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    जानें जटिंगा की हकीकत, क्या सच में यहां आत्महत्या करने आते हैं पक्षी?

    By Digpal SinghEdited By:
    Updated: Sat, 03 Mar 2018 09:48 AM (IST)

    दुनियाभर में लाखों करोड़ों प्राणियों के बीच संभवत: इंसान इकलौता प्राणी है जो आत्महत्या करता है। अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो एक बार यह खबर जरूर पढ़ें...

    जानें जटिंगा की हकीकत, क्या सच में यहां आत्महत्या करने आते हैं पक्षी?

    नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। कानून के अनुसार आत्महत्या एक अपराध है। इसके बावजूद हजारों लोग हर साल जिंदगी से ज्यादा मौत को तरजीह देकर आत्महत्या कर लेते हैं। कहा जाता है कि भगवान या प्रकृति द्वारा बनाया गया इंसान सबसे ज्यादा बुद्धिमान प्राणी है। यही बुद्धिमान प्राणी जब आत्महत्या जैसे कायराना रास्ते को चुनता है तो उसकी बुद्धि पर शक होने लगता है। क्योंकि दुनियाभर में लाखों करोड़ों प्राणियों के बीच संभवत: इंसान इकलौता प्राणी है जो आत्महत्या करता है। अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो चलिए आपको बताते हैं एक ऐसी जगह के बारे में जहां हजारों की संख्या में पक्षी आत्महत्या करते हैं।

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    यहां आत्महत्या करते हैं पक्षी

    भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में एक ऐसी जगह है जहां हजारों की संख्या में पक्षियों के आत्महत्या करने के मामले सामने आते हैं। यहां पक्षियों के आत्महत्या के इतने मामले हैं कि अब इस जगह को ही लोग 'चिड़ियों के लिए वैली ऑफ डेथ' के नाम से भी जानने लगे हैं। दरअसल यह असम के डिमा हसाओ जिले में एक छोटा सा गांव है, जिसका नाम है जटिंगा...

    जटिंगा के बारे में...

    जटिंगा गांव असम के सबसे शहर गुवाहाटी से करीब 330 किमी दक्षिण में स्थित है। यहां का नजदीकी शहर यहां से करीब 9 किमी दूर हाफलॉन्ग टाउन है। इस गांव के बारे में मशहूर है कि यहां हजारों की संख्या में पक्षी आत्महत्या करते हैं। इस गांव की जनसंख्या करीब 2500 है और यहां खासी-पनार जनजाति के लोग रहते हैं। जटिंगा में बर्ड वॉचिंग सेंटर भी है, अगर आप यहां जाएं तो पहले बताने पर वे आपके लिए रहने की व्यवस्था भी कर देते हैं। हाफलॉन्ग से यहां के लिए ऑटोरिक्शा भी चलते हैं। यहां चारों तरफ प्राकृति सुंदरता बिखरी हुई है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा यह गांव दर्शनीय स्थल है।

    प्रवासी पक्षी ही नहीं स्थानीय भी करते हैं आत्महत्या

    जटिंगा के बारे में मशहूर है कि पक्षी यहां आत्महत्या करने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। यह एक प्राकृतिक घटना जैसी ही है, क्योंकि कोई भी इसके बारे में कुछ सही-सही नहीं बता पाता है। लेकिन इतने बड़े स्तर पर पक्षियों के आत्महत्या के मामले में अब वैज्ञानिक भी इस ओर देखने लगे हैं। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ प्रवासी पक्षी ही यहां आकर आत्महत्या करते हैं, बल्कि स्थानीय पक्षियों को भी यहां आत्महत्या करते हुए देखा जा सकता है।

