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    Aditya-L1 Mission: आदित्य-एल1 ने सफलतापूर्वक किया पहली कक्षा में बदलाव, ISRO ने बताया क्या होगा अगला चरण

    आदित्य एल1  ने सफलतापूर्वक पृथ्वी के पहले कक्षा में बदलाव कर लिया है। इस यान के साथ सात पेलोड भेजे गए हैं जो सूरज का अध्ययन करेंगे और कई राज से पर्दा हटाएंगे। इनमें से चार पेलोड सूरज की रोशनी का अध्ययन करेंगे और सबसे बड़ा पेलोड सूर्य की तस्वीरें भेजेगा। गौरतलब है कि वैज्ञानिकों के मुताबिक हर मिनट पांच सालों तक एक नई तस्वीर आएगी।

    By AgencyEdited By: Shalini KumariUpdated: Sun, 03 Sep 2023 01:30 PM (IST)
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    आदित्य-एल1 ने सफलतापूर्वक बदली अपनी पहली कक्षा

    बेंगलुरु, पीटीआई। आदित्य-एल1 मिशन के सफल लॉन्चिंग के बाद इसरो ने एक नया अपडेट दिया है। दरअसल, रविवार को इसरो की ओर से जानकारी दी गई है कि देश के पहले सौर मिशन, आदित्य L1 का पहला अर्थबाउंड मेन्यूवर सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।

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    5 सितंबर को बदलेगा दूसरी कक्षा

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने यह भी कहा कि सैटेलाइट पूरी तरह से स्वस्थ है और संचालन भी काफी सही तरीके से हो रहा है। अगला मेन्यूवर 5 सितंबर, 2023 को लगभग 3.00 बजे के लिए निर्धारित है।

    इसरो ने 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर एक अपडेट जारी करते हुए कहा, "आदित्य-एल1 मिशन: उपग्रह स्वस्थ है और संचालन कर रहा है। पहला अर्थबाउंड मेन्यूवर (ईबीएन#1) आईएसटीआरएसी, बेंगलुरु से सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। यह कक्षा (Orbit) 245 किमी x 22459 किमी का है। अगला मेन्यूवर (ईबीएन#2) 5 सितंबर, 2023 को लगभग 03:00 बजे के लिए निर्धारित है।"

    श्रीहरिकोटा से किया गया लॉन्च

    आदित्य एल1 (Aditya-L1) को 2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। इस मिशन का लक्ष्य सोलर-अर्थ L1 बिंदु पर भारत की पहली सौर स्पेसक्राफ्ट को स्थापित करके सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन करना है। L1 का मतलब लाग्रेंज पॉइंट-1 है, इसी जगह अंतरिक्ष यान तैनात किया जाएगा, जो पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

    रोजाना भेजेगा 1440 तस्वीरें

    सौर पैनल तैनात होने के बाद उपग्रह ने बिजली पैदा करना शुरू कर दिया। इसरो के मुताबिक, आदित्य-एल1 पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी दूर जाकर सूर्य का अध्ययन करेगा। गौरतलब है कि यह दूरी सूर्य और पृथ्वी की दूरी का केवल एक प्रतिशत है। यह न तो सूर्य पर उतरेगा और न ही सूर्य के और करीब आएगा। यह पूरा अध्ययन इतनी ही दूरी से किया जाएगा।