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    अजीत डोभाल ने खुफिया व सुरक्षा बलों के अफसरों से ली पूर्वोत्तर राज्यों के स्थिति की जानकारी

    By Dhyanendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 25 Nov 2019 10:07 PM (IST)

    राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने पूर्वोत्तर राज्यों में खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों के साथ-साथ असम राइफल्स और अर्धसैनिक बलों के प्रमुख के साथ ...और पढ़ें

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    अजीत डोभाल ने खुफिया व सुरक्षा बलों के अफसरों से ली पूर्वोत्तर राज्यों के स्थिति की जानकारी

    नई दिल्ली, प्रेट्र। केंद्र सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने सोमवार को पूर्वोत्तर राज्यों के सुरक्षा हालात की समीक्षा की। नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्तमान में जारी संसद के शीत सत्र में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन का विधेयक कार्यसूची में शामिल किया है। इस कदम के विरोध में पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले कुछ हफ्तों से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। संशोधन के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के प्रताड़ित गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रस्ताव है।

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    सोमवार को हुई इस बैठक की अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने की। इसमें पूर्वोत्तर राज्यों में खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों के साथ-साथ असम राइफल्स और अर्धसैनिक बलों के प्रमुख उपस्थित थे। एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय द्वारा आयोजित इस बैठक में नागरिकता (संशोधन) विधेयक के विरोध के बारे में मिल रहीं खुफिया सूचनाओं का विश्लेषण किया गया। शीर्ष अधिकारियों ने विरोध प्रदर्शनों और प्रस्तावित विधेयक के बारे में लोगों के रुख को लेकर अपने-अपने संगठनों के निष्कर्षो का विस्तृत प्रजेंटेशन दिया।

    कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और माकपा संशोधन का कर रही हैं विरोध

    बता दें कि भाजपा ने 2014 और 2019 के चुनावी घोषणापत्र में इस अधिनियम में संशोधन का वादा किया था। लेकिन पूर्वोत्तर में लोगों और संगठनों का एक बड़ा वर्ग इसका विरोध कर रहा है। उनका कहना है कि प्रस्तावित विधेयक के प्रावधान 1985 में हुए असम समझौते के प्रावधानों को बेअसर कर देंगे। असम समझौते में हर धर्म के अवैध प्रवासियों को प्रत्यर्पित करने के लिए कटऑफ तारीख 24 मार्च, 1971 तय की गई थी। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और माकपा भी प्रस्तावित संशोधन का यह कहकर विरोध कर रही हैं कि नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं दी जा सकती।

    दरअसल, मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में संशोधन विधेयक को लोकसभा से पारित करा लिया था, लेकिन पूर्वोत्तर में विरोध के चलते उसे राज्यसभा में पेश नहीं किया था। लिहाजा, लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही संशोधन विधेयक भी लैप्स हो गया था।