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    जहां गोलियों की गूंज थी, वहां एआइ से फैल रहा ज्ञान का प्रकाश

    Updated: Sun, 07 Sep 2025 05:37 PM (IST)

    बस्तर संभाग में शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जा रहा है। गोंडी और हल्बी जैसी स्थानीय भाषाओं में शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। दंतेवाड़ा में शुरू हुआ एजु-टैब मॉडल अब बीजापुर तक पहुंच गया है जहां बच्चे चैटबॉट की मदद से जटिल विषयों को आसानी से समझ रहे हैं। डिजिटल क्लासरूम और पुस्तकालयों से साक्षरता दर में सुधार हो रहा है।

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    बीजापुर के सेंट्रल लाइब्रेरी में आर्टिफिशियल इंटलिजेंस के प्रयोग से पढ़ाई के तरीके सीख रहे बच्चे

    जगदलपुर: बस्तर संभाग, जहां कभी शिक्षा एक चुनौती थी, वहां अब तकनीक शिक्षा का उजियारा ला रही है। छत्तीसगढ़ में सबसे कम साक्षरता दर वाले इस क्षेत्र में सरकार की पहल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) आधारित शिक्षा एक नई क्रांति ला रही है। कभी बंदूकें थामने वाले मासूम हाथों में अब टैबलेट और मोबाइल चमक रहे हैं।

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    चैटबाट की मदद से बच्चे अब जटिल विषयों को अपनी स्थानीय भाषा जैसे गोंडी और हल्बी में भी आसानी से समझ पा रहे हैं। इसके साथ ही प्रयास, आवासीय विद्यालय और केंद्रीय पुस्तकालय, शिक्षादूत जैसे उपायों से अब साक्षरता दर धीरे-धीरे बढ़ने लगी है।

    बीजापुर के तोयनार विद्यालय की कक्षा में जब घंटी बजी, तो बच्चे पूरे उत्साह से बैठ गए। पांचवीं की छात्रा मंगली मुस्कराकर कहती है, अब मोबाइल पर भी वही पाठ दोहरा लेती हूं जो कक्षा में सिखाया जाता है। पहले किताबें समझ में नहीं आती थीं, अब चैटबाट हमारी भाषा में समझा देता है। यही बदलाव आज पूरे बस्तर की पहचान बन रहा है।

    दंतेवाड़ा में शुरू हुआ एआइ-आधारित एजु-टैब माडल अब बीजापुर तक पहुंच चुका है। लगभग 50 विद्यालयों में डिजिटल पटल, टैबलेट और बहुभाषी चैटबाट बच्चों को न केवल हिंदी और अंग्रेजी बल्कि गोंडी और हल्बी जैसी स्थानीय भाषाओं में भी शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। यह प्रयोग बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ा रहा है।

    दंतेवाड़ा के भांसी पोर्टाकेबिन विद्यालय का उदाहरण लें। आठवीं कक्षा का छात्र विकास अतरा जब चैट-जीपीटी से पूछता है, प्रकाश संश्लेषण क्या होता है? तो उसे सरल भाषा में जवाब मिलता है। दोबारा पूछने पर चैटबाट फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया को विस्तार से समझाता है। यही कारण है कि जिन बच्चों के गांव में कभी स्कूल तक न थे, वे अब एआइ से विज्ञान की जटिल अवधारणाएं सीख रहे हैं।

    माओवादियों के क्षेत्र में शिक्षा क्रांति

    कलेक्टर संबित मिश्रा ने एक पखवाड़े पहले ही में बीजापुर में एआइ से शिक्षा की शुरुआत की है, जो बीजापुर के 50 स्कूलों के एक हजार से अधिक बच्चों को नई राह दे रहा है। जिन विद्यार्थियों के घरों में मोबाइल है, उन्होंने अपने निजी पर चैट-जीपीटी इंस्टाल कर लिया है। शिक्षकों को भी प्रशिक्षण भी दिया गया है, ताकि वे एआइ को प्रभावी ढंग से प्रयोग कर सकें।

    कलेक्टर पात्रा कहते हैं कि एआइ से पढ़ाई बच्चों के लिए खेल की तरह बन गई है। वे अब खुलकर प्रश्न पूछते हैं और आत्मविश्वास से सीखते हैं। आगे अधिक से अधिक स्कूलों तक एआइ आधारित शिक्षा को लागू करने की योजना पर काम कर रहे हैं।

    बस्तर में झोपड़ी से स्मार्ट लाइब्रेरी का सफर

    कभी बस्तर में शिक्षा की लौ टिमटिमाती-सी थी। सलवा जुडूम आंदोलन और माओवादी प्रभाव के दौरान दो हजार से अधिक स्कूल बंद कर दिए गए थे, जिससे बच्चे किताबों से दूर होते चले गए। हालात बदले तो 600 से अधिक स्कूल गांवों की झोपड़ियों में फिर से खुले, जहां स्थानीय युवाओं ने ‘शिक्षादूत’ बनकर बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया। आज ये झोपड़ियां पक्के भवनों में बदल रही हैं।

    डिजिटल क्लासरूम से सपनों की उड़ान

    कोंडागांव की आश्रम शालाओं में बने ‘कल्पना कक्ष पुस्तकालय’ बच्चों को डिजिटल क्लासरूम और किताबों की दुनिया से सपनों की उड़ान दे रहे हैं। 1600 छोटे स्कूल बड़े स्कूलों से जुड़ चुके हैं, जहां प्रयोगशाला, कंप्यूटर और खेल सुविधाएं उपलब्ध हैं।

    वहीं, एकलव्य आदर्श और प्रयास आवासीय विद्यालय दूर-दराज के बच्चों को पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का अवसर दे रहे हैं। जगदलपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा की सेंट्रल लाइब्रेरी युवाओं को डिजिटल ज्ञान से जोड़ रही हैं।

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