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मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्‍ट में हुआ संशोधन, नाबालिग लड़कियों के हित में बड़ा फैसला

अब अगर कोई नाबालिग लड़की गर्भपात कराने के लिए आती है तो डाक्टर को उसकी पहचान उजागर करने की जरूरत नहीं है। डाक्टरों को छूट देना स्वागतयोग्य फैसला है। देश में कई ऐसी घटनाएं होती हैं जिसमें किसी कारण नाबालिग लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं।

By Jagran NewsEdited By: TilakrajPublished: Wed, 05 Oct 2022 08:55 AM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2022 08:55 AM (IST)
मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्‍ट में हुआ संशोधन, नाबालिग लड़कियों के हित में बड़ा फैसला
मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्‍ट में हुआ ये संशोधन

नई दिल्‍ली, सुनीता मिश्रा। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग लड़कियों को भी मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट, 2021 के प्रविधानों का लाभ दिया है। इसके तहत गर्भपात कराने वाली नाबालिग लड़कियों की पहचान उजागर करने से डाक्टरों को छूट प्रदान की गई है। यानी अगर कोई नाबालिग गर्भपात कराने के लिए आती है, तो डाक्टर को स्थानीय पुलिस के सामने उस लड़की की पहचान उजागर करने की जरूरत नहीं है।

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भारत में पहली बार 1971 में गर्भपात कानून पारित हुआ

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एमटीपी एक्ट, 2021 के तहत 20 से 24 हफ्ते के बीच नाबालिग, अविवाहित और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालीं महिलाओं को भी गर्भपात का अधिकार दिया है। इससे पहले यह अधिकार केवल विवाहित महिलाओं को ही प्राप्त था। गौरतलब है कि भारत में पहली बार वर्ष 1971 में गर्भपात कानून पारित किया गया था, जिसे मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी यानी एमटीपी एक्ट, 1971 नाम दिया गया। उस वक्त दुनिया के प्रगतिशील देशों में भी ऐसा कानून नहीं था। इसमें वर्ष 2021 में संशोधन किया गया, जिसमें गर्भपात की समय सीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दी गई।

मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्‍ट में हुआ ये संशोधन

मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) एक्ट 2021 के अनुसार, गर्भवती महिला 24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है। यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म, नाबालिग या गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में बदलाव (विधवा और तलाक), शारीरिक रूप से अक्षम और मानसिक रूप से बीमार महिलाओं को गर्भपात की अनुमति है। साथ ही वे महिलाएं भी गर्भपात करा सकती हैं, जिनके गर्भ में पल रहे भ्रूण में विकृति हो। इसके अलावा सहमति से यौन संबंध बनाने वाली 18 साल से कम उम्र की नाबालिग लड़कियां भी 20 से 24 हफ्ते के तक गर्भपात करा सकती हैं। ऐसे में एमटीपी एक्ट और यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा (पाक्सो) एक्ट को एक साथ देखने की जरूरत है, क्योंकि पाक्सो एक्ट 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की सहमति को मान्यता नहीं देता है। ऐसी लड़कियों की सहमति से बने संबंध दुष्कर्म और पाक्सो एक्ट के तहत अपराध हैं।

डाक्टरों को छूट देना स्वागतयोग्य फैसला

देश में कई ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसमें किसी कारण नाबालिग लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं। अक्सर अजनबियों और रिश्तेदारों द्वारा नाबालिगों का यौन शोषण किया जाता है। यौन शोषण करने वाला व्यक्ति या तो परिवार का सदस्य होता है या फिर परिवार के बहुत करीब होता है। इसलिए वे डर से सब कुछ चुपचाप सहती रहती हैं। इन मामलों में अभिभावकों को गर्भावस्था के बारे में देर से लगा लग पता है। ऐसे में गर्भपात कराने वाली नाबालिग लड़कियों की पहचान उजागर नहीं करने लिए डाक्टरों को छूट देना स्वागतयोग्य फैसला है। इससे गर्भपात कराने वाली लड़कियों को सुरक्षा मिलेगी।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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