एक बार फिर केसरिया हुआ गुजरात, शाह- बोले इन नासूरों से मिली आजादी
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटों में 75 सीटों पर OBC फैक्टर का असर माना गया था। इसके साथ ही 39 सीटों पर पाटीदार फैक्टर काम कर रहा था।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। गांधी और पटेल की धरती गुजरात एक बार फिर केसरिया रंग में सराबोर है। विधानसभा चुनाव के रुझानों और नतीजों के मुताबिक कांग्रेस चुनाव हार चुकी है। कांग्रेस के नेता एक तरफ इवीएम को सीधे तौर पर दोष देने से बच रहे हैं। लेकिन वीवीपैट के 25 फीसद पर्चियों की मिलान की मांग भी कर रहे हैं।
इसके साथ ही कांग्रेस की तिकड़ी में से एक हार्दिक पटेल ने तो यहां तक कह दिया कि ये सिर्फ इवीएम का कमाल है। सच तो ये है कि भाजपा सही माएनों में जनता के दिल को जीतने में नाकाम रही है। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि गुजरात का चुनाव बहुत कुछ कहता है। आइए सबसे पहले आप को बताते हैं कि गुजरात के फैसलों पर उन्होंने क्या कुछ कहा..
गुजरात जीत पर शाह के बोल
ये जातिवाद, वंशवाद और तुष्टीकरण की हार है।
-वोट शेयर का बढ़ना 22 साल की सरकार के बाद भी बड़ी उपलब्धि है।
-जीत-हार में 8 फीसद का अंतर बड़ा अंतर होता है जीत-हार दोनों के लिए बहुत सी बातें जिम्मेदार होती हैं। सूरत और मेहसाणा की जीत कांग्रेस और उनके समर्थकों को जवाब देने के लिए महत्वपूर्ण है।
-चुनाव में प्रचार के स्तर में जरूरत से ज्यादा गिरावट आई। कांग्रेस के लोग निम्न स्तर पर प्रचार को लेकर गए।
-चार राज्यों त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और कर्नाटक में भी पार्टी जीत हासिल करेगी।
-मोदी जी के नेतृत्व में 2019 में जो चुनाव लड़ेंगे, उसमें भाजपा और अपना बेहतर प्रदर्शन कर मोदी जी के 2022 न्यू इंडिया के सपने को साकार करेंगे।
गुजरात में जीत और शाह के तीखे तेवर
अमित शाह के तेवर बिल्कुल साफ थे। हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि गुजरात में चुनाव प्रचार को जातिवाद की चाशनी में डुबोकर जनता के सामने रखा गया। लेकिन भाजपा के वोट शेयर कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उस वक्त भाजपा को 47 फीसद मत हासिल हुआ था। लेकिन कांग्रेस द्वारा जातिवाद, वंशवाद और तुष्टीकरण की राजनीति के बाद भी भाजपा को 49 फीसद से ज्यादा मत हासिल हुआ है। मतदाताओं का ये विश्वास अपने आप में ये बताने के लिए पर्याप्त है कि किस तरह पीएम मोदी के विकास का मॉडल प्रासंगिक है।
दैनिक जागरण से खास बातचीत में संपादकीय टीम के आशुतोष झा ने कहा कि कांग्रेस के चुनावी अभियान को अगर गौर से देखें तो एक बात साफ है कि उनके रणनीतिकार 1985 के खाम पैटर्न पर आगे बढ़ रहे थे। उसी कड़ी में हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश से अपनी बातचीत को आगे बढ़ाया। अल्पेश तो कांग्रेस पार्टी में शामिल भी हुए। लेकिन चुनाव परिणाम आशा के अनुरूप नहीं रहे।
चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का ये कहना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि आप सूरत और मेहसाणा के नतीजों को देखिए। सूरत और मेहसाणा दोनों पाटीदार आंदोलन के बड़े केंद्र थे। जीएसटी के विरोध में लाखों की तादाद में सूरत की सड़कों पर व्यापारी उतरे थे। लेकिन सूरत में 14 सीटों पर भाजपा की जीत से साफ है कि कांग्रेस व्यापारी वर्ग को अपने पाले में लाने में नाकाम रही।
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटों में 75 सीटों पर OBC फैक्टर का असर माना गया था। इसके साथ ही 39 सीटों पर पाटीदार फैक्टर काम कर रहा था। भाजपा ने जातिगत समीकरणों को देखते हुए पाटीदारों से हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए पिछड़ी जातियों को एकजुट करने की कोशिश की थी।
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