उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे बलबीर सिंह बेदी की बेमिसाल कहानी
A Life Uncommon BS Bedi यह पुस्तक एक व्यक्ति और एक देश के संघर्षों और सफलताओं को समानांतर ढंग से लेकर आगे बढ़ती है। बीएस बेदी का यह जीवनवृत्त जीवन की कठिनाइयों में प्रेरणादायक सिद्ध हो सकता है।
ब्रजबिहारी। अपने भीतर कोई कहानी छिपाकर रखने से बड़ी कोई पीड़ा नहीं होती है। डा. प्रीति सिंह को तो यह वेदना नहीं झेलनी होगी, क्योंकि वह अपने पिता डा. बलबीर सिंह बेदी की जीवन-यात्रा पर आधारित पुस्तक की लेखिका बन चुकी हैं। 1961 बैच के आइपीएस अधिकारी डा. बेदी उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहने के अलावा पंजाब में अलगाववाद और जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को कुचलने वाले नायकों में शामिल हैं। उन पर आधारित यह पुस्तक सिर्फ उनके जीवन और परिवार की कथा नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्र के रूप में भारत की यात्रा का भी दस्तावेज है। सियालकोट (अब पाकिस्तान) में बसे एक परिवार का विभाजन के बाद भारत आना और पंजाब के सरहिंद में नए सिरे से जिंदगी शुरू करना ही अपने आप में एक पूरी संघर्ष गाथा है।
बलबीर सिंह बेदी के जीवन में तो कहानियों की कई ऐसी किस्तें जुड़ी हुई हैं। बचपन में ही विभाजन की विभीषिका को बहुत करीब से देखने वाले डा. बेदी मेधावी छात्र थे। उन्हें अंग्रेजी भाषा से बहुत लगाव था। पढ़ाई पूरी करने और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) में चयनित होने के बीच वह तीन साल तक एक पोस्टग्रेजुएट कालेज में अंग्रेजी के अध्यापक भी रहे। डा. बेदी जब आइपीएस अधिकारी बने तो देश को स्वतंत्र हुए डेढ़ दशक से भी कम समय गुजरा था। आने वाले वर्षों में न सिर्फ उन्होंने, बल्कि इस देश ने भी कई चुनौतियों का सामना किया और उनका डटकर मुकाबला किया।
यह पुस्तक एक व्यक्ति और एक देश के संघर्षों और सफलताओं को समानांतर ढंग से लेकर आगे बढ़ती है। महज 40 साल की उम्र में डा. बेदी की पत्नी को घातक बीमारी ने जकड़ लिया, लेकिन उन्होंने इससे हार मानने के बजाय उससे लडऩे का फैसला किया। सबसे बड़ी खूबी यह थी कि पूरे परिवार को पल भर के लिए भी यह महसूस नहीं होने दिया कि वे इतनी बड़ी समस्या का सामना कर रहे हैं। डा. बेदी का जीवनवृत्त यह दिखाता है कि जिंदादिली से मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थितियों से उबर सकता है। निजी जीवन के साथ सार्वजनिक जीवन में भी डा. बेदी ने अपने स्वभाव की इसी खासियत के कारण हर मुश्किल से लोहा लिया और विजयी बनकर उभरे। उनकी बेटी ने इस पुस्तक में ऐसी कई घटनाओं का उल्लेख किया है, लेकिन उनमें से कुछ बहुत खास हैं।
वर्ष 1980 के अंत में डा. बेदी को गोरखपुर रेंज के डीआइजी के रूप में नियुक्ति मिली। तब वह परिक्षेत्र पूर्वांचल के दो बाहुबलियों हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच खूनी टकराव की भूमि के रूप में बदनाम हो रहा था। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने डा. बेदी को उन पर लगाम लगाने के लिए ही भेजा था और वे इसमें काफी हद तक सफल भी हो रहे थे, लेकिन इस बीच उनकी पत्नी का स्वास्थ्य काफी खराब रहने लगा और उनके लिए वाराणसी में रहना जरूरी होता जा रहा था। डा. बेदी की पत्नी का इलाज बीएचयू के मेडिकल कालेज में ही चल रहा था। पहली बार डा. बेदी ने अपनी पोस्टिंग के लिए सिफारिश की, जिसे मान लिया गया।
वाराणसी में पत्नी के स्वास्थ्य के साथ दूसरी कई चुनौतियां उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं। वर्ष 1982 में वाराणसी में पहली बार नशीले पदार्थों की फैक्ट्री पकड़ी गई। वहां नशीले पदार्थों का सेवन होना आम बात थी, लेकिन ड्रग फैक्ट्री के उद्भेदन ने बहुतों को चौंका दिया था। शायद तब यह देश में पकड़ी गई पहली ड्रग फैक्ट्री थी। दूसरी घटना थी 5 जनवरी, 1983 को विश्वनाथ मंदिर में हुई चोरी। इस घटना ने पुलिस को भारी दबाव में ला दिया था, लेकिन डा. बेदी ने अपने नेतृत्व में इसे भी हल कर दिखाया। वे यह सब कर पाए तो इसकी बड़ी वजह थी उनका 'कूल' होना। डा. प्रीति सिंह ने अपनी पुस्तक में उनके इस गुण का कई जगह उल्लेख किया है।
इस जीवनवृत्त में लेखिका ने निष्पक्षता बनाए रखी है। अपने ख्यातिलब्ध पिता के गुणों के साथ उन्होंने उनकी कमजोरियों को भी पर्याप्त स्थान दिया है। कठिनाइयों से घिरे हों तो यह पुस्तक आपको काफी प्रेरणा दे सकती है।
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पुस्तक का नाम : ए लाइफ अनकामन- बीएस बेदी
लेखिका : प्रीति सिंह
प्रकाशक : दिशा इंटरनेशनल पब्लिशिंग हाउस
मूल्य : 390 रुपये
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