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    अलविदा Manmohan Singh! एक फोन कॉल जिसने बदल दी थी देश और पूर्व पीएम की जिंदगी; 1991 का है किस्सा

    देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार की रात में निधन हो गया। 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान में जन्मे मनमोहन सिंह की जिंदगी में का सबसे बड़ा दिन जून 1991 में आया था। जब एक फोन कॉल ने उनके जीवन में सब कुछ बदल दिया था। ये फोन कॉल सिंह को पी.वी. नरसिंह राव के विश्वासपात्र पी.सी. अलेक्जेंडर द्वारा किया गया था।

    By Versha Singh Edited By: Versha Singh Updated: Fri, 27 Dec 2024 08:26 AM (IST)
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    Manmohan Singh Death News: एक फोन कॉल जिसने बदल दी थी देश और पूर्व पीएम की जिंदगी

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर की रात करीब 10 बजे निधन हो गया। 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान में जन्मे मनमोहन सिंह की जिंदगी में सबसे बड़ा दिन जून 1991 में आया।

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    मनमोहन सिंह नीदरलैंड में एक सम्मेलन में भाग लेने के बाद दिल्ली लौटे थे और अपने कमरे में सोने चले गए थे। उस रात उन्हें एक फोन आया। काफी देर बाद सिंह के दामाद विजय तन्खा ने उनका फोन उठाया। दूसरी तरफ से आवाज पी.वी. नरसिंह राव के विश्वासपात्र पी.सी. अलेक्जेंडर की थी। अलेक्जेंडर ने विजय से अपने ससुर मनमोहन सिंह को जगाने का आग्रह किया।

    एक मुलाकात ने बदल दी थी सिंह की जिंदगी

    मनमोहन सिंह और अलेक्जेंडर कुछ घंटों बाद मिले और अधिकारी ने सिंह को नरसिंह राव की योजना के बारे में बताया कि वे उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त करना चाहते हैं। सिंह, जो उस समय यूजीसी के अध्यक्ष थे और कभी राजनीति में नहीं रहे थे, उन्होंने अलेक्जेंडर को गंभीरता से नहीं लिया लेकिन राव गंभीर थे। यह घटना शपथ ग्रहण से ठीक एक दिन पहले की है।

    मनमोहन सिंह ने अपनी बेटी दमन सिंह की किताब 'स्ट्रिक्टली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरण' में कहा है, 21 जून को वह अपने यूजीसी कार्यालय में थे। उन्हें घर जाने, कपड़े पहनने और शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए कहा गया था।

    उन्होंने कहा, मुझे पद की शपथ लेने के लिए तैयार नई टीम के सदस्य के रूप में देखकर सभी आश्चर्यचकित थे। मेरा पोर्टफोलियो बाद में आवंटित किया गया था, लेकिन नरसिंह राव जी ने मुझे सीधे बताया कि मैं वित्त मंत्री बनने जा रहा हूं।

    उस नियुक्ति ने भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी। एक संकीर्ण, नियंत्रण-भारी, कम वृद्धि वाली अर्थव्यवस्था से यह आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गई है।

    राव के साथ, सिंह 1991 के सुधारों के वास्तुकार थे, जिन्होंने कांग्रेस के अंदर और बाहर से हमलों का सामना किया। अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी, विदेशी मुद्रा भंडार 2,500 करोड़ रुपये तक गिर गया था, जो मुश्किल से 2 सप्ताह के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त था, वैश्विक बैंक ऋण देने से इनकार कर रहे थे, मुद्रास्फीति बढ़ रही थी।

    पीसी अलेक्जेंडर ने सुझाया था सिंह का नाम

    पीसी अलेक्जेंडर उस वक्त नरसिम्हा राव के सलाहकार थे। नरसिम्हा राव ने उनसे कहा कि वित्त मंत्री के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यक्ति की जरूरत है। अलेक्जेंडर ने उन्हें आरबीआई के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल का नाम सुझाया, लेकिन मां के बीमार होने के चलते उन्होंने इनकार कर दिया। फिर अलेक्जेंडर ने मनमोहन सिंह का नाम सुझाया।

    राजनीतिक सफर 

    वित्त मंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद मनमोहन सिंह का राजनीतिक सफर शुरू हुआ था। वह 1991 में असम से राज्यसभा सदस्य बने। वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल 1991 से 1996 तक का था। वित्ती मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह आर्थिक उदारीकरण के अगुआ बने। लाइसेंसी राज खत्म किया, विदेशी निवेश बढ़ा और नौकरियां आईं। इसके बाद मनमोहन सिंह 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता रहे और फिर 2004 से 2014 तक देश के पीएम रहे।

    दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती...

    अपने पहले बजट में मनमोहन सिंह ने विक्टर ह्यूगो की उस मशहूर लाइन का जिक्र किया था कि “दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ पहुंचा है। उन्होंने अपने बजट भाषण में राजीव गांधी, इंदिरा और नेहरू का बार-बार नाम भी लिया, लेकिन उनकी आर्थिक नीतियों को पलटने में वो जरा भी नहीं हिचके।

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