जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की एक ना सुनी, पढ़िए सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन की दिलचस्प कहानी
Todays History सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से ज्यादा चर्चा तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के इस कार्यक्रम में जाने की होती रही है। इसी कार्यक्रम को लेकर तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू और राजेन्द्र प्रसाद में मतभेद की बात सामने आई थी।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Today's history आज ही के दिन यानी 11 मई को सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण के बाद उद्घाटन हुआ था। सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से ज्यादा चर्चा आज तक तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के इस कार्यक्रम में जाने की होती है।
इसी कार्यक्रम से तत्कालीन पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद में मतभेद की बात सामने आई थी।
सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में गए राजेंद्र प्रसाद
भारत के पहले राष्ट्रपति और बिहार के लाल कहे जाने वाले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने सन 1951 में 11 मई को सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन कर शिवलिंग की स्थापना की थी, जो आज भी वर्तमान में मौजूद है। आपको बता दें कि इस कार्यक्रम में जाने से पहले प्रसाद को विरोध का भी सामना करना पड़ा था।
नेहरू की नहीं मानी थी बात
दरअसल, तत्कालीन पीएम पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम का हिस्सा बनें। नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए प्रसाद किसी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बनें। उनका मानना था कि इससे आम जनता में गलत संदेश जा सकता है। इसी कारण उन्होंने राष्ट्रपति को रोकने का प्रयास भी किया, लेकिन प्रसाद ने नेहरू की एक ना सुनी और मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए।
नेहरू को प्रसाद का जवाब
पंडित नेहरू ने डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को कहा था कि सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं है, इसलिए उन्हें इसमें नहीं जाना चाहिए। इस बात का जवाब देते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति ने कहा था कि मैं अपने धर्म को बहुत मानता हूं और इससे खुद को अलग नहीं कर सकता।
इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए और उन्होंने शिवलिंग की स्थापना भी की।
सरदार पटेल ने रखा था सोमनाथ के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव
बता दें कि तत्कालीन गृह और उप- प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने महात्मा गांधी को चिट्ठी लिख इसको लेकर अपनी सोच का जिक्र किया था। गांधी ने भी इस प्रस्ताव को सराहा, लेकिन उन्होंने इसके लिए सरकारी धन न खर्च करने की शर्त रखी थी, जिसे पटेल ने भी माना और इसके पुनर्निर्माण का भीड़ा उठाया।
गौरतलब है कि इस मंदिर पर विदेशी आक्रांताओं ने कई बार हमले कर क्षति पहुंचाई थी, लेकिन इसका अस्तित्व कोई नहीं मिटा सका।