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    आदिवासियों ने मिलकर लिया संकल्प और अपने गांव को बना दिया शराबमुक्त

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Sat, 16 Feb 2019 10:11 AM (IST)

    शराब से इस गांव को मुक्ति दिलाने के लिए ग्रामीणों ने ना कोई आंदोलन चलाया और ना ही किसी पर जुर्माना लगाया। ...और पढ़ें

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    आदिवासियों ने मिलकर लिया संकल्प और अपने गांव को बना दिया शराबमुक्त

    रविन्द्र थवाइत, जशपुरनगर। शराबमुक्त प्रदेश का सपना अभी भले ही दूर की कौड़ी नजर आ रही हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में इसकी शुरूआत हो चुकी है। जिले के मनोरा तहसील में स्थित ग्राम पंडरसीली के ग्रामीणों ने अपने गांव की सीमा में इसे साकार करके दिखा दिया है। इस गांव में ना तो शराब बनाई जाती है और ना ही बेची जाती है। शराब से इस गांव को मुक्ति दिलाने के लिए ग्रामीणों ने ना कोई आंदोलन चलाया और ना ही किसी पर जुर्माना लगाया। बस, गांव को शराबमुक्त करने का सामूहिक निर्णय लिया और गांव में पीढ़ियों से पसरी यह बुराई देखते ही देखते हमेशा के लिए समाप्त हो गई।

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    चारों ओर घने पहाड़ियों से घिरे पंडरसीली गांव की आबादी तकरीबन डेढ हजार है। सांसद आदर्श इस गांव में पहाड़ी कोरवा और उरांव जनजातिय लोगों की बहुलता है। यहां के निवासी बिफनाथ राम ने बताया कि गांव में शराब की वजह से सामाजिक और पारिवारीक महौल लगातार खराब हो रहा था। घरेलू कलह और ग्रामीणों के बीच होने वाले आपसी विवाद से लोग परेशान थे। ऐसे में तकरीबन 2 साल पहले एक दिन ग्रामीणों ने एकजुट हो कर गांव में शराब ना बनाने के लिए पहल की। गांव के अखरा सभा स्थल पर एकजुट हुए।

    गांव की स्थिति सुधारने और बच्चों को शराब से दूर रखने की बात कहते हुए शराब बंदी का प्रस्ताव रखा गया। यह प्रस्ताव गांव के सभी जातिय व समुदाय के लोगों ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया। यहां के निवासी फगुआ राम ने बताया कि पंडरसीली में महुआ से बनने वाले देशी शराब के साथ चावल से बनाया जाने वाला शराब, जिसे स्थानीय बोली में हड़िया कहा जाता है, के बनाए जाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। गांव मे लिए गए इस बैठक के बाद से अब कोई शराब नहीं बनाता है। हां,आसपास के दूसरे गांवों से इक्का-दुक्का ग्रामीण शराब पी कर आते हैं, लेकिन गांव की सीमा के अंदर ना तो शराब बनाई जा रही है और ना ही बेची जा रही है।

    युवा विरेन्द्र राम और अनिल तिग्गा ने बताया कि शराब बंदी होने से गांव के महौल में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कभी शराब के नशे में धुत्त हो कर दिन भर लड़ने झगड़ने वाले ग्रामीण के बीच आपसी सामाजंस्य देखते ही बनता है। गांव में कोई बीमार पड़ा हो या फिर कोई पारिवारिक कार्यक्रम हो, सभी लोग एकजुट हो कर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।