चीन की चुनौतियों के बीच भारत की अफ्रीका नीति में नई ऊर्जा
चीन की चुनौतियों के बीच, भारत की अफ्रीका नीति में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। यह नीति भारत के रणनीतिक हितों, आर्थिक साझेदारी, और अफ्रीका के विकास को ...और पढ़ें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (पीटीआई)
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली : कई अफ्रीकी देशों में जब चीन के आक्रामक निवेश रवैये और बढ़ते कर्ज के बोझ को लेकर गहरी चिंताएं और संशय व्याप्त है तब भारत ने अफ्रीकी महाद्वीप के साथ संपर्क और साझेदारी की प्रक्रिया को अभूतपूर्व गति प्रदान की है। नवंबर, 2024 के बाद से अभी तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं छह अफ्रीकी देशों (नाइजीरिया, मारीशस, घाना, नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और इथियोपिया) की यात्रा कर चुके हैं।
भारत ने अफ्रीकी देशों को विकास सहायता, अनुदान और रियायती दरों पर कर्ज के रूप में करीब 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि बतौर मदद देने की घोषणा की है या उसका वितरण किया है। पिछले तीन वर्षों में भारत ने अफ्रीका के एक दर्जन देशों से शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल इकोनमी, कनेक्टिविटी और सैन्य क्षेत्र में सहयोग स्थापित करने का समझौता किया है।
जानकार मान रहे हैं कि पीएम मोदी के स्तर पर लगातार हो रहे दौरों ने पूरे अफ्रीकी महादेश में भारत के साथ संबंधों को एक नई ऊर्जा दी है। भारत की इस आक्रामक कूटनीतिक का असर भी दिख रहा है।
विदेश मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अफ्रीका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार पिछले पांच वर्षों में लगभग दोगुना होकर 2024-25 में 100 अरब डॉलर से अधिक पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2025 में यह व्यापार 103 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। यह किसी भी महादेश के साथ भारत के होने वाले द्विपक्षीय कारोबार में सबसे तेज वृद्धि है।
भारत सरकार की मंशा इस कारोबार को वर्ष 2030 तक बढ़ कर 150 अरब डॉलर करने की है। भारतीय कंपनियों का अफ्रीका में कुल निवेश 75 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है और अब भारत अफ्रीका के शीर्ष पांच निवेशकों में शामिल हो गया है। अफ्रीका के कई देशों मे भारत की तरफ से किया जाने वाले निवेश व आर्थिक मदद चीन के निवेश से ज्यादा हो चुके हैं।
बुधवार को इथियोपिया के पीएम अबी अहमद अली ने कहा -'भारत इथियोपिया में सबसे बड़ा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआइ) करने वाला देश है और वहां 615 से अधिक भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं।' सबसे ज्यादा निवेश करने के बावजूद चीन के किसी विश्वविद्यालय ने वहां कोई अपनी पूर्ण शाखा नहीं खोली है जबकि भारत की प्रतिष्ठित आइआइटी ने तंजानिया के जंजीबार में अपना कैंपस खोल दिया है।
वर्ष 2023 में भारत केन्या का सबसे बड़ा एशियाई साझेदार देश बना, जो वहां चीन की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा सकती है। मारीशस भी एक ऐसा देश है जो आर्थिक साझेदारी में भारत को वरीयता देता है। वैसे चीन का प्रभाव अभी भी काफी ज्यादा है। चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय व्यापार साझेदार और प्रमुख निवेशक है।
चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) के तहत अफ्रीकी देशों में बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। सितंबर, 2024 में बीजिंग में आयोजित फोरम आन चाइना-अफ्रीका कोऑपरेशन सम्मेलन में चीन ने अगले तीन वर्षों के दौरान अफ्रीका को लगभग 50.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक मदद की घोषणा की थी।
भारत का उन अफ्रीकी देशों पर फोकस जहां संसदीय व्यवस्था
भारत ने चीन की आर्थिक प्रतिस्पर्धा को एक तरफ रखकर नई रणनीति बनाई है। इसमें अफ्रीका में उन देशों पर फोकस किया गया है जहां लोकतांत्रिक ताकतें धीरे धीरे मजबूत हो रही है व लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हो रही हैं। पीएम मोदी ने उन्हीं अफ्रीकी देशों की यात्रा की है जहां संसदीय व्यवस्था है। साथ ही भारत की रणनीति साझेदारी आधारित है और इसमें कर्ज जाल में फंसाने वाली कोई चाल नहीं है।
भारत के कूटनीतिकारों का मानना है कि चीन की नीतियों से कई अफ्रीकी देशों में जिस तरह से असंतोष बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भारत की साफ्ट पावर (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और आइटी) लंबी अवधि में कारगर साबित होगी। साथ ही अफ्रीका देशों के बीच मजबूत छवि भारत को वैश्विक दक्षिण के नेता के तौर पर स्थापित करने में भी मदद करेगा। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी को मजबूती देगा।

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