Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भगवान भरोसे बेलगाम चल रहे विश्वविद्यालय और कॉलेज, अल फलाह यूनिवर्सिटी से उठे सवाल 

    By ARVIND KUMAREdited By: Abhishek Pratap Singh
    Updated: Wed, 19 Nov 2025 10:30 PM (IST)

    अल फलाह यूनिवर्सिटी मामले के बाद निजी विश्वविद्यालयों की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। यूजीसी और अन्य नियामक एजेंसियों की भूमिका संदिग्ध है, क्योंकि मान्यता के बाद विश्वविद्यालयों की निगरानी नहीं की जाती। 2003 के बाद से नियमों में कोई सुधार नहीं हुआ है। देश में लगभग 540 निजी विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से कई सरकार से वित्तीय सहायता लेते हैं। गुजरात में सबसे अधिक निजी विश्वविद्यालय हैं।

    Hero Image

    अल फलाह यूनिवर्सिटी। (फाइल फोटो)

    अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। लालकिला धमाका की लेबोरेट्री के रुप में सामने आए अल फलाह यूनिवर्सिटी मामले के बाद देश भर में फैले निजी विश्वविद्यालयों व कॉलेजों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि इनके काम-काज और उनकी गतिविधियों को कोई देखने वाला है भी या नहीं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वैसे अल फलाह यूनिवर्सिटी को लेकर जो घटनाक्रम सामने आए हैं, उससे साफ है कि देश भर में फैले निजी विश्वविद्यालयों को देखने वाला कोई तंत्र नहीं है। क्योंकि यदि कोई इन पर नजर रखता तो शायद वह नैक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) की फर्जी रैंकिंग का दावा नहीं कर रहा होता। हालांकि फर्जी रैंकिंग का मामला सामने आने के बाद यूजीसी ने ठीक वैसी ही खानापूर्ति की है, जैसा वह हर साल देश में सालों से चल रहे फर्जी विश्वविद्यालयों की सिर्फ सूची जारी करके जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।

    यूजीसी समेत इन एजेंसियों की भूमिका सवालों के घेरे में

    यूजीसी सहित विश्वविद्यालय में सक्रिय दूसरी नियामक एजेंसियों की भूमिका इसलिए भी सवालों घेरे में है क्योंकि वह निजी विश्वविद्यालय को मान्यता देते समय एक बार निरीक्षण करने के बाद फिर नहीं देखती कि विश्वविद्यालय में क्या चल रहा। यूजीसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक उनका काम शैक्षणिक गुणवत्ता और छात्रों के हितों का ध्यान रखना होता है।

    उन्हें कहीं से इससे संबंधित कोई शिकायत या फिर निजी विश्वविद्यालय में चल रही गड़बडि़यों की कोई जानकारी मिलती है, तो वह कार्रवाई करते है। निजी विश्वविद्यालयों का गठन राज्य के नियमों के तहत होता है, इसलिए इनमें राज्यों की भूमिका अधिक होती है। निजी विश्वविद्यालय नियमन के तहत राज्यपाल ही अधिकांश निजी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होते है।

    यूजीसी के रवैये में कोई सुधार नहीं

    निजी विश्वविद्यालयों को लेकर यूजीसी के रवैए का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 2003 के बाद से इससे जुड़े नियमन में कोई भी सुधार भी नहीं किया गया है। साथ ही इस नियमन में निजी विश्वविद्यालयों के जांचने या उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कोई मजबूत तंत्र भी नहीं है। अल फलाह विश्वविद्यालय मामले में भी यह देखने को मिला है, जिसने अपने यहां यूजीसी के नियम के विरुद्ध ऐसे लोगों को नौकरी दी, जो पहले से ही किसी मामले में दागी थे।

    इस मामले में यूजीसी की तरह उच्च शिक्षा से जुड़ी एआईसीटीई,एनसीटीई और नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी ) जैसे नियामक भी जिम्मेदार है, क्योंकि विश्वविद्यालयों में इन नियामकों से मान्यता लेकर भी इंजीनियरिंग, मेडिकल, शिक्षक शिक्षा से जुड़े कोर्स संचालित होते है।

    गौरतलब है कि इन नियामकों का यह रवैया तब है, जब मौजूदा समय में देश में करीब 540 निजी विश्वविद्यालय काम कर रहे है। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे भी निजी विश्वविद्यालय है, जो सरकार व यूजीसी से वित्तीय सहायता लेते है।

    सबसे अधिक 66 निजी विश्वविद्यालय अकेले गुजरात में, 48 उत्तर प्रदेश में भी

    निजी विश्वविद्यालय वैसे तो देश के सभी राज्यों में है, लेकिन सबसे अधिक 66 निजी विश्वविद्यालय गुजरात में चल रहे है। वहीं निजी विश्वविद्यालयों के मामले में दूसरे नंबर मध्य प्रदेश है, जहां कुल 54 निजी विश्वविद्यालय है। राजस्थान में 53, उत्तर प्रदेश में 48, महाराष्ट्र में 39, उत्तराखंड़ में 31, कर्नाटक में 29, हरियाणा में 25, छत्तीसगढ़ में 18, झारखंड में 18 और बिहार में सात निजी विश्वविद्यालय चल रहे है।

    यह भी पढ़ें: आतंक का अड्डा कैसे बनी अल फलाह यूनिवर्सिटी? ED ने कसा शिकंजा; 25 स्थानों पर छापा... अब तक क्या-क्या हुआ?