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अबूझमाड़िया बोले-सदियों से जमीन हमारी, नहीं चाहिए सरकारी पट्टा

नारायणपुर जिले से लेकर दंतेवाड़ा, बीजापुर और महाराष्ट्र की सीमा तक 4400 वर्ग किमी में विस्तृत अबूझमाड़ अपने नाम के अनुरूप अबूझ ही है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 08:07 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 08:07 PM (IST)
अबूझमाड़िया बोले-सदियों से जमीन हमारी, नहीं चाहिए सरकारी पट्टा
अबूझमाड़िया बोले-सदियों से जमीन हमारी, नहीं चाहिए सरकारी पट्टा

अनिल मिश्रा, रायपुर, नईदुनिया। अबूझमाड़ के राजस्व सर्वे का माड़िया आदिवासियों ने विरोध शुरू कर दिया है। अबूझमाड़िया कह रहे हैं कि यह धरती हमारी है, सदियों से हम यहां रहते आ रहे हैं। पुरखों ने जो व्यवस्था बनाई है उसी में हमें रहने दो। आपका सरकारी पट्टा नहीं चाहिए। अबूझमाड़ियों ने परंपरागत रूढ़िगत ग्राम सभा का आयोजन कर सरकारी भू अभिलेख को निरस्त करने का एलान किया है और भूमि के निर्धारण का अधिकार ग्राम सभा को दे दिया है।

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17 सितंबर को इस ग्राम सभा की बैठक ओरछा में बुलाई गई थी। अब गांव-गांव में परंपरागत ग्राम सभा का आयोजन किया जा रहा है। इन ग्राम सभाओं का संचालन भूम गायता, पटेल, मांझी, पुजारी आदि आदिम सभ्यता के हिसाब से कर रहे हैं।

44 सौ वर्गकिमी में है अबूझमाड़

बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले से लेकर दंतेवाड़ा, बीजापुर और महाराष्ट्र की सीमा तक 4400 वर्ग किमी में विस्तृत अबूझमाड़ अपने नाम के अनुरूप अबूझ ही है। यहां दो सौ अधिक गांव हैं लेकिन भूमि की सीमा का निर्धारण कभी नहीं हो सका। घने जंगलों, पहाड़ों, नदी-नालों से घिरे अबूझमाड़ में आज भी आदिम सभ्यता जीवित है। अकबर के जमाने में एक बार लगान वसूलने के लिए भूमि सर्वेक्षण शुरू किया गया था जो पूरा नहीं किया जा सका। ब्रिटिश सरकार ने 1908 में एक और प्रयास किया वह भी विफल रहा। अब छत्तीसगढ़ सरकार यह काम कर रही है। इसरो और आइआइटी रुडकी के सहयोग से हवाई सर्वेक्षण किया गया है। गांवों तक जाकर राजस्व अमला भूमि नापने में लगा है। हालांकि यह काम इतना आसान नहीं है। दो साल में अबूझमाड़ के बाहरी इलाके के गांवों तक ही राजस्व की टीमें पहुंच पाई हैं। इसी बीच विरोध भी शुरू हो गया है।

आदिवासी पंचायत के निर्णय सर्वोपरि

अबूझमाड़ियों की परंपरा में उनकी पंचातयों के निर्णय को सर्वोपरि माना जाता है। न्याय व्यवस्था के रूढ़िगत ग्राम सभाओं का गठन किया गया है। यह ग्राम सभाएं सभी तरह के निर्णय देती हैं। ओरछा और बासिंग गांवों में आयोजित ग्राम सभाओं ने सरकारी भू अभिलेखों का परीक्षण पुजारी, मांझी, पटेल, गायता ने किया और असंतोष जाहिर किया। निर्णय लिया गया है कि आदिम जनजाति के सदस्यों ने पेंदा या चल खेती के लिए जो जमीन सदियोें से सुरक्षित रखी है उस जमीन के स्वामी का निर्धारण ग्राम सभा करेगी सरकार नहीं।

सीमांकन और मिशल बंदोबस्त करेगी ग्राम सभा

अबूझमाड़ियों ने कहा कि कुछ वर्षों से बाहरी लोगों ने हमारी जमीनों पर कब्जा कर लिया है। इन जमीनों का सीमांकन ग्राम सभा करेगी और वास्तविक स्वामी को भूमि का अधिकार वापस दिलाएगी। ग्राम सभा ने ग्राम पंचायत ओरछा की जमीनों का नए सिरे से बंदोबस्त कर इसकी सूचना राज्यपाल, राजस्व विभाग के सचिव, बस्तर कमिश्नर और कलेक्टर के साथ ही सर्व आदिवासी समाज, गोंडवाना समाज आदि को भेज दी है।

अपनी योजनाओं से जोड़ने का तरीका निकाले सरकार

अबूझमाड़ में भूमि का रिकार्ड न होने से इस अति पिछड़ी आदिम जनजाति को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। आपदा राहत, फसल बीमा, कृषि संबंधी अन्य योजनाओं के लिए भूमि का रिकार्ड जरूरी है। नईदुनिया ने पारंपरिक ग्राम सभाओं का आयोजन करने वाले अबूझमाड़िया समाज के अध्यक्ष रामजी ध्रुव और गुड्डू नरेटी से पूछा कि फिर आपको सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे मिलेगा। जवाब मिला-सरकार यह देखे की हमारी परंपरागत व्यवस्था में वह हमें अपनी योजनाओं से कैसे जोड़ सकती है। परंपरागत ग्राम सभा लोगों को अपना भू अधिकार पत्रक भी बांट रही है।


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