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    जानिए, उस रहस्यमय बीमारी के बारे में जिससे भारत सहित दुनिया के कई देश हैं परेशान

    कैंडिडा ऑरिस नामक रहस्‍यमय बीमारी फंगस के कारण पूरी दुनिया में फैल रही है और इसकी कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है।

    By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Mon, 08 Apr 2019 11:07 AM (IST)
    जानिए, उस रहस्यमय बीमारी के बारे में जिससे भारत सहित दुनिया के कई देश हैं परेशान

     नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। कैंडिडा ऑरिस नामक रहस्‍यमय बीमारी फंगस के कारण पूरी दुनिया में फैल रही है और इसकी कोई दवा भी उपलब्ध नहीं है। इस कारण पूरी दुनिया के लोग परेशान हैं। 2009 में जापान में एक व्यक्ति में इसके संक्रमण का पता चला था।

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    वीक इम्‍यून सिस्‍टम वालों को लेता है चपेट में 
    मई के महीने में एक बुजुर्ग व्यक्ति को पेट की सर्जरी के लिए न्‍यूयार्क शहर के माउंट सिनाई अस्पताल की ब्रुकलिन शाखा में भर्ती कराया गया था। एक ब्‍लड टेस्‍ट से पता चला कि वह एक नए खोजे गए जीवाणु से संक्रमित था क्योंकि यह रहस्यमय था। डॉक्टरों ने गहन चिकित्सा इकाई में उसे अलग कर दिया। इस जीवाणु को कैंडिडा ऑरिस नामक फंगस कहा गया। यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों (वीक इम्‍यून सिस्‍टम) को शिकार बनाता है और यह चुपचाप दुनिया भर में फैल रहा है।

     पिछले पांच वर्षों में इस फंगस के कारण वेनेजुएला में एक नवजात इकाई को बंद कर देना पड़ा। स्पेन में एक अस्पताल को इस जीवाणु ने अपनी चपेट में ले लिया। इस कारण ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित चिकित्सा केंद्र की आईसीयू यूनिट को बंद करना पड़ा। इस जीवाणु ने भारत, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में जड़ें जमा लीं हैं।

    हाल ही में कैंडिडा ऑरिस नामक यह बीमारी न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और इलिनोइस तक पहुंच चुकी है। प्रमुख संघीय केंद्रों ने रोग से नियंत्रण और रोकथाम के लिए इसे जीवाणुओं के सूची में शामिल कर लिया गया है और इसे तुरंत का बड़ा खतरा बताया गया। माउंट सिनाई अस्पताल में भर्ती शख्‍स की 90 दिनों बाद मौत हो गई लेकिन कैंडिडा ऑरिस खत्‍म नहीं हुआ। परीक्षण से पता चला कि यह जीवाणु पूरे कमरे में फैला गया था।

     इस जीवाणु का आक्रमण इतना जबरदस्‍त था कि इसके बाद अस्पताल को विशेष सफाई उपकरण की आवश्यकता थी। इस जीवाणु को खत्‍म करने के लिए छत और फर्श की कुछ टाइलों को जड़ से उखाड़ना पड़ा। 

    अस्‍पताल के अध्‍यक्ष डॉ स्कॉट लोरिन ने बताया कि कमरे का सब कुछ पॉजिटिव था- दीवारें, बिस्तर, दरवाजे, पर्दे, फोन, सिंक, व्हाइटबोर्ड, डंडे और पंप"। गद्दे, बेड रेल, कनस्तर का छेद, खिड़की का छाया, कमरा में सब कुछ पॉजिटिव था। कैंडिडा ऑरिस बहुत कठोर फंगल इंफेक्‍शन है क्योंकि यह प्रमुख एंटिफंगल दवाओं के लिए अभेद्य है। यह दुनिया के सबसे असाध्‍य स्वास्थ्य खतरों में से एक है। 

    बीमारी के लक्षण
    इस बीमारी के लक्षण हैं-बुखार, शरीर में दर्द और थकान। इसमें व्‍यक्ति पहले सामान्य प्रतीत होता है। पहले से बीमार व्‍यक्ति इस इंफेक्‍शन के चपेट में आता है। इस बीमारी के सामान्य लक्षण काफी घातक होते हैं। जो तीमारदार इस फंगल इंफेक्‍शन से बीमार शख्‍स की देखभाल करता है, उसे खुद की सुरक्षा करनी चाहिए, नहीं तो उसके भी इस बीमारी के चपेट में आने की संभावना होती है।

