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    जेल में 30 दिन रहने पर पीएम-सीएम पद छोड़ने वाला बिल क्‍यों लाया गया? एक्‍सपर्ट से जानें कारण

    गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है जिसके अनुसार प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिन से अधिक जेल में रहने पर पद छोड़ना होगा। यह विधेयक हाल के दिनों में जेल से सरकार चलाने की घटनाओं के बाद लाया गया है। एक्‍सपर्ट से जानें क्‍यों लाया गया...

    By Digital Desk Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 25 Aug 2025 07:34 PM (IST)
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    PM-CM की बर्खास्तगी बिल की जरूरत क्‍यों पड़ी? फाइल फोटो

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्‍ली। हाल ही में पूर्ण हुए संसद के मॉनसून सत्र में भारी हंगामे और गरमागरम बहस के बीच देश के गृह मंत्री अमित शाह के द्वारा लोकसभा में 130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025 पेश किया गया। यह विधेयक दो अन्य पूरक विधेयकों जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 और संघ राज्य क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 के साथ ही पेश किया गया था। प्रस्ताव के बाद से ही इस पर व्यापक चर्चा शुरू हो गई है।

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    यह विधेयक अपने आप में एक ऐतिहासिक विधेयक है। इसमें प्रविधान है कि किसी गंभीर आरोप में 30 दिन तक जेल में रहने की सूरत में  प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री को अपने पद से त्यागपत्र देना होगा। इस संशोधन में भ्रष्टाचार के मामलों में 5 साल की सजा का भी प्रविधान है। विधेयक संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239 एए में संशोधन का प्रस्ताव करता है।

    क्‍या लाया गया है विधेयक?

    इस विधेयक का उद्देश्य शासन में शुचिता और आदर्श के मूल्य को स्थापित करने के साथ ही सार्वजनिक संस्थाओं में विश्वास पैदा करना है। आज के युग में घटती लोकतांत्रिक मर्यादा और सैद्धांतिक ह्रास को ध्यान में रखते हुए यह विधेयक संवैधानिक नैतिकता और संसदीय मूल्यों को स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है।

    गृह मंत्री ने विधेयक पेश करने के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का आग्रह किया। इस समिति में लोकसभा के 21 सदस्य और राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे और उन्हें संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के पहले अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।

    लोकसभा में इस बिल के पेश होने तत्काल बाद कांग्रेस और अन्य सभी विपक्षी दलों ने इसका भारी विरोध किया और इस विधेयक को अलोकतांत्रिक भी बताया है। विपक्ष के सांसदों ने अपने विचार रखते हुए कहा कि यह विधेयक संघीय ढांचे के खिलाफ है।

    उन्होंने आशंका जताई कि इसके माध्यम से सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के द्वारा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकती है और विपक्ष का दमन करने के लिए इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

    क्या है बिल लाने के मुख्‍य कारण?

    इस विधेयक को लाने के पीछे के बड़े कारणों में हाल ही के दिनों में कुछ राजनीति मामलों के कारण पूरे देश में एक बड़ा विमर्श खड़ा हुआ जैसे-

    • दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सरकार की आबकारी नीति में अनियमितता के कारण पांच माह से भी अधिक समय तक जेल में रहने के बाद भी लगातार अपने पद पर बने रहना।
    • तमिलनाडु की सरकार में मंत्री वी. सेंथिल बालाजी भी भ्रष्टाचार के एक मामले में आठ माह तक जेल में रहने के बाद भी तो मंत्री पद पर बने रहे लेकिन बाद में न्यायालय के आदेश पर बाध्य होकर उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा।

    इसलिए इस प्रकार के मामले सामने आने पर देश के आम लोगों में भी ये चर्चा रहती है कि भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग जाने के बाद किसी भी व्यक्ति को स्वतः ही नैतिकता के आधार पर अपने पद से हट जाना चाहिए।

    यदि हम अतीत पर नजर डालेंगे तो हमें ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलेंगे जिनमें किसी गंभीर आरोप के बाद बड़े पदों पर बैठे लोगों ने नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और न्यायालय के द्वारा अंतिम निर्णय आ जाने तक उन्होंने किसी भी संवैधानिक पद से दूरी बनाकर रखी।

    90 के दशक में किन नेताओं ने दिए थे इस्तीफे?

    जैसे 90 के दशक में राजनीति के गलियारों में हलचल मचा देने वाले 64 करोड़ रुपये के चर्चित जैन हवाला कांड में नाम आने पर भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने साल 1996 में अपनी संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इसी तरह हवाला कांड में ही नाम आने पर जनता दल के नेता शरद यादव ने भी नैतिकता के आधार पर सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था।

    हालांकि, बाद में इस मामले में ये दोनों ही नेता न्यायालय में इन आरोपों से बाइज्जत बरी हो गए थे, लेकिन आज वर्तमान राजनीति में इस प्रकार के उदाहरण देखने को नहीं मिलते हैं। हम देखते हैं भ्रष्टाचार और दूसरे गंभीर मामलों के बाद भी लोग सरकार में बड़े पदों पर आसीन रहते हैं। यह कहीं ना कहीं हमारे कानून की शून्यता और उसकी खामियों को उजागर करता है।

    यह भी पढ़ें- PM-CM की बर्खास्तगी बिल: किस सीएम पर दर्ज हैं सबसे अधिक मुकदमे, कानून होता तो अब तक कितनों की जाती कुर्सी?

    (दिल्ली विश्वविद्यालय असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आशीष त्रिपाठी से बातचीत)