केरल के सांसद को अमित शाह ने मलयालम में दिया जवाब, भाषा विवाद के बीच अहम फैसला
दक्षिण भारत में हिंदी को लेकर चल रहे विवाद के बीच, गृह मंत्री अमित शाह ने माकपा सांसद जॉन ब्रिटास को मलयालम में पत्र लिखकर जवाब दिया है। यह पहली बार है जब किसी गृह मंत्री ने मलयालम में आधिकारिक पत्र जारी किया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब बीजेपी केरल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जहाँ भाषाई समानता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
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अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। दक्षिण भारत के कई राज्यों की सरकार ने पिछले कुछ समय में आरोप लगाए हैं कि केंद्र सरकार लोगों पर हिंदी थोप रही है। राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे क्षेत्रीय भाषा को कमजोर किया जा रहा है।
इन सब के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय का नवीनतम पत्र बेहद महत्वपूर्ण रहा। अमित शाह ने माकपा सांसद जॉन ब्रिटास को मलयालम में जवाब दिया है, जो किसी केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा इस भाषा में आधिकारिक जवाब जारी करने का पहला उदाहरण है।
केरल चुनाव से पहले बीजेपी का कदम
ध्यान देने वाली बात है कि यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब केरल चुनावी माहौल में है और ऐसे समय में जब भाजपा 2024 के आम चुनाव में केरल में अपनी पहली लोकसभा सीट जीतने के बाद राज्य में अपना विस्तार करने की कोशिश कर रही है।
मलयालम भाषा का चुनाव क्यों है खास?
बता दें कि इस भाषा का चुनाव इसलिए भी खास है कि क्योंकि ब्रिटास स्वयं संसद में भाषाई समानता के लगातार पैरोकार रहे हैं। उन्होंने पहले भी उन सांसदों के लिए अनुवाद उपकरणों की मांग की है जिन्हें बहस के दौरान लंबे हिंदी भाषण देने में दिक्कत होती है, यह तर्क देते हुए कि सच्ची विधायी भागीदारी के लिए समान भाषाई पहुंच की आवश्यकता होती है।
गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के 14 नवंबर के जवाब में औपचारिक रूप से ब्रिटास की ओर से 22 अक्तूबर को उस अधिसूचना पर दिए गए विस्तृत प्रतिनिधित्व को स्वीकार कर लिया गया है, जिसमें आरोप-पत्र को ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) पंजीकरण रद्द करने का आधार बनाया गया है।
पत्र में क्या कहा गया?
अपने पत्र में ब्रिटास ने कहा कि यह उपाय उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करता है, प्राकृतिक न्याय को नष्ट करता है तथा न्यायिक निष्कर्ष के अभाव में ओसीआई कार्डधारकों को मनमानी कार्रवाई के लिए उजागर करता है।
उन्होंने कहा कि ओसीआई योजना लंबे समय से भारत और उसके प्रवासी समुदाय के बीच एक सेतु का काम करती रही है, जो खुलेपन, निरंतरता और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है।
गृह मंत्री का पत्र प्रक्रियात्मक होने के बावजूद, हिंदी के साथ-साथ पूर्ण मलयालम संस्करण को शामिल करना उल्लेखनीय था। यह उस भाषा की राजनीतिक मान्यता का संकेत था जिसमें चिंताएँ उठाई गई थीं और यह ऐसे समय में आया जब भाषाई संघवाद पर बहस तेज हो रही है।

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