    डॉ. मैथ्यू मैकार्थी, जिन्होंने न्यूयॉर्क में वेल कॉर्नेल मेडिकल सेंटर में कैंडिडा ऑरिस फंगल इंफेक्‍शन से प्रभावित कई रोगियों का इलाज किया, ने 30 वर्षीय व्यक्ति का इलाज करते समय एक असामान्य डर का अनुभव किया। कैंडिडा ऑरिस फंगल इंफेक्‍शन का रहस्‍य अब तक अनसुलझा है। फिलहाल इस बीमारी की उत्पत्ति इसके प्रसार को रोकने से कम महत्वपूर्ण नहीं है।

     मेडिकल सेवा से जुड़े रोचक तथ्य

    आइये जानते हैं दुनिया की खतरनाक बीमारियों के बारे में   

    इबोला वायरस 
    इबोला वायरस के 5 प्रकार हैं, जिनमें से अलग-अलग वायरस का नाम अफ्रीका के देशों और शहरों के नाम पर पड़ा है: जायरे, सूडान, ताई वन, बुंडाइबिग्यो और रेस्टन। जायरे इबोला वायरस जानलेवा होता है जिसमें मृत्यु दर 90 फीसदी होती है। यह एक नस्ल है जो गिनी, सिएरा लियोन और लाइबेरिया आदि के माध्यम से फैल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शहर में जायरे इबोला वायरस संभवत: फ्लाइंग फोक्सेस के कारण आया।

    रोटा वायरस 
    टीकों के कारण विकसित देशों में बच्चे रोटा वायरस की चपेट में मुश्किल से ही आते हैं लेकिन विकासशील देशों में यह बीमारी एक आंतक की तरह है, जहां रीहाइड्रेशन का उपचार व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है। डब्‍लूएचओ (WHO) ने अनुमान लगाया है कि विश्व स्‍तरपर 5 वर्ष से ज्यादा उम्र के 453,000 बच्चों ने 2008 में रोटावायरस से अपनी जान खो दी।

    बर्ड फ्लू 
    बर्ड फ्लू एक खतरनाक वायरस है जिसमें 70 फीसदी जान जाने का खतरा होता है। लेकिन H5N1 के संपर्क में आने का खतरा कम ही होता है। आप केवल पोल्ट्री के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से ही संक्रमित हो सकते हैं।  एशिया में लोग अक्सर चिकन के संपर्क में रहते हैं इसलिए यहां बर्ड फ्लू के मामले अधिक होते हैं।

    डेंगू 
    डेंगू बुखार अब भी एक चुनौती है। यह मच्छर द्वारा फैलता है। डेंगु लगभग 50 से 100 मिलियन लोगों को प्रतिवर्ष प्रभावित करता है।

    रेबीज  
    यद्यपि पालतू जानवरों के लिए रेबीज के टीके लगते हैं, जोकि 1920 में आए उसने इसके खतरे को कम कर दिया लेकिन भारत और अफ्रीका में अब भी स्थितियाँ सुधरी नहीं हैं। यह दिमाग को विनष्ट कर देता है। यह वास्तव में एक खतरनाक बीमारी है। अगर उचित समय पर इसका उपचार न कराया जाए तो मौत होने की आशंका होती है।

    एचआइवी 
    एचआइवी (HIV) जानलेवा वायरस है। अनुमानत: 1980 में जब यह वायरस पहचान में आया तब से 36 मिलियन लोग इसका शिकार हो चुके हैं। यह मानव की जान लेने वाला सबसे बड़ा वायरस है।

    चेचक 
    1980 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने विश्व को चेचक से मुक्त घोषित किया था, लेकिन इससे पहले हजारों साल तक मनुष्य ने चेचक से संघर्ष किया, इस बीमारी से तीन में एक व्यक्ति का मृत्यु निश्चित थी। इससे चेहरे पर निशान रह ही जाते थे और अंधेपन का भी खतरा रहता था। 20 वीं शताब्दी तक भी इसने लगभग 300 मिलियन लोगों को अपना शिकार बनाया।

    इंफ्लुएंजा 
    डब्‍लूएचओ (WHO) के अनुसार फ्लू के मौसम में 500,000 तक लोग पूरे विश्व में बीमारी से जान खो देते हैं। लेकिन जब कोई नया फ्लू अस्तित्‍व में आता है, तो रोग महामारी की तरह फैलता है और अक्सर मृत्यु दर भी बढ़ जाती है। सबसे घातक फ्लू बीमारी जिसे कभी-कभी स्पेनिश फ्लू भी कहते हैं 1918 में शुरू हुई और इसने पूरे विश्व में 40 फीसदी लोगों को चपेट में ले लिया और लगभग 50 मिलियन लोगों ने इससे जान गवां दी।