    कब करते हैं पक्षी आत्महत्या

    अगर पक्षियों के आत्महत्या करने के समय की बात करें तो मानसून (बरसात) के बाद यानि सितंबर से नवंबर के बीच पक्षी यहां आत्महत्या करते हैं। इन महीनों में भी शाम को 6 बजे से रात करीब देर रात करीब 10 बजे तक ही पक्षियों में आत्महत्या करने की प्रवृति दिखती है। यहां यह भी बता दें कि स्थानीय लोग इन पक्षियों को परेशान नहीं करते और न ही वे इन्हें मारने की कोशिश करते हैं।

    बुरी आत्माओं का काम

    स्थानीय लोगों को पहले पहल तो यही लगता रहा कि उनके गांव पर बुरी आत्माओं का साया है। इन चिड़ियों के रूप में बुरी आत्माएं उनके गांव पर हमला करने के लिए आती हैं। कुछ स्थानीय लोगों का तो यह भी मानना था कि आसमान की बुरी शक्तियां इन चिड़ियों को नीचे की ओर भेजता है। यही नहीं उनका तो यह भी मानना था कि केवल कुछ प्रजातियां जो उन बुरी शक्तियों की बात नहीं मानती उन्हें को वह नीचे की ओर भेजती है।

    ऐसे होते हैं जटिंगा के हालात

    जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि मानसून के बाद सितंबर से नवंबर के बीच शाम को अंधेरा होने के वक्त चिड़ियों की आत्महत्या का यह सिलसिला शुरू होकर रात करीब 10 बजे तक चलता है। बता दें कि ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरे जटिंगा गांव में शाम के इस वक्त अंधेरा गहराने लगता है। इस दौरान हवा का दबाव भी काफी ज्यादा होता है और पूरे इलाके को गहरी धुंध घेर लेती है। एक खास बात यह भी है कि जानकारों के अनुसार ज्यादातर अवयस्क पक्षी ही यहां आत्महत्या करते हैं।

    1960 में दुनिया के सामने आयी यह घटना

    पक्षी विज्ञानियों के अनुसार चिड़ियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति नहीं होती है। एक ब्रिटिश भारतीय पर्यावरण प्रेमी एडवर्ड पिचर्ड गी 1960 के दशक में इस घटना को दुनिया के सामने लाए। वे एक मशहूर पक्षीविज्ञानी सलीम अली के साथ जटिंगा गए थे। उस वक्त यह दोनों जिस निश्कर्ष पर पहुंचे उसके अनुसार ऊंचाई पर दिशभ्रम, तेज हवा और वहां फैला कुहरा इतनी बड़ी संख्या में चिड़ियों की मौत के लिए जिम्मेदार था। एक रिसर्च के अनुसार ज्यादातर अवयस्क पक्षी तेज हवा के थपेड़ों को सह नहीं पाते और वे गांव से आ रही लाइट की तरफ जाने की कोशिश में हवा के तेज बहाव की चपेट में आ जाते हैं। इसकी वजह से वे बांस और घरों की दीवारों से टकराकर या तो मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं।

    एक सच्चाई यह भी है

    यहां की एक खास बात यह भी है कि पक्षी पूरे जटिंगा रिज की तरफ आकर्षित नहीं होते, बल्कि यह करीब 1.5 किमी लंबा और 200 मीटर चौड़ाई वाला हिस्सा है। इस खास इलाके में ही चिड़ियों के आकर आत्महत्या करने की बातें सामने आती हैं। एक और खास बात है कि यहां पक्षी उत्तर दिशा की तरफ से आते हैं और इस रिज के दक्षिणी छोर से आती लाइट की तरफ आकर्षित होते हैं। यह भी कि लंबी दूरी के प्रवासी पक्षी इस लाइक की तरफ आकर्षित नहीं होते, बल्कि छोटे और आसपास के इलाकों से आने वाले पक्षी ही यहां शिकार बनते हैं। जैसे ही सूर्य छिपता है सैकड़ों की संख्या में यह पक्षी दक्षिण से आ रहे प्रकाश की ओर तेजी से उड़ान भरते हैं और बांस या घर की दीवारों पर टकराकर मर जाते हैं।