हाईकोर्ट में जजों के 33 फीसदी पद खाली, फिर भी दो के खिलाफ महाभियोग; लंबित मामलों की सुनवाई में कैसे आएगी तेजी?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों जस्टिस वर्मा और जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग की तैयारी है। इस बीच भारत की न्यायपालिका जजों की कमी के कारण लंबित मामलों के दबाव से जूझ रही है। हाईकोर्ट में जजों के 1122 पदों में से 371 खाली हैं जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की तैयारी है। इनमें से एक जस्टिस वर्मा हैं, जिनके आवास पर जली हुई नकदी मिली थी और दूसरे जस्टिस शेखर यादव हैं, जिन पर विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में विवादास्पद टिप्पणी के आरोप हैं।
सरकार और विपक्ष दोनों अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से इनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस शोरगुल में एक सच्चाई दब गई है कि भारत की न्यायपालिका पर इस वक्त लंबित मामलों का प्रेशर है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, जजों की संख्या में कमी।
1122 में से 371 पद खाली
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राज्यसभा में सवाल पूछा कि देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में जजों की कितनी संख्या खाली है। इसके जवाब में कानून मंत्रालय ने बताया कि हाईकोर्ट्स में जजों के कुल 1122 पद हैं, लेकिन इनमें से केवल 751 पद ही भरे गए हैं। कुल पदों में से लगभग 33 फीसदी यानी 371 पद अभी खाली हैं।
दरअसल जजों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 में लिखित एक जटिल प्रक्रिया के तहत की जाती है। इसमें राज्य सरकार के परामर्श के बाद हाईकोर्ट के दो सीनियर जज द्वारा एक संक्षिप्त सूची तैयार की जाती है। इसके बाद सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजा जाता है।
गाइडलाइन के मुताबिक, किसी भी रिक्ति से 6 महीने पहले हाईकोर्ट को सिफारिशें देनी होती हैं, लेकिन कानून मंत्रालय का कहना है कि समय-सीमा का पालन नहीं किया जा रहा है। बता दें कि जस्टिस वर्मा ने आंतरिक जांच रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
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