीन महत्वपूर्ण हाटस्पाट थे-जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और वामपंथी रेड कारिडोर। यह देश की आंतरिक सुरक्षा को छिन्न-भिन्न किए हुए थे। मोदी सरकार ने इन पर ध्यान केंद्रित किया। लंबे समय की स्पष्ट रणनीति के आधार पर काम शुरू हुआ।
देश का 70 प्रतिशत भूभाग रेड कारिडोर में समाहित होता था। करीब 12 करोड़ की आबादी माओवादी हिंसा की परछाई में जीवन जी रही थी। इस समस्या के राजनीतिक कारण की ओर इशारा किया कि जब तक वामपंथी दल बंगाल में सत्ता में नहीं आए, तब तक वहां माओवाद पनपता रहा। उनके सत्ता में आने की सुगबुगाहट हुई तो माओवाद वहां समाप्त हो गया।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई लोग हैं, जो मानते हैं कि माओवादियों द्वारा की जा रही हत्याओं को रोकना ही भारत से माओवाद को खत्म करने के लिए पर्याप्त है, जबकि इसे समाप्त करने के लिए इसके विचार के पोषकों, वित्त पोषकों, कानूनी समर्थकों के विरुद्ध भी लड़ाई लड़नी होगी।
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