अखबार के पन्नों में इसरो-नासा को तलाशा करती थीं नन्ही रितु की नजरें, आज हैं भारत की 'रॉकेट वुमन'
महिला जगत को सशक्त बनाने वाली महिलाओं में इसरो वैज्ञानिक रितु करिधल हैं जिन्होंने मार्स मिशन को कामयाबी दिलाई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर उन्हें सलाम...।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। चांद तारों को छूने की आशा, आसमानों में बढ़ने की आशा... ऐसा ही कुछ लखनऊ की आसमान को एकटक निहारने वाली नन्ही सी बच्ची की भोली सी आशा थी जो आगे चलकर पूरी हो गई। नन्हीं सी बच्ची लखनऊ के आसमान में तारे गिनते-गिनते इसरो पहुंच गई। वह बच्ची कोई और नहीं सफल मंगलयान मिशन की रितु करिधल श्रीवास्तव (Ritu Karidhal Srivastava) हैं जो आज भारत की 'रॉकेट वुमन' हैं और लड़कियों के लिए रोल मॉडल भी। चांद के आकार को लेकर बचपन से ही रितु के मन-मस्तिष्क में सवाल घुमड़ता रहा कि आखिर यह घटता-बढ़ता क्यों रहता है। इसके लिए उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने सफलता को रंग दिया। दो बच्चों की मां रितु बेंगलुरु के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पहुंच गईंं। वहां न जाने कितने प्रोजेक्ट केे लिए काम किया।
केवल वीनस से महिलाओं केे नाते का तोड़ा भ्रम
आमतौर पर ‘मार्स से पुरुषों को और वीनस से महिलाओं’ को जोड़ा जाता रहा है लेकिन मार्स मिशन की सफलता ने इस लोकोक्ति को पूरी तरह बदल दिया और मार्स पर महिलाओं का राज साबित कर दिया। इस मिशन की सफलता के बाद प्रसन्न रितु ने कहा था, ‘मैं धरती की महिला हूं, भारतीय महिला जिसे खूबसूरत और बेहतर मौका मिला।'
फिजिक्स और मैथ्स से था प्यार
साइंस की छात्रा रितु को शुरू से ही फिजिक्स और मैथ्स से प्यार था। साथ ही अखबार के पन्नों में रोजाना उनकी नजरें नासा और इसरो प्रोजेक्टों की जानकारी तलाशा करतीं थीं। अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़ी छोटी से छोटी खबर भी वह पूरे मनोयोग से पढ़ती थीं और उस खबर वाले पेज की कटिंग अपने पास संजो कर रख लेती थीं। पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री के बाद उन्होंने इसरो में नौकरी के लिए आवेदन किया और बस बन गईं अंतरिक्ष वैज्ञानिक। पिछले 23 सालों के दौरान उन्होंने इसरो के कई प्रोजेक्ट पर काम किए जिसमें से एक मार्स मिशन भी है।
वर्क और लाइफ में संतुलन आसान नहीं
अप्रैल 2012 में मिशन की शुरुआत हुई और मिशन में शामिल वैज्ञानिकों के पास इसे पूरा करने के लिए मात्र 18 महीने का समय था। दो बच्चों की मां करिधल ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा था, ‘वर्क और लाइफ के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं था लेकिन मुझे अपने परिवार से पूरा सपोर्ट मिला।’ रितु के भाई-बहन लखनऊ में ही राजाजीपुरम स्थित पैतृक आवास में रहते हैं। रितु करिधल श्रीवास्तव को चंद्रयान-2 का मिशन डायरेक्टर नियुक्त किया गया। इससे पहले उन्होंने मंगलयान मिशन में डिप्टी ऑपरेशनल डायरेक्टर का पद संभाला था।
2007 में युवा वैज्ञानिक का मिला था सम्मान
लखनऊ में सेंट एगनिस स्कूल और नवयुग कन्या विद्यालय से रितु ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की। इसके बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी से एमएससी की डिग्री हासिल की। 1997 में अपनी पीएचडी शुरू की। एक साल में ही रितु ने ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट (गेट) पास कर लिया और बेंगलुरु चली गईं। वहां भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में शामिल होने का मौका मिला। वर्ष 2007 में इसरो की प्रथम युवा वैज्ञानिक के तौर पर रितु का चुनाव हुआ।
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